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लोकालोक-प्रज्ञप्ति
लोकाकाश का स्वरूप
सूत्र ४-५
लोगागास-सरूवं
लोकाकाश का स्वरूप४. ५०-लोगागासे गं भंते ! कि जीवा, जीवदेसा, जीवपएसा, ४. प्र०-भगवन् ! लोकाकाश में क्या जीव हैं, जीवदेश हैं, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा?
और जीवप्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीवदेश हैं और अजीव
प्रदेश हैं ? उ०-गोयमा ! जीवा वि, जीवदेसा वि, जीवपएसा वि, उ०-गौतम ! जीव भी हैं, जीवदेश भी हैं, जीवप्रदेश
अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपएसा वि। भी हैं, अजीव भी हैं, अजीवदेश भी हैं अजीवप्रदेश भी हैं । जे जीवा ते नियमा एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, जो जीव हैं, वे निश्चित रूप से एकेन्द्रिय हैं, द्वीन्द्रिय हैं, चरिदिया, पंचेंदिया, अणिविया ।
त्रीन्द्रिय हैं, चतुरिन्द्रिय हैं, पंचेन्द्रिय हैं, अनिन्द्रिय हैं। जे जीवदेसा ते नियमा एगिदियदेसा-जाव-अणिदिय जो जीवदेश हैं वे निश्चित रूप से एकेन्द्रिय के देश हैं देसा।
-यावत्-अनिन्द्रिय के देश हैं। जे जीवपएसा ते नियमा एगिदियपएसा-जाव-अणि- जो जीवप्रदेश हैं वे निश्चित रूप से एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं दियपएसा।
-यावत्-अनिन्द्रिय के प्रदेश हैं । जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता । तं जहा
जो अजीव हैं वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा(१) रूबी य, (२) अरूबी य ।
(१) रूपी, (२) अरूपी। जे रुवी ते चउन्विहा पण्णत्ता । तं जहा
जो रूपी हैं वे चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा(१) संघा, (२) संघदेसा, (३) संघ पएसा, (४) पर- (१) स्कन्ध, (२) देश, (३) प्रदेश, (४) परमाणु पुद्गल । माणु पोग्गला। जे अहवी ते पंचविहा पण्णत्ता । तं जहा
जो अरूपी हैं वे पांच प्रकार के कहे गये हैं, यथा(१) धम्मत्थिकाए, नो धम्मत्थिकायस्स देसे, (१) धर्मास्तिकाय है, धर्मास्तिकाय के देश नहीं, (२) धम्मत्थिकायस्स पएसा।
(२) धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं। (३) अधम्मत्थिकाए, नो अधम्मत्थिकायस्स देसे, (३) अधर्मास्तिकाय है, अधर्मास्तिकाय के देश नहीं, (४) अधम्मत्थिकायस्स पएसा, (५) अद्धासमए । (४) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, (५) अद्धासमय-काल
-भग० स० २, उ०१०, सु० ११ द्रव्य हैं । लोगस्स चरिमाचरिम विभागा
लोक के चरमाचरम विभाग५. ५०-लोए णं भंते ! किं चरिम, अचरिमं?
५. प्र०-भगवन् ! लोक क्या चरिम है या अचरिम है ? चरिमाइं, अचरिमाइं?
चरिम हैं या अचरिम हैं ? चरिमंत पएसे, अचरिमंत पएसे ?
चरिमान्त प्रदेश है अचरिमान्त प्रदेश हैं ? उ०-गोयमा ! लोए नो चरिमे, नो अचरिमे,
उ०-गौतम ! लोक न चरिम है, न अचरिम है, नो चरिमाइं, नो अचरिमाइं,
न चरिम हैं, न अचरिम हैं, नो चरिमंत पएसे, नो अचरिमंत पएसे
न चरिमान्त प्रदेश है, न अचरिमान्त प्रदेश हैं । नियमा-अचरिमं, चरिमाणि य,
लोक निश्चित रूप से अनेक चरिम है, अचरिम हैं। चरिमंत पएसे य, अचरिमंत पएसे य ।
चरिमान्त प्रदेश है, अघरिमान्त प्रदेश हैं । -पण्ण० ५० १०, सु० ७७६
१ 'चरिम' = अन्तिम । 'चरिम' सदा दूसरे की अपेक्षा से होता है । इसलिए यह सापेक्ष शब्द है। २ 'अचरिम' = मध्यवर्ती । 'अचरिम'-सदा 'चरिम' की अपेक्षा से होता है। इसलिए यह भी सापेक्ष शब्द है ।
चरिम और अचरिम-ये दोनों पारिभाषिक शब्द हैं । ३ लोक की यदि अखण्ड रूप से विवक्षा की जाय तो प्रश्न सूत्र गत छहों विकल्पों का सर्वथा निषेध है। ४ (क) लोक असंख्यात प्रदेशावगाढ है अतः उसकी अवयव, अवयवी भाव से विवक्षा की जाय तो लोक के अन्तिम खण्डों के मध्य में लोक का जो एक विशाल खण्ड है वह एक वचनान्त 'अचरिम' है।
(शेष पृष्ठ ७४३ पर)