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________________ .४८ लोक-प्रज्ञप्ति परिशिष्ट सूत्र ४-५ लोइय गणियप्पग 1 लौकिक गणित के प्रकार४ दसविहे संखाणे पण्णत्ते, तं जहा-गाहा ४. दस प्रकार के संख्यान कहे गए हैं । यथापडिकम्मं बवहारो, रज्जू रासो' कलासवण्णे य । (१) परिकर्म, (२) व्यवहार, (३) रज्जू, (४) राशि, जावं ताव इ वग्गो, घणो य तह बग्गवग्गो वि । (५) कलासवर्ण, (६) यावत् तावत्, (७) वर्ग, (८) धन, कप्पो य। (8) वर्गवर्ग, (१०) कल्प। -ठाणं अ. १०, सु. ७४७ । लोयत अलोयंताणं फुसणा लोकान्त और अलोकान्त का स्पर्श५. ५०-लो भंते ! अलोअंतं फुसइ ? ५. प्र०-भगवन् ! लोकान्त अलोकान्त का स्पर्श करता है ? अलोअंते वि लोअंतं फुसइ ? अलोकान्त भी लोकान्त का स्पर्श करता है ? उ०-हंता गोयमा ! लोअंते अलोअंतं फुसइ।। उ.-हाँ गौतम ! लोकान्त अलोकान्त का स्पर्श करता है । ____ अलोअंते वि लोअंतं फुसइ। अलोकान्त भी लोकान्त का स्पर्श करता है। प०-तं भंते ! किं पुट्ठफुसइ, अपुट्टफुसइ ? प्र०-भगवन् ! क्या उस स्पृष्ट को स्पर्श करता है या अस्पृष्ट को स्पर्श करता है ? (शेष विवेचन ७४७ का) ३. विवेचन १. नाम सर्व-किसी व्यक्ति का "सर्व" नाम है वह नाम सर्व है। २. स्थापना सर्व-किसी एक व्यक्ति या पदार्थ में सर्व की स्थापना करना स्थापना सर्व है । जिस प्रकार एक व्यक्ति प्रतिनिधि होता है वह "स्थापना सर्व" है। जिन व्यक्तियों की ओर से जिसको प्रतिनिधि बनाया गया है उन सबका वह है अतः स्थापना सर्व है। ३. आदेश सर्व-किसी एक व्यक्ति को एक कार्य करने के लिए आदेश दिया। वह व्यक्ति उस कार्य को कर रहा है, कार्य सम्पूर्ण होने वाला है, थोड़ा कार्य शेष है-उस समय उसे पूछा-कार्य हो गया? उसने कहा-हां हो गया, यह आदेश सर्व है। ४. निरवशेष सर्व-एक जगह एक धान्य की राशि पड़ी है, एक ने एक को कहा-यह सारा धान ले आओ, वह सारे धान्य को ले गया, यह निरवशेष सर्व है। ये तीनों सूत्र सामान्य सूचक हैं-एक, अनेक और सर्व ये तीनों सामान्य संख्यायें हैं । १. चउव्विहे संखाणे पण्णत्ते । तं जहा(१) पडिकम्म, (२) ववहारे, (३) रज्जू, (४) रासी । -ठाणं अ०४, उ०३, सु० ३३७ । २. कप्पो य ।" इतना गाथा से अधिक है। ३. १. परिकर्म-संकलित आदि अनेक प्रकार के गणित । २. व्यवहार-श्रेणी व्यवहार आदि । इसे पाटी गणित भी कहते हैं । ३. रज्जू-क्षेत्र गणित । ४. राशि-अन्न की ढेरी की परिधि से अन्न का प्रमाण निकालना । ५. कला सवर्ण-जो संख्या अंशों में हो उसे समान करना । ६. यावत् तावत् इति-गुणाकार । ७. वर्ग-दो समान संख्याओं का गुणन । ८. घन-तीन समान संख्याओं का गुणनफल । ६. वर्ग वर्ग-बर्ग को वर्ग से गुणा करना। १०. कल्प-पाटी गणित का एक प्रकार । गणित के इन प्रकारों का विशेष ज्ञान करने के लिए स्थानांग वृत्ति तथा गणित के पारिभाषिक शब्दों का कोश देखना चाहिए।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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