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________________ ४०४ लोक-प्रज्ञप्ति काल लोक : औपमिक काल के भेद-प्रभेद सूत्र १६-१७ ओवमियकालस्स भेयप्पभेया औपमिक काल के भेद-प्रभेद१६.५०-से कि तं ओवमिए ? १६. प्र०-औपमिक काल कितने प्रकार का कहा गया है ? उ०-ओवमिए दुविहे पण्णते, तं जहा उ०-औपमिक काल दो प्रकार का कहा गया है, यथा(१) पलिओवमे य, (२) सागरोवमे य । (१) पल्योपम, (२) सागरोपम । १०-से कि तं पलिओवमे ? प्र०-पल्योपम कितने प्रकार का कहा गया है ? उ०-पलिओवमे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा उ०-पल्योपम तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा(१) उद्धार पलिओवमे य, (२) अद्धा पलिओवमे य, (१) उद्धार पल्योपम, (२) अद्धा पल्योपम, (३) खेत्तपलिओवमे य। (३) क्षेत्र पल्योपम । -~-अगु. सु. ३६८, ३६६ । उद्धार पलिओवमस्स भेया उद्धार पल्योपम के भेदप०–से कि तं उद्धार पलिओवमे ? प्र०-उद्धार पल्योपम कितने प्रकार का कहा गया है ? उ०-उद्धार पलिओवमे दुबिहे पण्णते, तं जहा उ०-उद्धार पल्योपम दो प्रकार का कहा गया है, यथा(१) सुहुमे य, (२) वावहारिए य । (१) सूक्ष्म उद्धार पल्योपम, (२) व्यावहारिक उद्धार पल्योपम, तत्थ गंजे से सुहुमे से ठप्पे । इनमें जो सूक्ष्म उद्धार पल्योपम है-उसका यहाँ वर्णन -अणु. सु. ३७०-३७१ । स्थगित किया गया है। सोदाहरणं वावहारिय उद्धारपलिओवमसरूवपरूवणं- सोदाहरण व्यावहारिक उद्धार पल्योपम के स्वरूप का प्ररूपण१७. तत्थ गंजे से वावहारिए, से जहानामए पल्लेसिया जोयणं १७. इनमें से जो व्यावहारिक उद्धार पल्योपम है वह इस आयाम-विक्खंभेण जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं प्रकार है-जिस प्रकार एक योजन लम्बा चौड़ा एक योजन ऊँचा परिरएणं। और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला एक पल्य (पात्र या गड्ढा ) है। से गं एगाहिय-बेहिय-तेहिय-जाव-उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं उस पल्य में एक दिन, दो दिन, तीन दिन-यावतसम्म8 सन्निचिए भरिए बालग्गकोडोणं । उत्कृष्ट सात रात के बढ़े हुए बालानों को परिपूर्ण ठसाठस भरे । ते गं बालग्गा नो अग्गोडहेज्जा, नो वाउहरेज्जा, नो वे वालाग्र न अग्नि से जले, न वायु से उड़े, न वर्षा से कच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसिज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा। भीगे, और न सड़े, न नष्ट हो । उनमें से एक एक समय में एकतओ णं जमए समए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावतिएणं एक वालान निकालते रहें। जितने समय में वह पल्य खाली हो, कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे, णिट्ठिए भवइ । नीरज हो, निर्लेप हो सर्वथा रिक्त हो, से तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे । वह व्यावहारिक उद्धार पल्योपम है। गाथार्थएएसि पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज बसगुणिया। ऐसे दस क्रोडाक्रोडी पल्यों का एक व्यावहारिक उद्धार तं वावहारियस्स, उद्धारसागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाणं ॥ सागरोपम का प्रमाण होता है । १०-एएहि वावहारियउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं कि प्र०- इन व्यावहारिक उद्धार पल्योपम और सागरोपम का पओयणं? क्या प्रयोजन है ? उ०-एएहि वावहारिय उद्धारपलिओवम-सागरोवहिं पत्थि उ०-इन व्यावहारिक उद्धार पल्योपम तथा सागरोपम का किचि पओयणं केवलं तु पण्णवणापण्णविज्जइ। कोई प्रयोजन नहीं है, केवल जानने के लिए कहा गया है। से तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे । व्यावहारिक उद्धार पल्योपम का स्वरूप समाप्त । -अणु. सु. ३७२, ३७३ । गाहा
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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