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________________ सूत्र परिशिष्ट : प्रदेश को अपेक्षा से लोकालोक की श्रेणियों का संख्येय, असंख्येय, अनन्तत्व गणितानुयोग ७५१ प०-अलोयागाससेढीओणं भंते ! दब्बट्रयाए कि संखेज्जाओ, प्र०-भगवन् ! द्रव्य की अपेक्षा अलोकाकाश की श्रेणियाँ असंखेज्जाओ, अणंताओ? क्या संख्येय हैं, असंख्येय हैं, या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा! नो संखेज्जाओ, नो असंखेज्जाओ, अणंताओ। उ०-गौतम ! संख्येय नहीं हैं, असंख्येय नहीं हैं, अनन्त हैं। एवं पाईण-पडीणाययाओ वि । इसी प्रकार पूर्व से पश्चिम पर्यन्त लम्बी श्रेणियां हैं। एवं दाहिणुत्तराययाओ वि । इसी प्रकार दक्षिण से उत्तर पर्यन्त लम्बी श्रेणियां हैं। एवं उड्ढमहाययाओ वि। इसी प्रकार ऊपर से नीचे तक लम्बी श्रेणियाँ हैं। -भग. स. २५, उ. ३, सु. ६८-७६ लोयालोयसेढीणं पएसट्टयाए संखेज्ज-असंखेज्ज- प्रदेश की अपेक्षा से लोकालोक की श्रेणियों का संख्येय, अणंतत्तं असंख्येय, अनन्तत्व८.५०-सेढीओ णं भंते ! पएसट्टयाए कि संखेज्जाओ, प्र०-भगवन् ! प्रदेश की अपेक्षा से श्रेणियाँ क्या संख्येय असंखेज्जाभो, अणंताओ? हैं, असंख्येय हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! जहा दव्वट्ठयाए तहा पएसट्टयाए वि। उ०-गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से जैसा है वैसा ही प्रदेश की अपेक्षा से भी है। एवं पाईण-पडीणाययाओ वि-जाव-उड्ढमहाययाओ। इसी प्रकार पूर्व से पश्चिम पर्यन्त लम्बी श्रेणियाँ-यावत्सव्वाओ अणंताओ। ऊपर से नीचे तक लम्बी श्रेणियां सब अनन्त हैं। प०-लोयागाससेढीओ णं भंते ! पएसट्टयाए कि संखेज्जाओ, प्र०-भगवन् ! प्रदेश की अपेक्षा से लोकाकाश की श्रेणियाँ असंखेज्जाओ, अणंताओ? __ क्या संख्येय हैं, असंख्येय हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! सिय संखेज्जाओ, सिय असंखेज्जाओ, नो उ०—गौतम ! कभी संख्येय हैं, कभी असंख्येय हैं, अनन्त अणंताओ। नहीं हैं। एवं पाईण-पडीणाययाओ वि, दाहिणुत्तराययाओ वि। इसी प्रकार पूर्व से पश्चिम पर्यन्त लम्बी श्रेणियाँ भी हैं । दक्षिण और उत्तर पर्यन्त लम्बी श्रेणियाँ भी हैं। उड्ढमहाययाओ नो संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, नो ऊपर से नीचे तक लम्बी श्रेणियाँ संख्येय नहीं है, असंख्येय अणंताओ। हैं, अनन्त नहीं हैं। ५०-अलोयागाससेढीओ णं भंते ! पएसट्टयाए कि प्र०-भगवन् ! प्रदेश की अपेक्षा से अलोकाकाश की संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, अणंताओ? श्रेणियाँ क्या संख्येय हैं, असंख्येय हैं या अनन्त हैं ? २०-गोयमा ! सिय संखेज्जाओ, सिय असंखेज्जाओ, सिय उ०—गौतम ! कभी संख्येय हैं, कभी असंख्येय हैं और कभी अणंताओ। अनन्त हैं। ५०-पाईण-पडीणाययाओ णं भंते ! अलोयागाससेढीओ प्र०-भगवन् ! प्रदेश की अपेक्षा से पूर्व से पश्चिम पर्यन्त पएसट्टयाए कि संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, अणंताओ? लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियाँ क्या संख्येय हैं, असंख्येय हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ, नो असंखेज्जाओ, उ०-गौतम ! न संख्येय हैं, न असंख्येय हैं, अनन्त हैं। अणंताओ। एवं दाहिणुत्तराययाओ वि । इसी प्रकार दक्षिण से उत्तर पर्यन्त लम्बी श्रेणियाँ भी हैं। प०-उड्ढमहाययाओ णं भंते ! अलोयागाससेढीओ पएस- प्र०-भगवन् ! प्रदेश की अपेक्षा से ऊपर से नीचे तक ट्ठयाए कि संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, अणंताओ? लम्बी श्रेणियाँ क्या संख्येय हैं, असंख्येय हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! सिय संखेज्जाओ, सिय असंखेज्जाओ, सिय ७०-गौतम ! कभी संख्येय हैं, कभी असंख्येय हैं और कभी अणंताओ। अनन्त हैं। -भग. स. २५, उ. ३, सु. ८०.८७
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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