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________________ सूत्र ४१-४३ काल लोक : नक्षत्र संवत्सर के भेव और उसका काल प्रमाण गणितानुयोग २१ प०-ता से णं केवइए मुहुत्तग्गे गं ? आहिए त्ति वएज्जा। (ख) प्र०-उस "अभिवधित मास" के कितने मुहूर्त होते हैं ? कहें। उ०-ता णव एगूणस? मुहुत्तसए सत्तरसबासट्ठिभागे उ०-नौ सौ गुणसठ मुहूर्त और एक मुहूर्त के बासठ भागों मुहुत्तस्स मुहुत्तग्गे णं आहिए त्ति वएज्आ। में से सत्रह भाग होते हैं। प०-ता एस णं अद्धा दुवालसखुत्तकडा अभिवड्ढियसंवच्छरे, (ग) प्र०-बारह अभिवधित मासों का एक अभिवधित ता से णं केवइए राइदियग्गे णं? आहिए त्ति वएज्जा। संवत्सर होता है, उसके कितने अहोरात्र होते हैं, कहें। उ०–ता तिण्णि तेसीए राइंबियसए एक्कतीसं च मुहुत्ता उ०-तीन सौ तियासी अहोरात्र, इकतीस मुहूर्त और एक अट्ठारस बासट्ठिभागे मुहुत्तस्स राइंदियग्गे णं आहिए त्ति मुहूर्त के बासठ भागों में से अठारह भाग होते हैं । वएज्जा। प०–ता से णं केवइए मुहुत्तग्गे गं ? आहिए त्ति वएज्जा। (घ) प्र०-उस "अभिवधित संवत्सर" के कितने मुहूर्त होते हैं ? कहें। उ०–ता एक्कारसमुहुत्तसहस्साई पंच य एक्कारसमुहुत्तसए उ०-इग्यारह हजार पाँच सौ इग्यारह मुहूर्त और एक अट्ठारस बासट्ठिभागे मुहुत्तस्स मुहुत्तग्गे णं आहिए त्ति मुहूर्त के बासठ भागों में से अठारह भाग होते हैं । वएज्जा। -सूरिय. पा. १२, सु. ७२ णक्खत्त संवच्छरस्स भेया तेसि काल पमाणं च- नक्षत्र संवत्सर के भेद और उसका काल प्रमाण४२. (क) ता णक्खत्तसंवच्छरे णं दुवालसविहे पण्णते, तं जहा- ४२. नक्षत्र संवत्सर बारह प्रकार का कहा गया है, यथा (१) सावणे, (२) भद्दवए, (३) आसोए, (४) कत्तिए, (१) श्रावण, (२) भाद्रपद, (३) आश्विन, (४) कार्तिक, (५) मग्गसिरे, (१) पोसे, (७) माहे, (6) फग्गुणीए, (५) मार्गशीर्ष, (६) पौष, (७) माघ, (८) फाल्गुन, (९) चैत्र, (९) चित्ते, (१०) वइसाहे, (११) जेट्ट, (१२) (१०) वैशाख, (११) जेष्ठ, (१२) आषाढ । आसाढे। -सूरिय. पा. १०, पाहु. २०, सु. ५५ जुगसंवच्छरस्स भेया तेसि काल पमाणं च युगसंवत्सर के भेद और उनका काल प्रमाण४३. ता जुगसंवच्छरे गं पंचविहे पण्णते, तं जहा ४३. युग संवत्सर पांच प्रकार का कहा गया है, यथा(१) चंदे, (२) चंदे, (३) अभिवढिए, (४) चंदे, (१) चन्द्र, (२) चन्द्र, (३) अभिवधित, (४) चन्द्र, (५) अभिवढिए,' (५) अभिवधित। (१) ता पढमस्स ण चंद संवच्छरस्स चउवीसंपव्वा पण्णत्ता (१) प्रथम चन्द्र संवत्सर के चौवीस पर्व कहे गये हैं। (२) दोच्चस्स णं चंद संवच्छरस्स चउवीसं पव्वा पण्णता । (२) द्वितीय चन्द्र संवत्सर के चौवीस पर्व कहे गये हैं। (३) तच्चस्स णं अभिवढिय संवच्छरस्स छन्वीसं पव्वा (३) तृतीय अभिवधित संवत्सर के छब्बीस पर्व कहे गये हैं। पण्णत्ता। (४) चउत्थस्स णं चंद संवच्छरस्स चउवीसं पब्बा पण्णत्ता । (४) चतुर्थ चन्द्र संवत्सर के चौवीस पर्व कहे गये हैं। (५) पंचमस्स णं अभिवढिय संवच्छरस्स छम्वीस पव्वा (५) पंचम अभिवधित संवत्सर के छब्बीस पर्व कहे गये हैं। पण्णत्ता। एवामेव सपुवावरेणं पंचसंवच्छरिए जुगे एगे चउवीसे पब्व- इस प्रकार पहले पीछे के सब मिलाकर पंच संवत्सरीय युग सए भवंतीतिमक्खायं । के एक सौ चौवीस पर्व होते हैं । -सूरिय. पा. १०, पाहु. २०, सु. ५६ । १ ठाणं. ५, उ. ३, सु. ४६० २ जंबु. वक्ख. ७, सु. १५१
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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