________________
सूत्र ५८-५९
काल लोक : ऋतुओं के मास और काल प्रभाव
गणितानुयोग
७३१
उडूणं णामाई कालप्पमाणं च
ऋतुओं के नाम और काल प्रमाण५८. तत्थ खलु इमे छ उडू पण्णता, तं जहा
५८. ये छ ऋतुएं कही गई हैं, यथा(१) पाउसे, (२) वरिसारत्ते, (३) सरते, (४) हेमंते, १. पावस ऋतु, २. वर्षा ऋतु, ३. शरद् ऋतु, ४. हेमन्त (५) वसंते, (६) गिम्हें'।
___ऋतु, ५. बसन्त ऋतु, ६. ग्रीष्म ऋतु । ता सव्वे वि णं एए चंद-उडू दुवे दुवे मासा तिचउप्पण्ण- ये सब चन्द्र ऋतुएँ दो-दो मास की होती हैं और (प्रत्येक सएणं तिचउप्पण्णसएणं आयाणेणं गणिज्जमाणा साइरेगाइं ऋतु संवत्सर) तीन सौ चौपन, तीन सौ चौपन दिन का गिनते एगूणसट्ठि एगूणसट्टि राइंबियाई राइंदियग्गे णं आहिए त्ति हुए कुछ अधिक गुनसठ-गुनसठ अहोरात्र की होती है। वएज्जा ।
-सूरिय. पा. १२, सु. ७५ । जंबुद्दीवस्स चउसु दिसासु वासाईणं परूवणं
जम्बूद्वीप की चारों दिशाओं में वर्षा आदि की प्ररूपणा५६. ५०-जया ण भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स ५६. प्र०-भगवन् ! जब जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत से
दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं दक्षिणार्ध में वर्षा का प्रथम समय होता है तब उत्तरार्ध में भी उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पश्विज्जइ? वर्षा का प्रथम समय प्रतिपन्न होता है ? जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ। जब उत्तरार्ध में वर्षा का प्रथम समय होता है तब जम्बूद्वीप तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम- द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व-पश्चिम में अनन्तर द्वितीय समय में पच्चत्यिमेणं अणंतर पुरक्खड समयंसि वासाणं पढमे वर्षा का प्रथम समय प्रतिपन्न होता है ?
समए पडिवज्जइ? उ०-हता गोयमा ! जया जं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे उ०-हाँ गौतम ! जब जम्बूद्वीप द्वीप के दक्षिणार्ध में वर्षा
वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ । (शेष) तहेव जाव का प्रथम समय होता है। (शेष) उसी प्रकार -यावत्-वर्षा वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ ।
का प्रथम समय प्रतिपन्न होता है ? ५०-जया गं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थि- प्र०-भगवन् ! जब जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्बत के पूर्व में
मेणं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ तया गं पच्चत्यि- बर्षा का प्रथम समय प्रतिपन्न होता है तब पश्चिम में भी वर्षा मेण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ? का प्रथम समय होता है ? जया णं पच्चत्थिमेणं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, जब पश्चिम में वर्षा का प्रथम समय होता है तब जम्बूद्वीप तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहि- द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर दक्षिण में अनन्तर द्वितीय समय में गणं अणंतर पच्छाकड समयंसि वासाणं पढमे समए वर्षा क प्रथम समय प्रतिपन्न होता है ?
पडिवन्ने भवइ? उ०-हंता गोयमा ! जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव- उ-हाँ गौतम ! जब जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व
यस्स पुरथिमेणं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ- में वर्षा का प्रथम समय प्रतिपन्न होता है । पूर्ववत् कहना चाहिए तह चेव उच्चारेयव्वं जाव पडिबन्ने भवइ । __-यावत्-प्रतिपन्न होता है। एवं जहा (१) समएणं अभिलावो भणिओ वासाणं जिस प्रकार वर्षा के (१) समय का अभिलाप कहा-उसी तहा (२) आवलियाए वि भाणियब्वो । प्रकार (२) आवलिका का भी कहना चाहिए। (३) आणापाणूण वि, (४) थोवेण वि, (५) लवेण (३) आनप्राण का भी, (४) स्तोक का भी, (५) लव का वि, (६) मुहत्तेण वि, (७) अहोरत्तेण वि, (८) पक्खेणं भी, (६) मुहूर्त का भी, (७) अहोरात्र का भी, (८) पक्ष का भी, वि, (६) मासेण वि, (१०) उउणा वि। (६) मास का भी, (१०) ऋतु का भी, एएसि सन्वेसि जहा समयस्स अभिलावो तहा भाणि- जिस प्रकार समय का अमिलाप कहा उसी प्रकार ये सब यन्वो ।
अभिलाप कहने चाहिए ।
१ ठाणं. ६, सु. ५२६ । २ चंदस्स णं संवच्छरस्स एगमेगे ऊऊ एगुणसटुिं ।इंदियाइं राइदियग्गे णं पण्णत्ता,
-सम. ५६, सु.१