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________________ ७१० लोक-प्रज्ञप्ति काल लोक : सागरोपमादि में पल्योपमों की संख्या का प्ररूपण सूत्र २६-२९ सागरोवमाइसु पलिओवमसंखापरूवर्ण सागरोपमादि में पल्योपमों की संख्या का प्ररूपणएगत्त विवक्खा एकत्व विवक्षा२६.५०-सागरोवमेणं भंते ! कि संखेज्जा पलिओवमा, २६. प्र०-भगवन् ! सागरोपम के पल्योपम क्या संख्यात हैं, असंखेज्जा पलिओवमा, अणंता पलिओवमा? असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! संखेज्जा पलिओवमा, नो असंखेज्जा पलि- उ०-गौतम ! संख्यात पल्योपम हैं, असंख्यात पल्योपम ओबमा, नो अणंता पलिओवमा । नहीं हैं, अनन्त पल्योपम नहीं हैं । एवं ओसप्पिणी वि, उस्सप्पिणी वि । इसी प्रकार अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के पल्योपम हैं। प०-पोग्गलपरिय? णं भंते ! किं संखेज्जा पलिओवमा प्र०-भगवन् ! पुद्गल परावर्तन के पल्योपम क्या -जाव-अणंता पलिओवमा? | संख्यात हैं ?-यावत्-अनन्त हैं ? . उ०-गोयमा ! नो संखेंज्जा पलिओवमा, नो असंखेज्जा उ०-गौतम ! संख्यात पल्योपम नहीं हैं, असंख्यात पल्योपम पलिओवमा, अणंता पलिओवमा । नहीं हैं, अनन्त पल्योपम हैं । एवं-जाव-सव्वद्धा।' इसी प्रकार-यावत्-सर्वकाल के पल्योपम हैं । बहुत्त विवक्खा बहुत्व विवक्षा२७. प०-सागरोवमा णं भंते ! कि संखेज्जा पलिओवमा-जाव- २७. प्र०-भगवन् ! सागरोपमों के पल्योपम क्या संख्यात हैं ? अणंता पलिओवमा? यावत्-अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! सिय संखेज्जा पलिओवमा, सिय असंखेज्जा उ०-गौतम ! कभी संख्यात हैं, कभी असंख्यात हैं और पलिओवमा, सिय अणंता पलिओवमा । कभी अनन्त पल्योपम हैं। एवं ओसप्पिणी वि, उस्सप्पिणी वि । इसी प्रकार अवसपिणियों और उत्सपिणियों के पल्योपम हैं । प०-पोग्गलपरियट्टा णं भंते ! किं संखेज्जा पलिओवमा- प्र०-भगवन् ! पुद्गल परिवर्तनों के पल्योपम क्य जाव-अणंता पलिओवमा ? संख्यात हैं ?-यावत्-अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जा पलिओवमा, नो असंखेज्जा उ०—गौतम ! संख्यात पल्योपम नहीं हैं, असंख्यात पल्यो पलिओवमा, अणंता पलिओवमा पम नहीं हैं, अनन्त पल्योपम हैं। -भग. स. २५, उ. ५, सु. २८-३४ ओसप्पिणिआइसु सागरोवमसंखा-परूवणं अवसर्पिणी आदि में सागरोपमों की संख्या का प्ररूपण२८.५०-ओसप्पिणी णं भंते ! किं संखेज्जा सागरोवमा, २८.३०-भगवन् ! अवसर्पिणी के सागरोपम क्या संख्यात हैं, असंखेज्जा सागरोवमा, अणंता सागरोवमा? असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! जहा पलिओवमस्स वत्तव्वया तहा सागरो- उ-गौतम ! जिस प्रकार पल्योपम का कथन किया उसी वमस्स वि प्रकार सागरोपम का भी है। -भग. स. २५, उ. ५, सु. ३५ पोग्गलपरियट्ट सु ओसप्पिणि-उस्सप्पिणिसंखापरूवणं- पुद्गल परावर्तन में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी की संख्या का प्ररूपण२८.५०-पोग्गलपरियट्टणं मंते ! कि संखेज्जाओ ओसप्पिणी- २९. प्र०-भगवन् ! पुद्गल परावर्तन की अवसर्पिणी और उस्सप्पिणीओ, असंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ उत्सर्पिणी का संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? अणंताओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ? १ ३ एकवचन के सूत्र । एकवचन और बहुवचन के सूत्र । २ बहुवचन के सूत्र ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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