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________________ सूत्र ६-७ wwwww अलोक के चरमाचरम विभाग अलोगस्स चरिमा चरम विभागा ६. प० - अलोए णं मंते ! कि चरिमे अचरिमे चरिमाई अचरिमा चरितसे अपरिमंतपएसे ? उ०- गोयमा ! अलोए नो चरिमे, नो अचरिमे, नो चरिमाई, नो अचरिमाई. नो चरिमंत पएसे, नो अचरिमंत पएसे । नियमा अचरिमं चरिमाणि य, चरिमंतपए से य अचरिमंतप से य' - पण्ण० प० १०, सु० ७७६ लोगस्स चरिमाचरिमपयानं अध्य-बहुत७. ५० - लोगस्स णं भंते ! अचरिमस्स य, चरिमाण य, चरिमंत परसाण य, अचरिमंत पएसाण य, दब्वट्टयाए पएसया दव्व-पट्टयाए, कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ? " उ०- गोयमा ! सव्वत्थोवे लोगस्स, याए एगे अपरिमे चरिमाई असंखेज्जगुणाई, अचरिमं च परिमाण व दो विवाहयाई परसट्टयाए सोचा चरिमंत परसा । सव्वत्थोवा अचरिमंत पएसा असंखेज्जगुणा । चरिमंतपसा य, अचरिमंतपएसा य दो बि विसेसा - हिया । दम्पसट्टयाए सम्बो दव्वट्टयाए एगे अचरिमे, चरिमाई असंखेज्जगुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दोवि विसेसाहियाई चरिमंतपएसा असंखेज्जगुणा, अचरिमतपसा असंवे चरितसा म अचरितसा व दो वि विलेखा हिया । गणितानुयोग ७४३ अलोक के चरमाचरम विभाग ६. प्र० - अलोक क्या चरिम है, अचरिम है, चरित्र हैं, अचरिम हैं ? चरिमान्त प्रदेश हैं, अचरिमान्त प्रदेश हैं ? उ०- गौतम ! अलोक न चरिम है, न अचरिम है, न चरिम हैं, न अचरिम हैं, न चरिमान्त प्रदेश हैं, न अचरिमान्त प्रदेश हैं । अलोक निश्चित रूप से अचरिम है, अनेक अचरिम हैं, चरिमान्त प्रदेश हैं, अचरिमान्त प्रदेश हैं । लोक के चरमाचरम पदों का अल्प- बहुत्व - ७. प्र० - भगवन् ! लोक के अचरिम, चरिम, चरिमान्त प्रदेश अचरिमान्त प्रदेश, द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेश की अपेक्षा से, द्रव्य एवं प्रदेश की अपेक्षा से कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेष अधिक है ? - उ०- गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प लोक का अचरिम है । एक चरिम असंख्यातगुण हैं | अचरिम और चरिम ये दोनों विशेषाधिक है । प्रदेश की अपेक्षा से सबसे अल्प परिमान्त प्रदेश हैं, अचरिमान्त प्रदेश असंख्यात है चरिमान्त प्रदेश और अरिमान्त प्रदेश के दोनों विशेष अधिक हैं । द्रव्य एवं प्रदेश की अपेक्षा से - सबसे अल्प द्रव्य की अपेक्षा एक अचरिम हैं । परिम असंख्यगुण है। अरिम और चरिम ये दोनों विशेषाधिक हैं । चरिमान्त प्रवेश असंख्यगुण है। अरिमान्त प्रदेश असंख्यगुण हैं । चरिमान्त प्रदेश और अचरिमान्त प्रदेश ये दोनों विशेषाधिक हैं । - पण्ण० प० १०, सु० ७७८ (शेष पृष्ठ ७४२ का) (ख) लोक के अनेक अन्तिम खण्ड हैं वे बहुवचनान्त 'चरिम' हैं । (ग) प्रदेशों की अपेक्षा से लोक की विवक्षा की जाय तो लोक के अन्त में रहे हुए खण्डों के जो प्रदेश हैं वे 'चरिमान्त प्रदेश' हैं। लोक के मध्यवर्ती खण्डों के जो प्रदेश है वे 'अरिमान्त प्रदेश' है। (घ) ऊपर अंकित सूत्रांक में— 'लोगे वि एवं चेव' यह संक्षिप्त वाचना का पाठ है अतः यहाँ सूत्र ७७५ के आधार से मूल व्यवस्थित किया है । १ (क) लोक के टिप्पणों के समान अलोक के टिप्पण भी हैं । (ख) ऊपर अंकित सूत्रांक में 'एवं अलोगे वि' यह संक्षिप्त वाचना का पाठ है – अतः यहाँ सूत्र ७७५ के अनुसार मूलपाठ व्यवस्थित किया है । २ इस सूत्रांक में 'लोगस्स य एवं चेव' यह संक्षिप्त वाचना का पाठ है । अतः सूत्रांक ७७७ के मूल पाठ से व्यवस्थित किया है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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