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लोकालोक-प्रज्ञप्ति
.लोक, अलोक और अवकाशान्तर विषयक प्रश्न
उ.-रोहा ! लोअंते य सत्तमे य ओवासंतरे पुब्बि पेते-जाव- उ-हे रोहा ! लोकान्त और सप्तम अवकाशान्तर पहले अणाणुपुत्वी एसा रोहा !
भी है-यावत्-हे रोहा ! यह अनानुपूर्वी है। एवं लोअंते य सत्तमे य तणुवाते ।।
इस प्रकार लोकान्त और सप्तम तनुवात, इसी प्रकार धनएवं घणवाते, घणोदही सत्तमा पुढवी ।
वात, घनोदधि और सप्तम पृथ्वी है। एवं लोअंते एक्केकेणं संजोएयब्वे इमेहि ठाणेहिं इसी प्रकार इम (आगे कहे जाने वाले) स्थानों में से प्रत्येक तं जहा
के साथ लोकान्त को संयुक्त करना चाहिये । यथागाहाओ
गाथार्थओवास वात घण उदहि, पुढवि, दीवा य सागरा वासा । (१) अवकाशान्तर, (२) वात, (३) घनोदधि, (४) पृथ्वी, नेरइयादि अत्थि य, समया कम्माइं लेस्साओ॥ (५) द्वीप, (६) सागर, (७) वर्ष (क्षेत्र), (5) नारकी आदि के २४
दण्डक, (६) अस्तिकाय, (१०) समय, (११) कर्म, (१२) लेश्या, दिट्ठी सण णाणा, सण्ण सरीरा य जोग उवओगे। (१३) दृष्टि, (१४) दर्शन, (१५) ज्ञान, (१६) संज्ञा, दव्व पदंसा पज्जव अद्धा ।
(१७) शरीर, (१८) योग, (१६) उपयोग, (२०) द्रव्य,
(२१) प्रदेश, (२२) पर्याय और (२३) काल। . ५०-किं पुचि लोयते ?
प्र०- क्या ये पहले हैं और लोकान्त पीछे है ? उ०
उ०-पूर्ववत् है। प०-पुब्वि भंते ! लोयंते? पच्छा सव्वद्धा?
प्र०-हे भगवन् ! पहले लोकान्त है और पीछे सर्वअद्धा है ? उ०
उ०-पूर्ववत् है। रोहा ! जहा लोयंतेणं संजोइया सव्वे ठाणा एते, एवं जिस प्रकार उक्त-सब स्थान लोकान्त के साथ संयुक्त किये अलोयंतेणं वि संजोएयव्वा सव्वे ।
गये हैं इसी प्रकार ये सब (उक्त) स्थान अलोकान्त के साथ भी
संयुक्त करने चाहिए। प०-पुटिव भंते ! सत्तमे ओवासंतरे? पच्छा सत्तमे तणुवाते? प्र०-हे भगवन् ! पहले सप्तम अवकाशान्तर है और पीछे
सप्तम तनुवात है ?
उ०-पूर्ववत् है। रोहा ! एवं सत्तमं ओवासंतरे सव्वेहिं समं संजोएयव्वे इस प्रकार सप्तम अवकाशान्तर को सबके साथ संयुक्त करने -जाव-सव्वद्धाए।
चाहिए-यावत्-सर्वअद्धा पर्यन्त । ५०-पुवि भंते ! सत्तमे तणुवाते ? पच्छा सत्तमे घणवाते ? प्र०-हे भगवन् ! पहले सप्तम तनुवात है और पीछे सप्तम
घनवात है ?
उ०-पूर्ववत् है। एवं पि तहेव नेतव्व-जाव-सव्वद्धा ।
इसको भी सर्वअदा पर्यन्त उसी प्रकार कहना चाहिए। एवं उवरिल्लं एक्केक्कं संजोयतेणं जो जो हेढिल्लो तं इस प्रकार ऊपर के एक-एक को संयुक्त करते हुए और नीचे तं छड्डेंतेणं नेयव्वं-जाव-अतीत-अणागतद्धा पच्छा के एक-एक को छोड़ते हुए कहना चाहिए-यावत्-अतीत सव्वद्धा जाव अणाणुपुव्वी एसा रोहा !
अनागत अद्धा पीछे सर्व अद्धा-यावत्-हे रोहा! यह अनानु
पूर्वी है। सेवं भंते ३ जाव विहरति ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ३-यावत्-विचरण -भग. स. १, उ. ६, सु. १२-१३, १७-२४ करता है।
उ०
॥ समत्ता लोय-अलोय पण्णत्ति॥
॥ लोक-अलोक प्रज्ञप्ति समाप्त ॥