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________________ ७०८ लोक-प्रज्ञप्ति काल लोक : बहुत्व विवक्षा सूत्र २१-२३ पलिओवमे, सागरोवमे, ओसप्पिणी, एवं उस्सप्पिणी पल्योपम, सागरोपम, अवसर्पिणी और उसपिणी के वि। समय है। प०-पोग्गलपरियट्ठ णं भंते ! कि संखेज्जा समया, प्र-भगवन् ! पुद्गल परावर्तन के समय क्या संख्यात है, असंखेज्जा समया, अणंता समया? असंख्यात हैं, या अनन्त हैं ? उ०—गोयमा ! नो संखेज्जा समया, नो असंखेज्जा समया, उ०-गौतम ! न संख्यात समय हैं, न असंख्यात समय हैं, अणंता समया। अपितु अनन्त समय है। एवं तीतद्ध-अणागयद्ध-सव्वद्धा। इसी प्रकार अतीत काल; भविष्यकाल और सर्वकाल के भी अनन्त समय हैं। बहुत्त विवक्खा बहुत्व विवक्षा२२.५०-आवलियाओ णं भंते ! कि संखेज्जा समया, असंखेज्जा २२. प्र०-प्र०-भगवन् ! आवलिकाओं के समय क्या संख्यात समया, अणंता समया? ___ हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं! उ०-गोयमा ! नो संखेज्जा, सिय असंखेज्जा समया, सिय उ०-गौतम ! संख्यात समय नहीं हैं, कभी असंख्यात समय अणंता समया। हैं और कभी अनन्त समय हैं । प०-आणापाण ण भते ! किं संखेज्जा समया-जाव-अणता प्र०-भगवन् ! श्वासोच्छ्वासों के समय क्या संख्यात हैं, समया? -यावत्-अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! एवं चेव । उ०-गौतम ! पूर्ववत् हैं। प०-थोवा णभंते ! कि संखेज्जा समया-जाव-अणता प्र०-भगवन् ! स्तोकों के समय क्या संख्यात है—यावत्समया? अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! एवं चेव । उ०-गौतम ! पूर्ववत् हैं। एवं-जाव-उस्सप्पिणीओ त्ति । इसी प्रकार-यावत्-उत्सपिणियों के समय भी हैं। ५०--पोग्गलपरियट्टा णं भंते ! किं संखेज्जा समया, प्र०-भगवन् ! पुद्गल परिवर्तनों के समय क्या संख्यात है, असंखेज्जा समया, अणंता समया ? असंज्यात हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जा समया, असंखेज्जा समया, उ०-गौतम ! न संख्यात समय हैं, न असंख्यात समय हैं अणंता समया।' -भग. २५, उ. ५, सु. २-१२ अपितु अनन्त समय हैं । आणापाणाइसु कालभेएसु कावलिया संखापरूवणं- श्वासोच्छवासादि काल भेदों की आवलिका संख्या प्ररूपणएगत्त विवक्खा एकत्व विवक्षा-- २३. ५०-आणापाणू णं भंते ! कि संखेज्जाओ आवलियाओ, २३. प्र०-भगवन् ! एक श्वासोच्छवास की आवलिकायें क्या असंखेज्जाओ आतलियाओ, अणंताओ आवलियाओ? संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! संखेज्जाओ आवलियाओ, नो असंखेज्जाओ उ०-गौतम ! संख्यात आवलिकायें हैं, न असंख्यात आव आवलियाओ, नो अणंताओ आवलियाओ। लिकायें हैं और न अनन्त आवलिकायें हैं । एवं थोवे वि। इसी प्रकार एक स्तोक की-यावत्-एक शीर्षप्रहेलिका की एवं-जाव-सीसपहेलियत्ति । आवलिकायें हैं। ५०-पलिओवमे णं भंते ! कि संखेज्जाओ आवलियाओ, प्र०-भगवन् ! एक पल्योपम की आवलिकायें क्या संख्यात असंखज्जाओ आवलियाओ, अणंताओ आवलियाओ? हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? २ ये अनन्तकाल हैं । यहाँ तक एक वचन के प्रश्नोत्तर हैं। १ ये औपमिक काल अर्थात् असंख्येय काल हैं। ३ ये बहुवचन के प्रश्नोत्तर हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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