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गणितानुयोग प्रस्तावना
ब्राह्यतम दूरियों का अन्तर है। पृथ्वीतल को गोलीय मानने पर १° चाप का माप ६६६ मील भी माना जाता है, जबकि पृथ्वी की त्रिज्या ज्ञात हो, इस प्रकार योजन का माप लगभग ६.४ मी स्थापित करते हैं । इस प्रयास से जैन ग्रन्थों में ज्योतिष्कों की वर्णित ऊँचाई का रहस्य खुलने लगता है । इस प्रकार चित्रा पृथ्वी से सूर्य की ८०० योजन ऊँचाई का माप ७७५ प्रतीत होता है जिसे सूर्य पथ ( eclipter) की किसी समतल अथवा अवलोकनकर्ता से कोणीय दूरी माना जा सकता है । इस प्रकार चन्द्र की ऊँचाई ८८० योजनों को इन इकाइयों में ७°.७ अधिक माना जाकर, सूर्य से चन्द्र की यह उत्तरी ध्रुवीय दूरी माना जा सकता हैं । अन्य ग्रहों के सम्बन्ध में अभी भी शोध करना वाञ्छनीय है।
पल्य (प्रा० पल्ल)
साहित्यिक रूप से पल्य का अर्थ खात या गड्ढा होता है जिसे अनाज भरने के उपयोग में आते हैं। उसके द्वारा राशि का काल माप प्ररूपित करते हैं । पल्य तीन प्रकार के होते हैं व्यवहार, उद्धार एवं अद्धा । इनके प्रमाण, गणना और गिनती विधि से निकाले जाते हैं।
व्यवहार पल्य ४.१३ X ( १० ) 40 वर्ष । इसे अविभागी समयों में बदला जा सकता है ।
उद्धार पल्य = ४.१३ X (१०) ४४ X जघन्य युक्त असंख्यात X १०७ वर्ष । यहाँ जघन्य युक्त असंख्यात का मान गणना विधि से प्राप्त हो जाता है ।
अड्डा पर ४१३ (१०) (युतं असंख्यात) वर्ष |
यहाँ अज्ञात मध्यम संख्यात की अनि तता छोड़कर इन सभी को समय राशि में बदला जा सकता है ।
जब उपरोक्त को (१०) 14 से गुणित किया जाता हैं तो संवादी सागर का मान प्राप्त हो जाता है । श्वेताम्बर तथा दिगम्बर आम्नायों में तत्संबन्धी अन्तर का अध्ययन विश्व प्रहेलिका में उपलब्ध हैं ।
यह उपमा मान की राशि है जिसे रचना राशि कह सकते हैं। इस प्रकार रचित राशि के द्वारा अस्तित्व में पाई जाने वाली राशि का प्रमाण दर्शाया जाता है ।
आयनिका (प्रा० आवलिका)
इसका अर्थ पंक्ति या कतार ( trail ) होता है। यह एक क्रमबद्ध समयों की राशि होती है । जघन्य युक्त असंख्यात २४५८ '३७७३
समयों की एक आवलिका होती है । ४४४६
आलिकाओं का एक प्राण आदि भाप बनते हैं । इस प्रकार मुहूर्त, अहोरात्र आदि तक पहुँचते हैं । इस प्रकार जैन विज्ञान में समय माप का राशि सैद्धान्तिक आधार होता है. जो पुनः क्षेत्र - माप से सम्बन्धित हो जाता है। इससे एक समय कम करने पर उत्कृष्ट संख्यात बनता है जिसे मुनि महेन्द्रकुमार द्वारा शीषं प्रहेलिका भी कहा गया है ।" काल, समय और अद्धा, ये सब एकार्थवाची नाम हैं। एक परमाणु का दूसरे परमाणु के व्यतिक्रम करने में जितना काल लगता है, उसे समय कहा जाता है। चौदह राजु आकाश प्रदेशों के अतिक्रमण मात्रकाल से जो चौदह शत्रु अतिक्रमण करने में समर्थ परमाणु है, उसके एक परमाणु अतिक्रमण करने के काल का समय है । ऐसे असंख्यात समयों की एक आवलि होती है । तत्प्रायोग्य संख्यात आवलियों से उश्वास - निश्वास निष्पन्न होता है । "
अपडेय (प्रा० अनुछेद) -
इसका शाब्दिक अर्थ आधा भाग होता है । आधा भाग, आधा भाग से निर्मित संख्या को किसी संख्या की अर्द्ध च्छेद संख्या कहते हैं । ज्यामितिरूप से किसी रेखा में स्थित प्रदेश बिन्दुओं की भी अर्द्धच्छेद संख्या प्राप्त की जा सकती है, यथा रज्जु के अर्द्धच्छेद । घन लोक के भी अच्छेदादि राशि का विवरण मिलता है। इसी प्रकार के अन्य पारिभाषिक शब्द मच्छेद (trisection), उपकादिच्छेद ( quadri etc. section ) इत्यादि हैं । इस प्रकार इन सभी को लागएरिद्म टू दा बेस टू, थ्री, फोर ( logarithan to base two, three, four, etc., ) कह सकते हैं। यदि x = 2" हो तो n = logg*, अथात् 2* के अर्द्धच्छेद n कहे जाते हैं अथवा 2" को २ द्वारा " बार छेदा जा सकता है । जान नेपियर (१५५०-१६१७ A.D.) और जो जे० बर्जी (१५५२-१६३२ A. D.) द्वारा इस पद्धति को आविष्कृत माना जाता है ।
२ ति० प० श्लोक १.११६ - १.१२८
१ लिश्क और शर्मा (१९७५), (१९७९)
३ वि० प्र० पृ० २४५-२५२ । लो० प्र० १.१६५ आदि; ति० प०, ४.३११ आदि ।
४ वि० प्र० पृ० ११७, श्वेताम्बर परम्परानुसार ।
६ ति० प० भाग २, पृ० ७६४-७६७ ।
५ ० ० ० ४ ०२१८
७ वही ० पृ० ५६७ ६०० ।