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________________ ७२० लोक- प्रज्ञप्ति काल लोक : चतुर्थ आदित्य संवत्सर पता से णं केवइए मुहुत्तग्गे णं ? आहिए त्ति वएज्जा ? उ०- ता गवतसवाई तो आहिए ति बा प० - ता एस णं अद्धा दुवालसखुत्तकडा उडू संवच्छरे, ता से णं केवइए राइदियो ? आहिए सि एग्जा उ०ता तिमि सट्ट े राईदियस राईदियो णं आहिए सि वएज्जा । प०-ता से णं केवइए मुहुत्तग्गे णं ? आहिए ति वएज्जा । उ० – ता बसमुहुत्तसहस्साइं अट्ठ य सयाई मुहुत्तग्गे णं आहिए त्ति वएज्जा । चउत्वं आच्चसंयच्छरं प० - ता एएसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चउत्थस्स आदिच्चसंवछरस्स आइचे मासे सोसमुहले गं तीसद णं अहोरणं मिज्जमाने केवहए राईदियग्ने ? आहिए सि एया। उ०- ता तीसं राइंदियाई अवद्धभागं च राईदियस्स राइदियग्ने आहिए सि एग्जा प० -ता से णं केवइए मुहुत्तग्गे णं ? आहिए ति वएज्जा । उ०- ता णव पण्णरस मुहुत्तसए मुहुत्तग्गे णं आहिए त्ति वएज्जा । प० -ता एस णं अद्धा वुवालसखुत्तकडा आदिच्चे संवच्छरे, ता से णं केवइए राइदियग्गे णं ? आहिए त्ति वएज्जा उ०- ता तिन्नि छाबट्ट राईदियसए राईदियग्गे णं आहिए ति वएज्जा । प० -ता से णं केवइए मुहुत्तग्गे णं आहिए ति वएज्जा । उ० – ता दसमुहुत्तस्स सहस्साइं णव असीए मुहुत्तसए मुहुसम्मे गं, आहिए ति बना]। पंचम अभिवद्द्यवच्छरं प० - ता एएसि णं पंचन्हं संवच्छराणं पंचमस्स अभिवयसंवण्ठरस्त अभिवद्दिए मासे तो तीसह तोसइमुहुतेणं, मुहुत्ते णं राइदियग्गे मुदसे में अहोर मिज्जमाने केवइए राई णं ? आहिए ति वएज्जा । उ०- - ता एमतीसं राइंबियाई एगूणतीसं च मुहत्ता सत्तरस्स सरस राईदियो आहिए ति णं बासट्टिमागे वएज्जा । (च) प्र० उस "ऋतुमास" के कितने मुहूर्त होते हैं ? कहें। उ०- नव सौ मुहूर्त होते हैं । (ग) प्र० - बारह ऋतुमासों का एक संवत्सर होता है, उसके कितने अहोरात्र होते हैं? कहें। उ०- उस "ऋतु संवत्सर" के तीन सौ साठ अहोरात्र होते हैं । (घ) प्र० - उस " ऋतु संवत्सर" के कितने मुहूर्त होते हैं ? कहें। उ०- दस हजार आठ सौ मुहूर्त होते हैं । सूत्र ४१ चतुर्थ आदित्य संवत्सर (क) प्र० -- इन पाँच संवत्सरों में से चतुर्थ आदित्य संवत्सर के आविश्यमास तीस-तीस मुहूर्त के अहोरात्र से मापने पर कितने अहोरात्र होते हैं ? कहें। कहें। उ०- उस "आदित्य मास" के तीस अहोरात्र और एक अहोरात्र का आधा भाग होता है । (ख) प्र० - उस " आदित्य मास" के कितने मुहूर्त होते हैं ? उ०—उस ‘आदित्यमास" के नौ सौ पन्द्रह मुहूर्तं होते हैं । (ग) प्र० बारह आदित्यमास का एक आदित्य संवत्सर होता है, उसके कितने अहोरात्र होते हैं ? कहें । -- उ०- उस " आदित्य संवत्सर" के तीन सौ साठ अहोरात्र होते हैं। (घ) प्र० उस "आदित्य संवत्सर" के किसने मुहूर्त होते हैं ? कहें । उ० – दस हजार नौ सौ अस्सी मुहूर्त होते हैं । पंचम अभिवधित संवत्सर (क) प्र० – इन पाँच संवत्सरों में से पाँचवे अभिर्वाधित संवत्सर के अभिर्वाधित मास तीस-तीस मुहूर्त के अहोरात्र से मापने पर उसके कितने अहोरात्र होते हैं ? उ० – इगतीस अहोरात्र उनतीस मुहूर्त और एक मुहूर्त के बासठ भागों में से समह भाग होते हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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