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________________ ७०२ लोक-प्रज्ञप्ति काल लोक : औपमिक काल का प्ररूपण सूत्र १५ एएणं जोयणप्पमाणे णं-जे पल्ले जोयणं आयाम- इस योजन प्रमाण से एक योजन लम्बा चौड़ा, एक योजन विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं ऊँचा कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला पल्य एक दिन, दो दिन, परिरएणं । से णं एगाहिय वेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसं तीन दिन उत्कृष्ट सात दिन के उगे हुए क्रोडों वालातों से ठसासत्तरत्तप्परूढाणं संसट्ठ सन्निचित्ते भरिते वालग्गकोडीणं। ठस भरा जाए। ते णं वालग्गे नो अग्गी दहेज्जा, नो वातोहरेज्जा, नो जिससे वे बालाग्र अग्नि से न जले, वायु से न उड़े, पानी से कुत्थेज्जा, नो परिविद्धंसेज्जा, नो पूतित्ताए हव्व- न गले, न नष्ट हों, और न सड़ें। मागच्छेज्जा। ततो णं वाससए वाससए गए एगमेगं बालग्गं अवहाय उस पल्य से सौ सौ वर्ष बीतने पर एक बालाग्र निकाला जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरेए, निम्मले, जाय, यों निकालते-निकालते जितने काल में वह पल्य खाली हो निट्ठिए, निल्लेवे अवहडे विसुद्धे भवई' निरज हो, निर्मल हो, सर्वथा रिक्त हो, निर्लेप हो, अपहृत हो, विशुद्ध हो। से तं पलिओवमे । उतना काल पल्योपम कहा जाता है। प०-से कि तं सागरोवमे ? प्र०-सागरोपम का स्वरूप क्या है ? उ०-गाहा उ.--गाथार्थएएसि पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दस गुणिया। उक्त प्रमाण वाले दस क्रोडाक्रोडी पल्योपम जितना एक तं सागरोवमस्स तु, एक्कस्स भवे परिमाणं ॥ सागरोपम का प्रमाण होता है । एएणं सागरोवमपमाणेणं ओसप्पिणीए' चत्तारि उक्त प्रमाण वाले चार क्रोडाक्रोडी सागरोपम जितना अवसागरोवम कोडाकोडीओ कालो सुसम-सुसमा। सर्पिणी काल के प्रथम सुसम-सुसमा आरा का प्रमाण है। तिण्णि सागरोवम कोडाकोडीजो कालो सुसमा तीन क्रोडाकोडी सागरोपम जितना अवसर्पिणी काल के द्वितीय सुसमा आरा का प्रमाण है। दो सागरोवम कोडाकोडीओ कालो सुसम-दूसमा दो क्रोडाक्रोडी सागरोपम जितना अवसर्पिणी काल के तृतीय सुसम-दुसमा आरा का प्रमाण है। एगा सागरोवमकोडाकोडीओ बायालीसाए वास बियालीस हजार वर्ष कम एक क्रोडाक्रोडी सागरोपम जितना सहस्सेहिं ऊणिया कालो दुसम-सुसमा । अवसर्पिणी काल के चतुर्थ दुसम-सुसमा आरा का प्रमाण है । एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दूसमा। इक्कीस हजार वर्ष जितना अवसर्पिणी काल के पंचम दुसम आरा का प्रमाण है। १ जंबु० बक्ख० २, सु१ १६ । २ ठाणं अ० २, उ० ४, सु०११० । ३ "ओसप्पिणी" त्ति अवसर्पयति हीयमानारकतया, अवसर्पयति वा।ऽयुष्क शरीरादिभावान् हापयतीत्यवसर्पिणी सागरोवम कोटा कोटी दशकप्रमाणः कालविशेषः । ४ जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिण्णि साग रोवमकोडाकोडीओ कालो होज्जा । एवं इमीसे ओसप्पिणीए । नवरं-काले पण्णत्ते । आगमेस्साए उस्सप्पिणीए भविस्सइ । एवं धायइसंडे पुरथिमद्धे, पच्चत्थिमद्धे वि, एवं पुक्खरवरदीवड्ढे पुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि कालो भाणियब्बो । -ठाणं अ० ३,उ० १, सु० १५१ ५ जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसम-दूसमाए दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो होत्था । एवमिमीसे ओसप्पिणीए नवरं-काले पण्णत्ते । एवं आगमेस्साए उस्सप्पिणीए जाव भविस्सइ । -ठाणं अ०२, उ०३, सु०६२
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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