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लोक- प्रज्ञप्ति
पमाण संवास्स भैया
४४. ता पमाण संवच्छरे णं पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा
(१) गक्से (२) पदे, (३) बडू, (४) आइये, (५) अभिवद्दिए। रिय. पा. १० पाहू. २०, सु. ५७ लक्खण संवच्छरस्स भेया
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४५. ता लक्खण संवच्छरे णं पंचविहे पण्णत्ते तं जहा(१), (२), (३) उबू, (४) आइचे, (५) अभिव - सूरिय. पा. १०, पाहु. २०, सु. ५८ । सणिच्छर संवच्छरस्स भेया
४६. ताणिच्छर संवरे णं अट्ठावीस बिहे पण ते तं जहा (१) अभय, (२ बजे, (३) धणिट्ठा, (४) सतभिसया, (५) पुब्वा पोट्ठवया, (६) उत्तरा पोट्ठवया, (७) रेवई, (८) असिणी, (९) चरणी, (१०) कलिय, (११) रोहिणी, (१२) संठाणा, (१३) अद्दा, (१४) पुणव्वसू, (१५) पुस्से, (१६) अस्सेसा, (१७) महा, (१८) पुव्वाफग्गुणी, (१९) उत्तराफग्गुणी (२०) हत्थे (२१) बित्ता, (२२) साई, (२३) विसाहा, (२४) अणुराहा, (२५) जेट्ठा, (१६) मूले, (२७) पुव्वासाढा, (२८) उत्तरासाढा ।
सूरिव पा. १०, पाहु. २०, सु. १० एग संयच्छरस्त मासा
४७. ५० - ता कहं ते मासा ? आहिए ति वएज्जा ।
उ०- ता एगमेगल्स णं संवच्छरस्स बारस मासा पण्णता ।
तेसि च दुविहा णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा(१) लोइया, (२) नोउत्तरिया व
-
तत्थ लोइया णामा
(१) साबणे, (२) भए, (३) आसोए, (४) कलिए, (५) मानसरे, (६) पोसे, (७) माहे, (८) गुणे, (१) चेते, (१०) वेसाहे, (११) जेट्ठ े (१२) आसाढे । लोउत्तरिया णामागाहाबो
काल लोक प्रमाण संवत्सर के भेद
(१) अभिनंदणे, (२) सुपइट्ठ य, (२) विजए, (४) पोहणे,
(५) सेब (६) सिया वि
य,
(७) सिसिरे विप, (८) हेमयं ॥१॥
(१) नवमे वसंतमासे, (१०) उसमे कुसुमसंभवे ।
(11) एकमेव (१२) वर्णाविरोही व बारसे
1
॥२॥
— सूरिय. पा. १०, पाहु. १०. सु. ५३ ।
१ (क) ठाणं ५, उ. ३, सु. ४६०
२ जंबु. वक्ख. ७, सु, १५२
सूत्र ४४-४७
प्रमाण संवत्सर के भेद
४४. प्रमाण संवत्सर पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा
(१) नक्षत्र संवत्सर, (२) चन्द्र संवत्सर, (३) ऋतु संवत्सर, (४) आदित्य संवत्सर, (५) अभिधित संवत्सर । लक्षण संवत्सर के भेद
४५. लक्षण संवत्सर पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा
(१) नक्षत्र संवत्सर, (२) चन्द्र संवत्सर, (३) ऋतु संवत्सर, ( ४ ) आदित्य संवत्सर, (५) अभिर्वाधित संवत्सर । शनैश्चर संवत्सर के भेद
४६. शश्वर संवत्सर अठाईस प्रकार का कहा गया है, यथा
(१) अभिजित, (२) खवण, (३) धनिष्ठा, (४) भयक (५) पूर्वाभाद्रपद, (६) उत्तराभाद्रपद, (७) रेवती, (८) अश्विनी, (९) भरणी, (१०) कृतिका, (११) रोहिणी, (१२) संस्थान, (मिगशिरा), (१३) आर्द्रा, (१४) पुनर्वसु, (१५) पुष्य, (१६) अश्लेषा, (१७) मघा, (१८) पूर्वाफाल्गुनी, (१६) उत्तराफाल्गुनी, (२०) इस्त, (२१) चित्रा, (२२) स्वाति (२३) विशाखा, (२४) अनुराधा, (२५) ज्येष्ठा, (२६) मूल, (२७) पूर्वाषाढा, (२८) उत्तराषाढा ।
एक संवत्सर के मास -
४७. प्र०—एक संवत्सर के मास कितने हैं ? कहें । उ०- प्रत्येक संवत्सर के बारह मास कहे गए हैं, उनके नाम दो प्रकार के कहे गए हैं यथा
(१) लौकिक, (२) लोकोत्तर
इनमें लौकिक बारह मास के नाम,
(१) श्रावण (२) भाद्रपद, (३) आसोज, (४) कार्तिक, (५) मार्गशीर्ष, (५) पोष, (७) माघ, (८) फाल्गुन (१) चैत्र, (१०) वैशाख, (११) जेष्ठ, (१२) आषाढ । लोकोत्तर बारह मास के नामगाथार्थ -
(१) अभिनन्दन (२) सुप्रतिष्ठ, (३) विजय, (४) प्रीतिवर्धन, (५) श्रेयांस, (६) शिव, (७) शिशिर, (८) हिमवान, (६) वसंत, (१०) कुसुमसम्भव, (११) निदाघ, (१२) वनविरोधी ।
(ख) जंबु. वक्ख. ७, सु. १५१