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________________ सूत्र २०-२१ काल लोक । आवलिका आदि काल भेदों के समयों की संख्या का प्ररूपण गणितानुयोग ७०७ तओ णं वाससए वाससए गए एगमेगं वालग्गं अवहाय उस पल्य से सौ-सौ वर्ष बीतने पर एक-एक बालाग्र निकाजावइएणं कालेणं से पल्ले खोणे नीरए निल्लेवे लते-निकालते जितने काल में वह पल्य खाली हो, नीरज हो, निट्ठिए भवइ । निर्मल हो, सर्वथा रिक्त हो । से णं सुहमे अद्धापलिओवमे । यह सूक्ष्म अद्धा पल्योपम है। गाहा गाथार्थएएसि पल्लाणं कोडाकोडीहवेज्ज दसगुणिया। एसे दस क्रोडाकोडी पल्य जितना काल एक सूक्ष्म अद्धा तं सुहुमस्स अद्धासागरोवस्स एगस्सभवे परिमाणं ॥ सागरोपम का प्रमाण होता है । ५०-एएहि सुहुमहिं अद्धापलिओवम-सागरोवमेहि कि प्र०-एसे सूक्ष्म अद्धा पल्योपम तथा सागरोपम से क्या पओयणं ? प्रयोजन है? उ.-एएहि सुहुहिं अद्धापलिओवम-सागरोवहिं रइय- उ०-इन सूक्ष्म अद्धा पल्योपम तथा सागरोपमों से नरयिक, तिरियजोणिय-मणूस-देवाणं आउयाई मविज्जति । तिर्यञ्च, मनुष्य और देवों का आयु मापा जाता है। से तं सुहुम अद्धपलिओवमे। सूक्ष्म अद्धा पल्योपम समाप्त । -अणु, सु.३८१-३८२ आवलियाइसु कालभेएस समयसंखापरूवणं- आवलिका आदि काल भेदों के समयों की संख्या का प्ररूपणएगत्त विवक्खा एकत्व विवक्षा२१.५०-आवलिया णं भंते ! किं संखेज्जा समया असंखेज्जा २१.प्र०-भगवन् ! एक आवलिका के समय क्या संख्यात हैं, समया, अणंता समया? असंख्यात हैं या अनन्त है ? उ०-गोयमा ! नो संखेज्जां समयां, असंखेज्जा समया, नोउ०-गौतम ! संख्यात समय नहीं है। असंख्यात समय .. अणंता समया। अनन्त समय नहीं है। प०-आणापाण णं भंते ! कि संखेज्जा समया-जाव-अणंता प्र०-भगवन् ! एक श्वासोच्छ्वास के समय क्या संख्यात समया? है-यावत्-अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! एवं चेव । उ०—गौतम ! पूर्ववत् है। प०-थोवे णं भंते ! किं संखेज्जा समया-जाव-अणंता प्र०-भगवन् ! एक स्तोक के समय क्या संख्यात हैं-यावत्समया? अनन्त हैं ? उ०-गोयमा ! एवं चेव । उ०-गौतम ! पूर्ववत् है। एवं लवे वि मुहुत्ते वि। इसी प्रकार लव और मुहूर्त के समय भी है। एवं अहोरत्ते । इसी प्रकार एक अहोरात्र के समय है। एवं पक्खे, मासे, उडू, अयण, संवच्छरे, जुगे, वास- इसी प्रकार पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, सौ वर्ष, सए, वाससहस्से, वाससयसहस्से, पुव्वंगे, पुव्वे, तुडि- हजार वर्ष, लाख वर्ष, पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, यंगे. तूडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अवबे, हुयंगे- अटट, अववांग, अवव, हुहूकांग, हुहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, हहए, उप्पलंग-उप्पले, पउमंग-पउमे, नलिण'गे, पद्म, नलिनांग, नलिन, अक्षनिकुरांग, अक्षनिकूर, अयतांग, अयत, नलिण', अत्थनिउरंगे-अत्थनिउरे, अउयंगे-अउये, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिका, नउयंगे, नउए, पउयंगे, पउए, चूलियंगे-चूलिए, सीस- शीर्षप्रहेलिका । पहेलियंगे-सीसपहेलिया । १ (क) यहाँ तक संख्येयकाल है । (ख) पूव्वाइयाणं सीसपहेलिया पज्जवसाणाणं संठाण ठाणंतराणं चोरासीए गुणकारे पण्णत्ते। -सम० ८४, सु०१४
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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