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________________ सूत्र २९-३२ काल लोक : अतीत काल के पुद्गल परिवर्तनों का अनन्तत्व गणितानुयोग ७११ जीओ, अणंता अवपिणी उ काल की अ उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ, उ०-गौतम ! संख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नहीं हैं। नो असंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ, अणंताओ असंख्यात अवसर्पिणी उत्सर्पिणी भी नहीं हैं, अपितु अनन्त ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ। अवसर्पिणी उत्सर्पिणी हैं। एवं-जाव-सव्वद्धा' इसी प्रकार सर्वकाल की अवसर्पिणी उत्सपिणी हैं। प०-पोग्गलपरियट्टा णं भंते ! किं संखेज्जाओ ओसप्पिणि- प्र०-भगवन् ! पुद्गल परिवर्तनों को अवसपिणियाँ और उस्सप्पिणीओ-जाव अणंताओ ओसप्पिणि-उस्सप्पि- उत्सपिणियाँ संख्यात हैं यावत्-अनन्त हैं ? णीओ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ, उ०- गौतम ! संख्यात अवसपिणियाँ उत्सपिणियाँ नहीं हैं, नो असंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ, अणंताओ असंख्यात नहीं हैं, अनन्त हैं । ओसप्पिणीओ। -भग. स. २५, उ. ५, सु. ३६-३८ तीतद्धाइसु पोग्गलपरियट्टाणं अणंतत्तं अतीत काल के पुद्गल परिवर्तनों का अनन्तत्व३०.५०-तीतद्धा णं भंते ! किं संखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ३०. प्र०-भगवन् ! अतीत काल के पुद्गल परावर्तन क्या असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा अणंता पोग्गलपरियट्टा? संख्यात थे, असंख्यात थे, या अनन्त थे? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, नो असंखेज्जा उ०-गौतम ! संख्यात दुद्गल परिवर्तन नहीं थे, असंख्यात पोग्गलपरियट्टा अणंता पोग्गलपरियट्टा । नहीं थे, अनन्त थे। एवं अणागतद्धा वि। इसी प्रकार अनागत काल के पुद्गल परिवर्तन होंगे। एवं सम्बद्धा वि । इसी प्रकार सर्वकाल के पुद्गल परिवर्तन हैं। -भग. स. २५, उ. ५, सु. ३६-४१ अणागयकालस्स अतीतकालओ समयाधिकत्तं- अतीत काल से अनागत काल का समयाधिकत्व३१. ५०-अणागयद्धा णं भंते ! कि संखेज्जाओ तीतद्धाओ, ३१. प्र०-भगवन् ! अतीत काल से अनागत काल क्या संख्यात असंखज्जाओ तीतद्धाओ, अणंताओ तीतद्धाओ? हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं । उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ तीतद्धाओ, नो असंखेज्जाओ उ०-गौतम ! अतीत काल से संख्यात नहीं हैं, असंख्यात तोतद्धाओ, नो अणंताओ तीतद्धाओ। नहीं हैं, अनन्त नहीं है। अणागयद्धा गं तोतद्धाओ समयाहिया, अतीत काल से अनागत काल एक समयाधिक हैं । तीतद्धाणं अणागयद्धाओ समयूणा। अनागत काल से अतीत काल एक समय कम हैं । -भग. स. २५, उ. ५, सु. ४२ सम्वद्धाए अतीतकालओ साइरेगद्गुणत्तं अतीत काल से सर्वकाल का कुछ अधिक दुगुनापन३२. ५०-सव्वद्धा णं भंते ! किं संखेज्जाओ तीतद्धाओ-जाव- ३२. प्र०-भगवन् ! अतीत काल से सर्वकाल क्या संख्यात हैं ? अणंताओ तीतद्धाओ? -यावत्-अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ तीतद्धाओ-जाव-नो अणंताओ उ०-गौतम ! अतीत काल से सर्वकाल न संख्यात हैंतीतद्धाओ। यावत्-न अनन्त हैं। सव्वद्धा णं तीतद्धाओ साइरेगदुगुणा, अतीत काल से सर्वकाल कुछ अधिक हैं। तीतद्धाणं सव्वद्धाओ थोवूणए अद्धे । सर्वकाल से अतीत काल कुछ कम हैं। -भग. स. २५, उ.५, सु. ४३ ३ एकबचन के सूत्र ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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