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________________ ७१२ लोक-प्रज्ञप्ति काल लोक : अनागत काल से सर्वकाल का कुछ कम दुगुनापन सूत्र ३३-३६ . ... सव्वद्धाए अणागयकालओ थोवणदुगुणत्तं- अनागत काल से सर्वकाल का कुछ कम दुगुनापन३३. ५०-सव्वद्धा णं भंते ! किं संखेज्जाओ अणागयद्धाओ, ३३. प्र०--भगवन् ! अनागत काल से सर्वकाल क्या संख्यात हैं, असंखेज्जाओ अणागयद्धाओ, अणंताओ अणागयद्धाओ? असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ अणागयद्धाओ, नो असंखे- उ०-गौतम ! अनागत काल से सर्वकाल न संख्यात हैं, न ज्जाओ अणागयद्धाओ, नो अणंताओ अणागयद्धाओ। असंख्यात हैं और न अनन्त हैं। सम्वद्धा णं अणागयद्धाओ थोवूणदुगुणा । अनागत काल से सर्वकाल कुछ कम दुगुना है। अणागयद्धा णं सव्वद्धाओ साइरेगे अद्धे । सर्वकाल से अनागत काल कुछ अधिक दुगुना है । -भग. स. २५, उ.५, सु. ४४ पोग्गलपरियट्टस्स भेया पुद्गल परावर्त भेदों का प्ररूपण३४. तिविहे पोग्गलपरिय?' पण्णत्ते, तं जहा ३४. पुद्गल परावर्त तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा(१) तीए, (१) अतीत पुद्गल परावर्त, (२) पड़प्पन्न, (२) वर्तमान पुद्गल परावर्त, (३) अणागए। (३) अनागत पुद्गल परावर्त । ठाणं अ. ३, उ. ४, सु. १६७ । परमाण पोग्गलाणं अणंताणंत पोग्गलपरियट परूवणं- परमाणु पुद्गलों के अनन्तानन्त पुद्गल परावर्तों का प्ररूपण३५. १०-एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं साहणणा' भेदाणु- ३५. प्र०-भगवन् ! इन परमाणु पुद्गलों के संयोग वियोग से वाएणं अणंताणंता पोग्गलपरियट्टा समणुगंतव्वा अनन्तानन्त पुद्गल परावर्त जानने चाहिए, ऐसा कहा गया है ? भवंतीति मक्खाया ? उ०-हता गोयमा ! एएसि णं परमाणुपोग्गलाणं साहणणा उ०-हाँ गौतम ! इन परमाणु पुद्गलों के संयोग वियोग से भेदाणुवाएणं अणंताणंता पोग्गलपरियट्टा समणुगंतव्वा अनन्तानन्त पुद्गल परावर्त जानने चाहिए, ऐसा कहा गया है। भवंतीत मक्खाया। भग. स. १२, उ. ४, सु. १४ पोग्गलपरियट्टस्स भेयसत्तग परूवणं पुद्गल परावर्त के सात भेदों का प्ररूपण३६. ५०-कइविहे णं भंते ! पोग्गलपरियट्ट पण्णत्ते ? ३६. प्र०-भगवन् ! पुद्गल परावर्त कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! सत्तविहे पोग्गलपरिय? पण्णते। उ०-गौतम ! पुद्गल परावर्त सात प्रकार के कहे गये हैं । तं जहा यथा पण्णत्त! १ "पोग्गलपरिय?" त्ति पुद्गलानां-रूपिद्रव्याणामाहारक वर्जितानां औदारिकादिप्रकारेण ग्रहणतः एक जीवापेक्षया परिवर्तनं सामस्त्थेन स्पर्शः पुद्गलपरिवर्तः, स च यावता कालेन भवति, स कालोऽपि पुद्गल परिवर्तः, स च यावता कालेन भवति, स कालोऽपि पुद्गलपरिवर्तः सचानन्तोत्सपणिण्यवसर्पिणीरूप इति । २ "साहणणत्ति" प्राकृतत्वात् संहननम्-संघातः भेदश्च वियोजनम् तयोः अनुपातः योगः संहननभेदानुपातः, तेन सर्वपुद्गलद्रव्यैः सहपरमाणूतां संयोगेन वियोगेन चेत्यर्थः । 'अनन्तेनगुणिता अनन्ता अनन्तानन्ताः । एकोऽपि हि परमाणु द्वर्वणुकादिभिरनन्ताणुकान्तै द्रव्योः सह संयुज्यमानः अनन्तान् परिवर्तनं लभते, प्रतिद्रव्यं परिवर्तभावात् अनन्तत्वाच्च परमाणुनाम् प्रतिपरमाणु चानन्तत्वात् परिवर्तानां परमाणु पुद्गले परिक्षनिनामनतत्व द्रष्टव्यम् पुद्गलः-पुद्गलद्रव्यैः सहपरिवर्ताः- परमाणूनां मिललानि पुद्गलपरिवर्ताः ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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