________________
सूत्र १५
काल लोक: औपमिक काल का प्ररूपण
गणितानुयोग
७०१
(१) उस्सण्हसहिया इवा, (२) सहसण्हिया इ वा, "(१) उच्छलक्ष्णश्लक्षिणका, (२) श्लक्ष्णश्लक्षिणका, (३) उड्ढरेणू इवा, (४) तसरेणू इ वा, (५) रहरेणु (३) ऊर्ध्वरेणु, (४) त्रसरेणु, (५) रथरेणु, (६) वालाग्र, इ वा, (६) वालग्गे इ वा, (७) लिक्खा इ वा, (७) लिक्षा, (८) यूका, (६) यवमध्य, (१०) अंगुल ।" (८) जूया इ वा, (९) जवमज्झे इवा, (१०) अंगुले इवा। अणंताणं परमाणुपोग्गलाणं समुदय-समितिसमागमेणं अनन्त परमाणु पुद्गलों का जो समुदाय है वह एक "उच्छसा एगा उस्सण्हसहिया ।
लक्ष्णश्लक्षिणका" है। अढ उस्सहसण्हियाओ सा एगा साहसहिया,
आठ उच्छलक्ष्णश्लक्षिणका जितनी एक "श्लक्ष्णश्लक्षिणका"
होती है। अट्ठ सहसण्हियाओ सा एगा उड्डरेणू,
आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका जितनी उक "उर्ध्वरेणु" होती है । अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेण,
आठ उर्ध्वरेणु जितनी एक "त्रसरेणु" होती है। अट्ठ तसरेणुओ सा एगा रहरेणू,
आठ त्रसरेणु जितनी एक “रथरेणु" होती है। अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुरू-उत्तरकुरूगाणं मणूसाणं आठ रथरेणु जितना देवकुरू उत्तर कुरू के मनुष्यों का एक वालग्गे।
बालाग्र होता है। एवं हरिवास-रम्मग-हेमवत-एरण्णवताणं पुव्वविदेहाणं इसी प्रकार देवकुरू उत्तर कुरू के मनुष्यों के आठ बालान मणूसाणं अट्ठ वालग्गा सा एगा लिक्खा । जितना हरिवर्ष-रम्यक् वर्ष के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है।
हरिवर्ष-रम्यक् वर्ष के मनुष्यों के आठ बालान जितना हैमवत हैरण्यवत के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। _ हैमवत-हैरण्यवत के मनुष्यों के आठ बालाग्र जितना पूर्व महाविदेह के मनुष्यों का एक बालान होता है।
पूर्व महा विदेह के मनुष्यों के आठ बालाग्र जितमी एक लिक्षा
होती है। अट्ठ लिक्खओ सा एगा जूया,
आठ लिक्षा जितनी एक "यूका" होती है। अट्ठ जूयाओ से एगे जवमझे,
आठ यूका जितना एक “यवमध्य" होता है । अट्ठ जवमज्झे से एगे अंगुले।
आठ यवमध्य जितनी एक "अंगुल" होती है। एएणं अंगुलपमाणेणं
इस अंगुल प्रमाण सेछ अंगुलाणि पादो,
छ अंगुल जितना एक “पाद" होता है। बारस अंगुलाई विहत्थी,
बारह अंगुल जितनी एक "त" होती है। चउव्वीसं अंगुलाणि रयणी,
चौबीस अंगुल जितना एक "हाथ" होता है । अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी।
छिनवे अंगुल जितना एक "दण्ड” होता है। छण्णउई अंगुलाणि से (१) एगे दण्डे इ वा, (२) घणू इसी प्रकार धनुष, यूप, नालिका, अक्ष और मूसल भी छिनवे इवा, (३) जूए इ वा, (४) नालिया इ वा, (५) अक्खे अंगुल के ही होते हैं। इ वा, (६) मूसले इ वा। एएणं धणुप्पमाणे णं-दो धणु सहस्साइं गाउयं, इस धनुष प्रमाण से दो हजार धनुष जितना एक "गाउ" चत्तारि गाउयाई जोयणं ।'
होता है । चार गाउ का एक "योजन" होता है । १ बावहारिएणं छण्णउइ अंगुलाई अंगुलप्पमाणेणं धणू, एवं नालिया-जुगे-अक्खे-मूसले वि। --सम० ६६, सु० ३ २ (क) अणु० सु० ३४४, ३४५
(ख) —सम० ४, सु० ६ (केवल योजन प्रमाण सूचक सूत्र) (ग) ठाणं अ०८, सु. ६३४, मागहस्स णं जोयणस्स अट्र घणुसहस्साई निधत्ते पण्णत्ते ।