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૬૪ लोक-सप्ति
काल लोक दिन और रात्रि को समान पौरूषी
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उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ चार मुहुर्त की दिन की पौरूषी होती है और जघन्य तीन मुहुर्त जहन्निया तिमुहुत्ता राईए पोरिसी भवइ । की रात्रि पौरूषी होती है । जया वा उक्कोसिया अट्ठारसमुहुंत्ता राई भवइ जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता राईए पोरिसी भवइ जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ ।
प० कया णं भंते ! उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ जन्निया वुवालसमुहुत्ता राई भवइ ?
कया वा उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ जहन्नए दुवालसमुहले दिवसे भय ? उ०- सुदंसणा ! आसाढ पुष्टिमाए' उक्कोसए अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवs जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई
भवइ ।
पोस पुणिमा उनकोसिया अद्वारसमुद्वत्ता राई भवइ । जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ ।
भग. स. ११, उ. ११, सु. ६-११ । दिवसस वा राईए वा समा पोरिसी
६. प० – अत्थि णं भंते! दिवसा य राईओ य समा चेव अति
उ०- हंता ! अस्थि ।
प० – कया णं भन्ते ! दिवसा य राईओ य समा चेव भवंति ?
उ०- सुदंसणा ! चेत्ताऽऽसोयपुण्णिमासु णं एत्थ णं दिवसा य राईओ य समा चेव भवंति ।
पण्णरस मुहुत्ते दिवसे भवइ पण्णरसमुहुत्ता राई
भवइ ।
चभागमुहुत्तभागूणा चउमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ । से त्तं पमाण काले ।
सूत्र ५-७
- भग. स. ११, उ. ११, सु. १२-१३ । अहाउनिष्यत्तिकाल परवणं७. ५० - से कि तं अहाउनिव्वत्तिकाले ?
उ०- अहा उनिन्यति काले जे जे रणं वा तिरिषध जोगिएन वा मनुस्सेण वा देवेण वा अहाउयं निव्य त्तियं । सेतं अहाउनिव्वत्ति काले ।
-भग० स० ११, उ० ११, सु० १४ ।
तथा जब उत्कृष्ट अठारह मुहुर्त की रात्रि होती है और जघन्य बारह मुहुर्त का दिन होता है तब उत्कृष्ट साढ़े चार मुहुर्त की रात्रि की पौरूषी होती है और जघन्य तीन मुहुर्त की दिन की पौरवी होती है।
प्र० - भगवन् ! उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन कब होता है ? और जयन्य बारह मुहूर्त की रात्रि कम होती है ?
तथा उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि कब होती है ? और जघन्य बारह मुहुर्त का दिन कब होता है ?
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उ०- सुदर्शन | आषाढ पूर्णिमा को उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है ।
पौष पूर्णिमा को कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है, जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है ।
दिन और रात्रि को समान पौरुषी
६. प्र० - भगवन् ! दिन और रात्रि की समान पौरुषी होती है ?
उहाँ होती है।
प्र० - भगवन् ! दिन और रात समान कब होते हैं ?
उ०- सुदर्शन ! चैत्री पूर्णिमा और आसोजी पूर्णिमा को दिन और रात्रि समान होते हैं ।
पन्द्रह मुहूर्त का दिन होता है और पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि होती है।
एक मुहूर्त के चार भाग कम चार मुहूर्त की दिन और रात्रि की पौरुषी होती है । यह प्रमाण काल है ।
यथायुनिवृत्ति काल का प्ररूपण
७. प्र० - यथायुर्निवृत्ति काल किस प्रकार का है ?
उ०- जिस किसी नैरयिक ने, तिर्यक् योनिक ने मनुष्य ने या देव ने जिस प्रकार का आयु बांधा है वह उसे उसी प्रकार भोगे यह यथापुनिवृत्ति काल है।
१ इह आषाढ पौर्णमास्यामिति यदुक्तम् तत् पञ्च सांवत्सरिक युगस्य अन्तिम वर्षापेक्षया अवसेयम् । यतस्तत्रैव आषाढपौर्णमास्थामष्टावण मुहूर्ती दिवसो भवति । अर्द्ध पंचमुहर्ता च तत्पस्वी भवति ।
२ इह च चेत्तासोयपुण्णिमासु णं इत्यादि यदुच्यते तद् व्यवहार नया पक्षम् निश्चयस्तु कर्क- मकर अङ्क्रान्तिदिनाद आभ्य यद् द्विनवतितमम् अहोरात्रम् तस्यार्धे समा दिवस रात्रि प्रमाणता ।