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________________ सूत्र ८-१० काल लोक : मरण काल का प्ररूपण गणितानुयोग ६६५ मरणकाल परूवणं मरण काल प्ररूपण८. प०-से कि ते मरणकाले ? ८.प्र०-मरण काल क्या है? उ०-मरणकाले, जीवो वा सरीरामो सरीरं वा जीवाओ। उ०-शरीर से जीव का या जीव से शरीर का वियोग हो सेत्तं मरणकाले । यह मरण काल है। -भग० स० ११, उ० ११, सु०१५ । अद्धाकाल परूवणा अद्धाकाल का प्ररूपण६. ५०-से कि तं अद्धा काले? ६. प्र०-अद्धा काल कितने प्रकार का है ? उ०-अद्धा काले अणेगविहे पण्णत्ते । उ०-अद्धा काल अनेक प्रकार का कहा गया है। से णं समयट्ठयाए, आवलियट्टयाए जाव उस्सप्पिणि- समय रूप, आवलिका रूप-यावत-उत्सपिणी रूप । यट्ठयाए। एस णं सुदंसणा! अद्धा दोहारच्छेदेणं छिज्जमाणी सुदर्शन ! जिस काल के दो भाग करने पर भी दो भाग नहीं जाहे विभागं नो हव्वमागच्छति । सेत्तं समए समयट्ठ- होते हैं । वह समय-समय रूप है। याए । असंखेज्जाणं समयाणं समुदयसमिति समागमेणं सा असंख्य समयों का समुदाय सम्मिलित होने पर जो काल एगा आवलियत्ति पवुच्चइ। होता हैं वह "समय" कहा जाता है। संखेज्जाओ आवलियाओ जाव' तं सागरोवमस्स उ संख्येय आवलिकाओं का एक श्वासोच्छ्वास होता है-यावत्एगस्स भंवे परिमाणं। एक सागरोपम का प्रमाण होता है। -भग० स० ११, उ० ११, सु०१६ । कालस्स भेयप्पभेया काल के भेद प्रभेद१०.५०-से कि तं कालप्पमाणे? १०. प्र०-काल प्रमाण के कितने भेद हैं ? उ०—कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - उ०-काल प्रमाण दो प्रकार का कहा गया है, यथा(१) पदेसनिण्पण्णे य, (२) विभागनिप्पण्णे य । (१) प्रदेशनिष्पन्न, (२) विभागनिष्पन्न । ५०-से कि तं पदेसनिप्पण्णे ? प्र-प्रदेश निष्पन्न का क्या स्वरूप है ? उ०-पदेसनिप्फण्णे एगसमयट्ठिईए, दुसमयट्टिईए, तिसमट्ठिइए उ.-एक काल प्रदेश से निष्पन्न= एक समय की स्थिति जाव बससमयढिईए असंखेज्जसमयढिईए। वाला, (परमाणु या स्कन्ध) इसी प्रकार दो समय की स्थिति वाले-यावत्-दस समय की स्थिति वाले तथा असंख्य समयों की स्थिति वाले (परमाणु या स्कन्ध) प्रदेश निष्पन्न कहे गये हैं। से तं पदेसनिप्पण्णे । प्रदेश निष्पन्न समाप्त। प०-से कि तं विभागनिप्पण्णे? प्र०-विभाग निष्पन्न का स्वरूप क्या है ? उ०—विभागनिप्पण्णे-गाहा उ०-गाथा-(१) समय, (२) आवलिका, (३) मुहूर्त, समयाऽऽवलिय-मुहुत्ता, दिबस-अहोरत्त-पक्ख-मासा य । (४) दिवस, (५) अहोरात्र, (६) पक्ष, (७) मास, (८) संवत्सर, संवच्छर-जुग-पलिया, सागर-ओसप्पि-परियट्टा ॥ (6) युग, (१०) पल्य, (११) सागर और (१२) परावर्तन इन काल विभागों से निष्पन्न (परमाणु-स्कन्ध) विभाग निष्पन्न कहे -अणु०सु० ३६३-३६५। गये हैं। १ भग० स०६, उ०७, सु० ४-७ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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