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लोकालोक प्रज्ञप्ति
जीवाणं पोग्गलाणं लोगस्स बहिया गमणमसक्क- जीव और पुद्गलों का लोक से बाहर गमन अशक्य१. चहि ठाणेहिं जीवा य, पोग्गला य, नो संचाएंति बहिया १. जीव और पुद्गलों का चार कारणों से लोक से बाहर गमन लोगंता गमणाएं । तं जहा
शक्य नहीं है :(१) गइ अभावेणं
(१) गति के अभाव से (२) निरध्वग्गहया
(२) गति सहायक धर्मास्तिकाय के अभाव से, (३) लुक्खत्ताए
(३) रूक्षता होने से, (४) लोगाणुभावेणं । -ठाणं० अ० ४, उ० ३, सु० ३३४ (४) लोक स्वभाव होने से । देवस्स अलोगंसि हत्थाइ आउंटणाइ असामत्थ अलोक में देव का हाथ आदि फैलाने के असामर्थ्य का . निरूवणं
निरूपण२.५०-देवे गं मते ! महिड्ढीए-जाव-महेसक्ले, लोगते ठिच्चा, २. प्र०-भगवन् ! महधिक-यावत्-महासुखी महान् देव
णो पभू अलोगंसि हत्यं वा-जाव-उरुवा आउंटावेत्तए लोकान्त में स्थित होकर अलोक में हाथ-यावत्-उरु को वा पसारेत्तए वा?
सिकोड़ने या पसारने में समर्थ है ? उ.-नो इण? सम8।
उ०-गौतम ! समर्थ नहीं है। प०-से केणटुणं मंते ! एवं वुच्चइ-"देवे गं महिड्ढीए प्र०-भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा गया है कि महधिक
-जाव-महेसक्खे लोगते ठिच्चा णो पभू अलोगंसि हत्थं यावत्-महासुखी महान् देव लोकान्त में स्थित होकर अलोक
वा-जाव-उरु वा आउंटावेत्तए वा, पसारेत्तए वा? में हाथ-यावत्-उरु को सिकोड़ने-पसारने में समर्थ नहीं है ? उ०-गोयमा ! जीवाणं आहारोवचिया पोग्गला।
उ०-गौतम ! जीवों का आहार-पुद्गलों से निष्पन्न होता है। बोदिचिया पोग्गला,
शरीर पुद्गलों से निष्पन्न होता है। कलेवरचिया पोग्गला,
कलेवर पुद्गलों से निष्पन्न होता है। पोग्गलमेव पम्प जीवाण य, अजीवाण य, गइपरियाए पुद्गलों के सहयोग से जीवों एवं अजीवों की गति कही आहिज्जइ।
गई है। अलोए नेवत्थि जीवा, नेवत्थि पोग्गला,
अलोक में न जीव हैं और न पुद्गल हैं । से तेणटुणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-'देवेणं महिड्ढीए हे गौतम ! इस कारण से इस प्रकार कहा गया है कि महजाव-महेसक्खे लोगते ठिच्चा णो पभू अलोगंसि हत्यं धिक--यावत्-महासुखी महान् देव लोकान्त में स्थित होकर वा-जाव-उरु वा आउंटावेत्तए वा, पसारेत्तए वा। अलोक में हाथ-यावत्-उरु को सिकोड़ने में या पसारने में
-भग० स० १६, उ०८, सु० १५ समर्थ नहीं है । आगासस्थिकायस्स भेया
आकाशास्तिकाय के भेद३. ५०-कइविहे गं भंते ! आगासे पण्णते ?
३. प्र०-भगवन् ! आकाश कितने प्रकार का कहा गया है ? उ०-गोयमा ! दुविहे आगासे पण्णत्ते । तं जहा
उ०-गौतम ! आकाश दो प्रकार का कहा गया है, यथा(१) लोगागासे य, (२) अलोगागासे य ।
(१) लोकाकाश (२) अलोकाकाश । -भग० स० २, उ० १०, सु०१०