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________________ सूत्र ५७ काल लोक करण के भेद और उनके चर - स्थिर की प्ररूपणा करणभेया तेसि चर-थिरत्तपरूवणं५७. ५० कति णं भंते ! करणा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! एक्कारस करणा पण्णत्ता । तं जहा(१) व (२) बाल, (३) कोल, (४) पीलिय (५) गराइ, (६) वणिज्जं, (७) विट्ठी, (८) सउणी, (e) चउप्पयं, (१०) नागं, (११) किग्धं । प० -- एएसि णं भंते ! एक्कारसन्हं करणाणं कति करणा चरा । कति करणा थिरा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! सत्त करणा चरा, चत्तारि करणा थिरा पण्णत्ता । तं जहां (१) बवं, (२) बालवं, (३) कोलवं, (४) थिविलो - अणं, (५) गरादि, (६) वणिज्जं (७) बिट्ठी । - एएणं सत्तकरणा चरा पण्णत्ता । चत्तारि करणा थिरा पण्णत्ता । तं जहा(१) सउणी, (२) चउप्पयं, (३) णागं, (४) कित्थुग्धं । एएणं चत्तारि करणा थिरा पण्णत्ता । प० एएणं मंते ! चरा वा थिरा वा कया चवंति ? उ०- गोयमा ! सुक्क पक्खस्स पडिवाए राओ "बवे" करणे — भवइ । बितियाए दिवा 'बालवे' करणे भवइ, राओ 'कोलवे' करणे भवइ । ततियाए दिवा "थोविलोभणं" करणं भवइ । राओ "गराई" करणे भवइ । चत्थीए दिवा " वणिज्जं" राओ "विट्ठी" । पंचमीए दिवा "ब", राओ " बालवं" । छट्टीए दिवा "कोलवं" राओ "थोविलोअणं" । सतमोए दिया "गराइ", राओ "बभिन्नं"। अट्टमीए दिया "विट्ठी", राम्रो "ब" । नवमीए दिवा "गालवं", राओ "कोलवं" । दसमीए दिवा "थीविलोभणं", राओ "गराई" एक्कारसीए दिया "ब" राम्रो "बिट्टी"। बारसीए दिवा "ब" राम्रो "बाल"। तेरसीए दिवा "कोलवं" राओ "थीविलोअणं" । च उद्दसीए दिवा " गराई" राओ " वणिज्जं" । पुष्णिमाए दिया "विट्ठी" राओ "वयं"। बहुपक्र पडिवाए दिया बाल, राम्रो कोल 1 1 बितियाए दिवा थीविलोअणं, राओ गरादि । ततिआए दिवा " वणिज्जं " राओ " बिट्ठी" । 1 गणितानुयोग ७२९ करण के भेद और उनके चरर्नयर की प्ररूपणा५७. प्र० - भगवन् ! करण कितने कहे गये हैं ? उ०- गौतम ! करण इग्यारह कहे गये हैं, यथा(१) वव, (२) बालव, (३) कोलव, (४) स्त्रीविलोचन, (५.) गरादि, (६) वणिज, (७) विष्टी, (८) शकुनी, (६) चतुष्पद, (१०) नाग, (११) किंस्तुघ्न । - प्र० - भगवन् ! इन इग्यारह करणों में कितने करण चर हैं। और कितने करण स्थिर हैं ? उ०- गौतम ! सात करण चर हैं, चार करण स्थिर हैं, यथा (१) बव, (२) बालव, ३. कोलव, (४) स्त्री विलोचन, (५) गरादि, (६) वणिज, (७) विष्टी । ये सात करण चर कहे गये हैं । चार करण स्थिर कहे गये हैं, यथा (१) शकुनी, (२) चतुष्पद, (३) नाग, (४) किंस्तुघ्नं । ये चार करण स्थिर कहे गये हैं । प्र - भगवन् ! ये चर और स्थिर कब होते हैं ? उ०- - गौतम ! शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा की रात्रि में "बव" करण होता है । द्वितीया के दिन "बालव" करण होता है रात्रि में "कोलव" करण होता है । तृतीया के दिन में स्त्रीविलोचन करण होता है, रात्रि में 'गराई' करण होता है । चतुर्थी के दिन में 'वणिज करण, रात्रि में विष्टी करण । पंचमी के दिन में बब करण, रात्रि में बालव करण । छट्ट के दिन में कोलव करण, रात्रि में स्त्रीविलोचन करण । सप्तमी के दिन में गराइ करण, रात्रि में वणिज करण । अष्टमी के दिन मे विष्टीकरण, रात्रि में 'बव' करण । नवमी के दिन में बालव करण, रात्रि में कोलव करण । इसमी के दिन में स्त्रीविलोचनकरण, रात्रि में जिकरण एकादशी के दिन में वणिज करण, रात्रि में विष्टी करण । द्वादशी के दिन में बव करण, रात्रि में बालव करण । त्रयोदशी के दिन में कोलवकरण, रात्रि में स्त्रीविलोचनकरण । चतुर्दशी के दिन में गराई करण, रात्रि में वणिज करण । पूर्णिमा के दिन में विष्टीकरण, रात्रि में बव करण । कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन में बालव करण, रात्रि में कौलव करण | द्वितीया के दिन में स्त्रीविलोचन करण, रात्रि में गरादि करण । तृतीया के दिन में वणिज करण, रात्रि में विष्टी करण ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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