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________________ ७०६ लोक-प्रज्ञप्ति काल लोक : व्यावहारिक अद्धा पल्योपम का उदाहरणपूर्वक स्वरूप प्ररूपण सूत्र १९-२० सोदाहरणं वावहारिय अद्धापलिओवमस्स सरूव- व्यावहारिक अद्धा पल्योपम का उदाहरणपूर्वक स्वरूप परूवर्ण प्ररूपण१६. तत्थ णं जे से वावहारिए से जहा नामए पल्ले सिया जोयणं १६. इनमें से व्यावहारिक अद्धा पल्योपम इस प्रकार है। जिस आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं, तं तिगुणं प्रकार एक योजन लम्बा-चौड़ा, एक योजन ऊँचा कुछ अधिक तीन सविसेसं परिक्खेवेणं। ___ गुणी परिधि वाला एक पल्य हो । से णं पल्ले एगाहिय-बेहिय-तेहिय-जाव-उक्कोसेणं सत्तरत्तपरू- उस पल्य में एक दिन, दो दिन, तीन दिन-यावत्-उत्कृष्ट ढाणं सम्म? सन्निचिए भरिए वालग्गकोडीणं । सात अहोरात्र के बढ़े हुए बालाग्र पूर्ण रूप से ठसाठस भरें। ते गं बालग्गा नो अग्गी डहेज्जा, नो वाउ हरेज्जा, नो वे बालाग्र न अग्नि से जले, न वायु से उड़े, न वर्षा से भीजे, कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हब्वमागच्छेज्जा। न सड़े और न नष्ट हो । तओ गं वाससऐ वाससए गए एगमेगं वालग्गं अवहाय जाव- उस पल्य से सौ सौ वर्ष बीतने पर एक-एक वालाग्र निकालते इएणं कालेणं से पल्ले खोणे नीरए निल्लेवे निदिए भवइ। निकालते जितने काल में वह पल्य खाली हो, नीरज हो, निर्मल हो, सर्वथा रिक्त हो, से णं वावहारिए अद्धापलिओवमे। यह व्यावहारिक अद्धा पल्योपम है। गाहा गाथार्थएएसि पल्लाणं कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। व्यावहारिक एक क्रोडाक्रोडी पल्यों को दस गुणा करने पर तं वावहारिस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाणं ॥ एक व्यावहारिक अद्धा सागरोपम का प्रमाण होता है। प०-एएहि वावहारिएहि अद्धापलिओवम-सागरोवहिं कि प्र०-इन व्यावहारिक अद्धा पल्योपम-सागरोपम से क्या पओयणं? प्रयोजन है ? उ०-एएहिं वावहारिएई अद्धापलिओवम-सागरोवमेहि उ.-इन व्यावहारिक अद्धा पल्योपम-सागरोपम से कोई नत्थि किंचि पओयणं, केवलं तु पण्णवणा पण्णविजति। प्रयोजन नहीं है । केवल प्रज्ञापना प्रज्ञपित की है। से तं वावहारिए अद्धापलिओवमे । यह व्यावहारिक अद्धा पल्योपम समाप्त । -अणु, सु. ३७६, ३८० सोदाहरणं सुहुम अद्धापलिओवमस्स सरूव-परूवणं- सूक्ष्म अद्धा पल्योपम का उदाहरणपूर्वक स्वरूप प्ररूपण२०.५०-से कि सुहमे अद्धापलिओवमे ? २०. प्र०-सूक्ष्म अद्धा पल्योपम का स्वरूप कैसा है ? उ०-सुहमे अद्धापलिओवमे से जहानामए पल्लेसिया जोयणं उ०-सूक्ष्म अद्धा पल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है। आयाम-विक्खंभेणं, जोयण उड्ढे उच्चत्तेणं, तं तिगुण जिस प्रकार एक योजन लम्बा-चौड़ा, एक योजन ऊँचा और कुछ सविसेस परिक्खेवेणं । अधिक तीन गुणी परिधि वाला एक पल्य हो । से णं पल्ले एमाहिय-बेहिय-तेहिय-जाव-उक्कोसेणं उस पल्य में एक दिन, दो दिन, तीन दिन-यावत्-उत्कृष्ट सत्तरत्तपरूढाणं सम्म? सन्निचिए भरिए बालग्ग- सात रात के बढ़े हुए बालान खण्ड पूर्ण रूप से ठसाठस भरे । कोडोणं। तत्थ णं एगमेगे बालग्गे असंखेज्जाइं खंडाई कज्जइ । उनमें से प्रत्येक बालाग्र के असंख्य खण्ड करें। ते णं वालग्गा ट्ठिीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता उन दिखाई देने वाले वालाग्रों में से प्रत्येक वालाग्र के इतने सहमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा। छोटे असंख्य खण्ड करें कि सूक्ष्म पनक जीव के शरीर की अवते गं वालग्गा नो अग्गी डहेज्जा, नो घाउ हरेज्जा, गाहना से भी असंख्य गुण छोटे हो । नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पुइत्ताए हव्वा वे बालाग्र न अग्नि से जले, न वायु से उड़े, न वर्षा से भीजे, मागच्छज्आ। न सड़े और न नष्ट हो।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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