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________________ ७५० लोक-प्रज्ञप्ति परिशिष्ट : अधोलोक आदि से धर्मास्तिकाय आदि का अवगाहन सूत्र ६-८ wwwwww १०–सिरियलोए णं भंते ! धम्मस्थिकायस्स केवइयं फसइ? प्र०-भगवन् ! तिर्यक्लोक धर्मास्तिकाय का कितना स्पर्श करता है? उ०-गोयमा ! असंखेज्जाइ भागं फुसइ । उ०-गौतम ! (धर्मास्तिकाय के) असंख्यातवें भाग का स्पर्श करता है। प०-उड्ढलोए णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसइ? प्र०-भगवन् ! ऊर्ध्वलोक धर्मास्तिकाय का कितना स्पर्श करता है ? उ०-गोयमा ! देसूणं अद्धं फुसइ । उ०-गौतम ! कुछ कम आधे (धर्मास्तिकाय) का स्पर्श करता है। एवं अधम्मत्थिकाए, एवं लोयागासे वि । इसी प्रकार (अधोलोक, तिर्यक् लोक, और ऊर्ध्व लोक) अधर्मास्तिकाय का स्पर्श करते हैं। -भग. स. २, उ. १०, सु. १४-१६ (२२) इसी प्रकार (लोकाकाश अधर्मास्तिकाय) का स्पर्श करता है। अहोलोयाईहिं धम्मत्थिकायाईणं ओगाहणं- अधोलोक आदि से धर्मास्तिकाय आदि का अवगाहन७. ५०–अहे लोए णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स केवइयं ओगाढे ? प्र०-भगवन् ! अधोलोक धर्मास्तिकाय का कितना अव गाहन करता है? उ०-गोयमा ! साइरेगं अद्ध ओगाढे । उ०-गौतम ! कुछ अधिक आधे का अवगाहन करता है। एवं जाव उड्ढलोए। इसी प्रकार यावत्-उर्बलोक पर्यन्त है। एवं अधम्मत्थिकाए, एवं लोयागासे वि । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का अवगाहन है। -भग. स. २०, उ. २, सु. ३ इसी प्रकार लोकाकाश का अवगाहन है। लोयालोयसेढीणं दव्वट्टयाए संखेज्ज-असंखेज्ज द्रव्य की अपेक्षा से लोकालोक की श्रेणियों का संख्येयअणंतत्तं असंख्येय और अनन्तत्व८.५०-सेढीओणं भंते ! दव्वयाए कि संखेज्जाओ, असंखे- प्र०-भगवन् ! द्रव्य की अपेक्षा लोकालोक की श्रेणियां ज्जाओ, अणंताओ? क्या संख्येय हैं, असंख्येय है, अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ, नो असंखेज्जाओ, उ०-गौतम ! संख्येय नहीं है. असंख्येय नहीं हैं, अनन्त हैं। अणंताओ। ५०-पाईण-पडीणाययाओ णं भंते ! सेढीओ दम्बट्ठयाए कि प्र०-भगवन् ! पूर्व से पश्चिम पर्यन्त लम्बी श्रेणियाँ द्रव्य संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, अणंताओ? की अपेक्षा क्या संख्येय हैं, असंख्येय हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, नो उ०-गौतम ! न संख्येय हैं, न असंख्येय हैं, अनन्त हैं । अणंताओ। एवं दाहिणुतराययाओ वि । इसी प्रकार दक्षिण से उत्तर पर्यन्त लम्बी श्रेणियां हैं। एवं उड्ढमहाययाओ वि। इसी प्रकार ऊपर से नीचे तक लम्बी श्रेणियाँ हैं । प०-लोयागाससेढीओ णं भंते ! दम्वट्ठाए कि संखेज्जाओ, प्र०-भगवन् ! द्रव्य की अपेक्षा लोकाकाश की श्रेणियाँ असंखेज्जाओ, अणंताओ? क्या संख्येय हैं, असंख्येय हैं या अनन्त हैं ? उ०-गायमा ! नो संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, नो अणंताओ। उ.-गौतम ! संख्येय नहीं हैं, असंख्येय हैं, अनन्त नहीं हैं । एवं पाईण-पडीणाययाओ वि । इसी प्रकार पूर्व से पश्चिम पर्यन्त लम्बी श्रेणियाँ हैं । एवं दाहिणुत्तराययाओ वि । इसी प्रकार दक्षिण से उत्तर पर्यन्त लम्बी श्रेणियाँ हैं। एवं उड्ढमहाययाओ वि। इसी प्रकार ऊपर से नीचे तक लम्बी श्रेणियाँ हैं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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