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सूत्र ७७
ऊध्र्व लोक : सिद्धस्थान परिज्ञा
गणितानुयोग ६६
सक्काईणं इंदाणं सोमाईणं लोगपालाणं उप्पायपव्वया- शक्रादि इन्द्रों के और सोमादि लोकपालों के उत्पात पर्वत७६. सक्कस्स णं देविदस्स देवरणो सक्कप्पभे उप्पायपव्वए दस ७६. देवेन्द्र देवराज शक्र का उत्पात पर्वत दस हजार योजन ऊँचा
जोयण सहस्साई उद्धं उच्चत्तेणं, दस गाउय सहस्साइं उब्वे- दस हजार गाउ भूमि में गहरा, और मूल में दस हजार योजन हेणं मूले बस जोयण सहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ते । सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो जहा देवेन्द्र देवराज शक्र के सोम नामक लोकपाल महाराज का सक्कस्स तहा सव्वेसि लोगपालाणं, सव्वेसि इंदाणं-जाव- उत्पात पर्वत शक्रेन्द्र जैसा है, सभी लोकपाल के और अच्युत अच्चुय त्ति, सव्वेसि पमाणमेगं ।
पर्यन्त सभी इन्द्र का उत्पात पर्वत भी ऐसे ही हैं। सबका प्रमाण
-ठाण. अ.१०, सु. ७२८ समान है। सिद्धट्ठाण परिणा
सिद्धस्थान परिज्ञा७७ ५०-अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे सिद्धा प्र०-भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे क्या सिद्ध परिवसंति ?
रहते हैं ? उ०-गोयमा ! नो इणठे समझें ।
उ.-गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। एवं जाव सत्तमाए।
इस प्रकार सप्तम नरक पर्यन्त है । १०-अत्थि गं भंते ! सोहमस्स कप्पस्स अहे सिद्धा परि- प्र०-भगवन् ! इस सौधर्मकल्प के नीचे क्या सिद्ध
वसंति? उ०-गोयमा ! नो इणठे समझें ।
उ.-गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । एवं ईसाणस्स जाव अच्चुयस्स गेविज्ज विमाणाणं इसी प्रकार ईशान-यावत् अच्युत प्रवेयक और अनुत्तर अणुत्तर विमाणाणं ।
विमान पर्यन्त है। प०-अस्थि णं भन्ते ! इसी पन्माएए पुढवीए अहे सिद्धा प्र-भगवन् ! ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के नीचे क्या सिद्ध - परिवसंति?
रहते हैं ? उ०-गोयमा ! नो इणठे समठे ।
उ०-गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । ५०-से कहिं खाइ णं भन्ते ! सिद्धा परिवसंति ?
प्र०-भगवन् ! वे सिद्ध कहाँ रहते हैं ? उ० - गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसम रम- उ०-गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूभाग से चन्द्र
णिज्जाओ भूमिभागाओ उड्तं चंदिम-सूरिय-गह- सूर्य-ग्रह-नक्षत्र-ताराभवन से अनेक सौ योजन । अनेक हजार णक्खत्त-तारामबणाओ। बहूइ जोयण सयई । बहूई योजन । अनेक लाख योजन । अनेक क्रोड योजन । अनेक क्रोडा जोयण सहस्साई। बहूई जोषण सय सहस्साई। क्रोड योजन ऊपर जाने पर । बहूओ जोयण कोडीओ । बहूओ जोयण कोडा कोडीओ उड्ढतरं उप्पइत्ता ।
रहते हैं ?
पहा
सोहम्मोसाण-सणंकुमार-माहिद-लतग-महासुक्क-सहस्सार सौधर्म-ईशान-सनत्कुमार-माहेन्द्र-लान्तक-महाशक्र-सहस्रार-आणय-पाणय-आरण-अच्चुए । तिणि अ अट्ठारे आणत-प्राणत-आरण-अच्युत अवेयक से आगे । गेविज्ज विमाणा वाससए वीइवइत्ता।
विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजिय-सव्वट-सिद्धस्सय विजय-वैजयन्त-जयन्त अपराजित और सर्वार्थसिद्ध महामहाविमाणस्स सव्व उवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालस विमान की सर्वोपरि स्तूपिका के अग्रभाग से बारह योजन जोयणाई अबाहाए।
अव्यवहित इषत् प्राग्भारा पृथ्वी कही गई है। एत्थ णं इसीपब्भाए णाम पुढवी पण्णत्ता।
-उव. सु.४३