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________________ सूत्र १२-१४ काल लोक : पल्योपम-सागरोपस का प्रयोजन गणितानुयोग ६६६ एवं छप्पि समाओ भाणियवाओ इसी प्रकार छहों के भेद कहने चाहिएदूसमदूसमा-जाव-सुसमसुसमा ।' दुषमदुषमा-यावत्-सुसमसुसमा। -ठाणं० अ० ३, उ०१, सु० १४५ । पलिओवम-सागरोवमाणंपओयणं पल्योपम-सागरोपम का प्रयोजन-- १३. ५०-एहिं णं भंते ! पलिओवम-सागरोवमेहि किं पयोयणं? १३. प०-भगवन्! पल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? उ०-सुदंसणा । एएहि णं पलिओवम-सागरोवमेहि नेरइय- उ०-सुदर्शन ! इन पल्योपम और सागरोपमों से नैरयिक तिरिक्ख जोणिय-मणुस्स-देवाणं आउयाई मविजंति ।२ तिर्यञ्च योनिक मनुष्य और देवों का आयुष्य मापा जाता है । -भग० स० ११, उ० ११, सु० १७ । गणियकालस्स परूवणं गणित काल का प्ररूपण१४. ५०–एगमेगस्स णं भंते ! मुहुत्तस्स केवइया उसासद्धा १४. प्र०-भगवन् ! प्रत्येक मुहूर्त के कितने उच्छ्वास कहे वियाहिया? गये हैं ? उ०-गोयमा ! असंखेज्जाणं समयाणं समुदयसमितिसमाग- उ०-गौतम ! असंख्य समयों का जो समुदाय है वह एक मेणं सा । एगा "आवलिया" ति पवुच्चइ। आवलिका कही जाती है । संखेज्जा आवलिया ऊसाओ-संखेज्जा-आवलिया संख्येय आवलिकाओं का एक उच्छ्वास होता है और संख्येय निस्सासो। आवलिकाओं का एक निश्वास होता है। गाहाओ गाथाओं का अर्थहदुस्स अणवगल्लस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो। निरोग पुष्ट युवा जन्तु (मनुष्य) का एक उच्छ्वास, निश्वास, एगे ऊसास-नीसासो, एस "पाणु" त्ति वुच्चइ ॥ "प्राण" कहा जाता है। सत्तपाणि से "थोवे", सत्तथोवाई से "लवे"। सात प्राण का एक "स्तोक"; सात स्तोक का एक "लव" लवाणं सत्तहत्तरिए, एस "मुहुत्ते" वियाहिए॥ और सितत्तर लव का एक "मुहूर्त" कहा जाता है। तिण्णि सहस्सा सत्त य सयाई तेवरि च ऊसासा । तथा तीन हजार सात सौ तिहत्तर श्वासोच्छ्वास का एक एस "मुहुत्तो'' दिट्ठो, सत्वेहिं अणतणाणीहि ॥ "मुहूर्त" सभी अनन्त ज्ञानियों ने कहा है। एएणं मुहत्तपमाणेणं, तीस मुहत्तो "अहोरत्तो"। ऐसे तीस मुहूर्त का एक "अहोरात्र", पण्णरस अहोरत्ता "पक्खो"। पन्द्रह अहोरात्र का एक "पक्ष", दो पक्खा "मासो"। दो पक्ष का एक मास, दो मासा "उऊ"। दो मास की एक "ऋतु", तिण्णि उऊ "अयणे"। तीन ऋतु का एक "अयन" दो अयणा "संवच्छरे" दो अयन का एक "संवत्सर", पंच संवच्छरे "जुगे"। पांच संवत्सर का एक “युग", वीस जुगाई "वाससयं"। बीस युग के सौ वर्ष, बस वाससयाई “वाससहस्सं"। दस सौ वर्षों के एक हजार वर्ष, १ तथा उत्सपिण्याः दुष्षमदुष्षमादि तद् भेदानां, चोक्तविपर्ययेणोत्कृष्टत्वं प्राग्वदायोज्यमिति । २ कथाभाग धर्मकथानुयोग में देखें भाग १, द्वितीय स्कन्ध, पृष्ठ ८, सु० १५ । ३ स्थानांग अ० ३ उ०४, सूत्र १०६ में-थोव स्तोक के बाद में खण=क्षण है और क्षण के बाद में लब है। ४ ५०-एगमेगस्स णं भंते ! मासस्स कति पक्खा पण्णता? १०- गोयमा ! दो पक्खा पण्णत्ता, तं जहा-(१) बहुल पक्खे य, (२) सुक्कपक्खै य । -जंबु० सु० १५२
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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