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________________ सूत्र २३-२५ काल लोक : बहुत्व विवक्षा गणितानुयोग ७०९ उ०-गोयमा! नो संखेज्जाओ आवलियाओ, भसंखेज्जाओ उ०-गौतम ! संख्यात आवलिकायें नहीं हैं। असंख्यात आवलियाओ, नो अणंताओ आवलियाओ। आवलिकाये हैं । अनन्त आवलिकायें नहीं हैं । एवं सागरोवमे वि। एवं ओसप्पिणीए वि, उस्सप्पि- इसी प्रकार एक सागरोपम, एक अवसर्पिणी और एक णीए वि । उत्सर्पिणी की आवलिकायें हैं। प०-पोग्गलपरियट्टणं भंते । किं संखेज्जाओ आवलियाओ प्र०-भगवन् ! एक पुद्गल परावर्तन की आवलिकायें क्या -जाव-अणंताओ आवलियाओ? संख्यात हैं-यावत्-अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ आवलियाओ, नो उ०-गौतम ! न संख्यात आवलिकायें हैं, न असंख्यात असंखेज्जाओ आवलियाओ, अणंताओ आवलियाओ। आवलिकायें हैं, अपितु अनन्त आवलिकायें हैं । एवं-जाव-सव्वद्धा।' इसी प्रकार-यावत्-सर्वकाल की आवलिकायें हैं। बहुत्त विवक्खा बहुत्व विवक्षा-- २४. प०-आणापाणूओ णं भंते ! किं संखेज्जाओ आवलियाओ २४. प्र०-भगवन् ! अनेक श्वासोच्छवासों को आवलिकायें क्या -जाव-अणंताओ आवलियाओ? संख्यात हैं-यावत्-अनन्त है ? उ०-गोयमा ! सिय संखेज्जाओ आवलियाओ, सिय उ०-गौतम ! कभी संख्यात आवलिकायें, कभी असंख्यात असंखेज्जाबो आवलियाओ, सिय अणंताओ आव- आवलिकायें और कभी अनन्त आवलिकायें होती है। लियाओ। एवं-जाव-सीसपहेलियाओ । इसी प्रकार-यावत्-शीर्षप्रहेलिकाओं को आवलिकायें हैं। ५०-पलिओवमा णं भंते ! किं संखेज्जाओ आवलियाओ प्र०-भगवन् ! पल्योपमों की आवलिकायें क्या संख्यात हैं -जाव-अणंताओ आवलियाओ? -यावत्-अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ, सिय असंखेज्जाओ आव- उ०-गौतम ! संख्यात आवलिकाये नहीं हैं, कभी असंख्यात लियाओ, सिय अणंताओ आवलियाओ। आवलिकायें होती है, और कभी अनन्त आवलिकायें होती है। एवं-जाव-उस्सप्पिणीओ। इसी प्रकार-यावत्-उत्सपिणियों की आवलिकायें हैं। प०-पोग्गलपरियट्टा णं भंते ! कि संखेज्जाओ आवलियाओ प्र०-भगवन ! पुद्गल परावर्तनों की आवलिकायें क्या -जाव-अणंताओ आवलियाओ? संख्यात हैं ?-यावत्-अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जाओ आवलियाओ, नो उ०-गौतम ! संख्यात आवलिकायें नहीं हैं, असंख्यात आवअसंखेज्जाओ आवलियाओ, अणंताओ आवलियाओ। लिकायें नहीं हैं, अनन्त आवलिकायें हैं । -भग. स. २५, उ. ५, सु. १३-२५ थोवपभिइसु कालभेएसु आणापाण आईणं संखा- स्तोकादि काल भेदों में श्वासोच्छ्वासों की संख्या का परूवणं प्ररूपण२५. प.-थोवे गं भंते ! कि संखेज्जाओ आणापाणओ. २५. प्र०-भगवन् ! स्तोक के श्वासोच्छवास क्या संख्यात हैं। असंखेज्जाओ आणापाणूओ, अणंताओ आणापाणूओ? असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! जहा आवलियाए बत्तव्वया आणापाणुओ७०-गौतम ! जिस प्रकार आवलिकाओं का कथन किया वि निरवसेसा। उसी प्रकार श्वासोच्छवासों का कथन भी पूर्ण कहना चाहिये। एवं एएणं गमएणं-जाव-सीसपहेलिया भाणियव्वा । इसी क्रम से-यावत्-पुद्गल परावर्तन पर्यन्त 'एक वचन, -भग. स. २५, उ. ५, सु' २६-२७ बहुवचन के सूत्र कहने चाहिये। १ यहाँ तक एकवचन के सूत्र हैं। २ एकवचन और बहुवचन के सूत्र ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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