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________________ ७०० लोक-प्रज्ञप्ति काल लोक : औपमिक काल का प्ररूपण सूत्र १४-१५ सयं वाससहस्साई “वाससयसहस्स"' सौ हजार वर्षों के एक लाख वर्ष, चउरासीई वाससयसहस्साइं से एगे "पुग्वंगे" चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग, चउरासीई पुब्वंगसयसहस्साइं से एगे "पुग्वे"। चौरासी लाख पूर्वांगों का एक "पूर्व". एवं तुडिअंगे, तुडिए, अडडंग, अडडे, इसी प्रकार त्रुटितांग, त्रुटित, अडडांग, अडड, अववंगे, अववे, हूहूअंगे, हूहूए, अववांग, अवव, हूहूआंग, हूहूअ, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनंगे, नलिने, अत्यनिउरंगे, अत्थनिउरे, नलिनांग, नलिन, अर्थनिउरांग, अर्थनिउर, अतुअंगे, अतुए, पउअंगे, पउए, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नउअगे, नउए', चूलिअंगे, चूलियाए, नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, सीसपहेलिअंगे, सीसपहेलियाए,' शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका, एताव ताव गणिए, एताव ताव गणियस्स विसए । यहाँ तक गणित है यहाँ तक ही गणित का विषय है । इसके तेण परं उवमिए। बाद जो गणित से नहीं अपितु केवल उपमा से जाना जा सके -भग० स०६, उ०७, सु० ४,५। ऐसा औपमिक काल है। ओवमिय कालस्स परूवणं औपमिक काल का प्ररूपण५. ५०-से कि तं ओवमिए ? १५. प्र०-औपमिक काल कितने प्रकार का हैं ? उ०-ओवमिए दुविहे पण्णते । तं जहा उ०-औपमिक काल दो प्रकार का कहा गया है, यथा(१) पलिओवमे य, (२) सागरोवमे य ।। (१) पल्योपम और (२) सागरोपम । ५०-से कि तं पलिओवमे ? प्र०-पल्योपम का क्या स्वरूप है ? उ०-गाहा उ०-गाथार्थसस्थण सुतिखेण वि, छत्तु भेत्तुच जिकिर न सका। अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी जिसका छेदन-भेदन शक्य नहीं तं परमाणु सिद्धा, वदंति आदि पमाणाणं ॥६ है, ऐसे परमाणु को सभी प्रमाणों का आदि प्रमाण केवल ज्ञानी कहते हैं। १ वाससयसहस्स = लाख वर्ष के बाद में वास कोडी-क्रोडवर्ष अधिक है। २ अतुअंगे, अतुए के बाद में नउअंगे, नउए है और उसके बाद में पउअंगे, पउए है। यह क्रम भेद है। ३ स्थानांग अ० ३, उ० ४ सूत्र १९७ में समय से लेकर उत्सर्पिणी तक का क्रम संक्षिप्त में कहा है । ४ जम्बु० वक्षस्कार २ सूत्र १८ में समय से लेकर "तेणं पर उवमिए" पर्यन्त कहा है। इसमें भी थोव के बाद में 'खण' नहीं है, 'लव' है। पउअंगे से पठए पर्यन्त का क्रम स्थानांग के समान है। इस प्रकार "स्थानांग" भगवती और जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में सामान्य पाठान्तर है । ५ दुविहे अद्धोवमिए पण्णत्ते, तं जहा- (१) पलिओवमे चेव, (२) सागरोवमे चेव । -ठाणं अ० २, उ० ४, सु० ११० । तथा अणु० सु० ३४३ अट्टविहे अद्धोवमिए पण्णत्ते, तं जहा- (१) पलिओवमे य, (२) सागरोवमे य, (३) उस्सप्पिणी, (४) ओसप्पिणी, (५) पोग्गलपरियट्ट, (६) तीतद्धा, (७) अणागतद्धा, (५) सम्बद्धा। -ठाणं अ०८, सु० ६२० ६ पलिओवमस्स परूवणं करिस्सामि, परमाणु दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--(१) सुहुमे य, (२) वावहारिए य । अणताणं सुहुम परमाणु पुग्गलाणं समुदय समिति समागमेणं वावहारिए परमाणु णिप्फज्जई, तत्थ नो सत्थं कमइ । -जंबु० वक्ख० २, सु० १६ प०-से कि तं पलिओवमे ? उ०-पलिओवमे-गाहाओजं जोयणवित्थिण्णं, पल्लं एगाहियप्परूढाणं । होज्ज निरंतर णिचितं, भरितं वालग्गकोडीणं ।।।। वाससए वाससए, एक्केक्के अवहडंमि जो कालो । सो कालो बोधव्वो, उवमा एगस्स पल्लस्स ।।-10 -ठाणं अ० २, उ० ४, सु० ११०
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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