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________________ सूत्र-१० लोक मलोक और अवकाशान्तर आदि विषयक प्रश्न गणितानुयोग ७४५ दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए सम्वत्थोवे लोगालोगस्स, द्रव्य एवं प्रदेश की अपेक्षा सेदव्वट्ठयाए एगमेगे अचरिमे, द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प लोकालोक के एक-एक अचरिम हैं। लोगस्स चरिमाइं असंखेज्जगुणाई, लोक के चरिम असंख्यगुण हैं। अलोगस्स चरिमाइं विसेसाहियाई, अलोक के चरिम विशेषाधिक हैं। लोगस्स य, अलोगस्स य, अचरिमं च चरिमाणि य दो लोकालोक के चरिमान्त प्रदेश और अचरिमान्त प्रदेश वि विसेसाहियाई। ये दोनों विशेषाधिक है। लोगस्स चरिमंत पएसा असंखेज्जगुणा, लोक के चरमान्त प्रदेश असंख्यगुण है। अलोगस्स चरिमंत पएसा विसेसाहिया, अलोक के चरमान्त प्रदेश विशेषाधिक हैं। लोगस्स अचरिमंत पएसा असंखेज्जगुणा, लोक के अचरमान्त प्रदेश असंख्यगुण हैं। अलोगस्स अचरिमंत पएसा अणंतगुणा, अलोक के अचरमान्त प्रदेश अनन्तगुण हैं । लोगस्स य अलोगस्स य चरिमंत पएसा य, अचरिमंत लोक और अलोक के चरमान्त प्रदेश और अचरमान्त प्रदेश पएसा य दो वि विसेसाहिया, ये दोनों विशेषाधिक है। सव्व दव्वा विसेसाहिया, सर्व द्रव्य विशेषाधिक हैं। सव्व पएसा अनंतगुणा, सर्व प्रदेश अनन्तगुण है। सव्व पज्जवा अनंतगुणा। सर्व पर्यव अनन्तगुण हैं। -पण्ण० ५० १०, सु०७८० लोय-अलोय-ओवासंतईणं पुवा-ऽवरविसए (रोह अण- लोक अलोक और अवकाशान्तर आदि में पूर्वापर कौन ? गारपण्हाणं समाहाणं) (इस सम्बन्ध में रोहा अणगार के प्रश्न और समाधान-) १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंते- १०. उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर का अंते वासो रोहे णामं अणगारे पगइभद्दए पगइमउए पगइविणीए वासी रोहा नामक अणगार जो भद्रप्रकृति मृदुप्रकृति, विनीतप्रकृति, पगइउवसंते पगइपतणुकोह-माण-माय-लोभे मिउमद्दवसंपन्ने उपशान्तप्रकृति, अल्प क्रोध-मान-माया-लोभ प्रकृति, मृदु-मार्दव अल्लोणे भद्दए विणीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूर- सम्पन्न, अलिप्त भद्र एवं विनीत था । वह श्रमण भगवन महावीर सामते उड्ढं जाणू अहोसिरे झाणकोट्टोवगए संजमेणं तवसा के समीप ऊर्ध्व जानु तथा अधोशिर करके ध्यानमग्न हुआ और अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। संयम एवं तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ स्थित रहा। तए णं से रोहे नामं अणगारे जायसड्ढे-जाव-पज्जुवासमाणे तदनन्तर वह रोहा अणगार श्रद्धायुक्त-यावत्-पर्युपासना एवं वयासी करता हुआ इस प्रकार बोलाप०-पुटिव णं भंते ! लोए ? पच्छा अलोए ? पुग्वि अलोए? प्र०—हे भगवन् ! लोक पहले है और अलोक पीछे है या पच्छा लोए? ___ अलोक पहले है और लोक पीछे है ? उ०-रोहा ! लोए य अलोए य पुटिव पेते, पच्छा पेते, दो उ-हे रोहा ! लोक तथा अलोक पहले भी है और पीछे वि ते सासया भावा-अणाणुपुव्वी एसा रोहा! भी है ये दोनों शाश्वत भाव हैं। हे रोहा ! यह अनानुपूर्वी है अर्थात् यह पहले और यह पीछे-इनका ऐसा क्रम नहीं है। १०-पुवि भंते ! लोअंते ? पच्छा अलोअंते ? पुचि अलो- प्र--हे भगवन् ! पहले लोकान्त है और पीछे अलोकान्त ___ अंते? पच्छा लोअंते? है या पहले अलोकान्त है और पीछे लोकान्त है ? उ०-रोहा ! लोयंते य अलोयंते य-जाव-अणाणुपुव्वी एसा उ०-हे रोहा ! लोकान्त और अलोकान्त -यावत्-हे रोहा! रोहा ! यह अनानुपूर्वी है। ५०-पुवि भंते ! लोअंते ? पच्छा सत्तमे ओवासंतरे ? प्र०-हे भगवन् ! पहले लोकान्त है और पीछे सप्तम अव पुचि सत्तमे ओवासंतरे ? पच्छा लोय ते ? काशान्तर है या पहले सप्तम अवकाशान्तर और पीछे लोकान्त है ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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