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________________ सूत्र४८ काललोक : एक युग के अहोरात्र और मुहूर्त का प्रमाण गणितानुयोग ७२३ एगस्स जुगस्स अहोरत्त-महत्तप्पमाणं एक युग के अहोरात्र और मूहर्त का प्रमाण४८. (क) प्र०–ता केवइयं ते नो जुगे राइंदियग्गे ? आहिए ति ४८. (क) प्र०-अपूर्ण युग के कितने अहोरात्र होते हैं ? कहें । वएज्जा। उ.-ता सत्तरस एकाणउए राइंबियसए, एगूणवीसं उ०-सत्रह सौ इकाणवे अहोरात्र, उणतीस मुहूर्त एक च मुहत्तं, सत्तावण्णे बासट्ठिभागे मुहत्तस्स, मुहूर्त के बासठ भागों में से सत्तावन भाग और बासठवें भाग के बासट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छत्ता पणपन्नं चुणिया सडसठ भागों में से पचपन लघुतम भाग अहोरात्र के हैं । भागे राइंदियग्गेणं आहिए त्ति वएज्जा । (ख) प०–ता से णं केवइए मुहत्तग्गे गं ? आहिए ति (ख) प्र०-उस 'अपूर्ण युग' के कितने मुहुर्त होते हैं ? वएज्जा। उ०-ता तेवण्णमुहत्तसहस्साई, सत्त य अउणापन्ने उ०-पन हजार सात सौ उनपचास मुहूर्त एक मुहूर्त के मुहत्तसए, सत्तावण्णं बासट्ठिभागे मुहुत्तस्स, बासठ भागों में से सत्तावन भाग और बासठवें भाग के सहसठ बासदिमागं च सत्तट्ठिधा छत्ता पणपण्णं चुणिया भागों में से पचपन लघुतम भाग मुहूर्त के हैं । भागा मुहुत्ते णं, आहिए त्ति वएज्जा । (ग) ५०–ता केवइए णं ते जुगपत्ते राइंदियग्गे गं? आहिए (ग) प्र०-पूर्णता प्राप्त युग के कितने अहोरात्र होते हैं ? त्ति वएज्जा। कहें। उ०–ता अद्रुतीसं राइंदियाइं दस य मुहुत्ता, चत्तारि य उ०-अडतीस अहोरात्र दस मुहूर्त एक मुहूर्त के बासठ बासट्ठिभागे मुहत्तस्स, बासट्ठिभागं च सत्तद्विधा भागों में से चार भाग, और बासठवें भाग के सडसठ भागों में से छत्ता दुवालसचुण्णियामागे राइंदियग्गे गं, बारह लघुतम भाग अहोरात्र के 'प्रक्षिप्त करने पर पूर्ण युग के आहिए त्ति वएज्जा। अहोरात्र' होते हैं। (घ) प०–ता से णं केवइए मुहुत्तग्गे गं ? आहिए त्ति (घ) प्र०–'पूर्णता प्राप्त' युग के कितने मुहूतं होते हैं ? वएज्जा । कहें। उ०—ता एक्कारस पण्णासे मुहुत्तसए, चत्तारि य उ०-इग्यारह सौ पचास मुहूर्त एक मुहूर्त के बासठ भागों बासट्ठिभागे मुहुत्तस्स, बासट्ठिभागं च सत्तद्विधा में से चार भाग और बासठवें भाग के सडसठ भागों में से बारह छेत्ता दुवालस चुण्णिया भागे मुहुत्तग्गे णं, आहिए लघुतम भाग मुहूर्त के 'प्रक्षिप्त करने पर पूर्ण युग के मुहूर्त' त्ति वएज्जा। होते हैं। (ङ) प०–ता केवइयं जुगे राइंदियग्गे गं ? आहिए ति (ङ) प्र०–'परिपूर्ण' युग के अहोरात्र कितने होते हैं ? वएज्जा । उ०-ता अट्ठारस तोसे राइंदियसए राइंदियग्गे णं उ०-अठारह सौ तीस अहोरात्र होते हैं। आहिए त्ति वएज्जा। (च) प०–ता से णं केवइए मुहुत्तग्गे गं? आहिए ति (च) प्र०-'परिपूर्ण' युग के कितने मुहूर्त होते हैं ? कहें। वएज्जा। उ०-ता चउप्पण्णं मुहुत्तसहस्साई णव य मुहुत्तसयाई उ०-चौपन हजार नव सौ मुहर्त होते हैं। मुहुत्तग्गे णं, आहिए त्ति वएज्जा। (छ) ५०–ता से गं केवइए बासट्ठिभाग मुहुत्तग्गे गं? (छ) प्र०-'परिपूर्ण' युग के मुहूर्तों के कितने बासठिए आहिए ति वएज्जा। भाग होते हैं ? कहें।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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