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लोक-प्रज्ञप्ति
ऊर्व लोक : सक के लोकपालों के विमान
सूत्र ७५
जोयण सहस्साई । जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव सोम लोकपाल के विमान जैसा यमलोक पाल का विमान है अभिसेओ।
यावत् अभिषेक पर्यन्त हैं। रायहाणी तहेव जाव पासायपंतीओ।
राजधानी भी उसी प्रकार है । यावत् प्रासाद पंक्तियाँ । ५०-कहिणं भते ! सक्कस्स देबिदस्स देवरण्णो वरुणस्स प्र०-भगवन् ! शक्र देवेन्द्र देवराज के वरुण लोकपाल का
लोगपालस्स सयंजले नाम महाविमाणे पण्णत्ते? सतंजल नामक महाविमान कहाँ कहा गया है ? उ.-गोयमा ! तस्स णं सोहम्म वडेंसयस्स महाविमाणस्स उ०- गौतम ! उस सौधर्मावतंसक महाविमान के पश्चिम
पच्चत्थिमेणं सोहम्मेकप्पे असंखेज्जाई जोयण से सौधर्म कल्प में असंख्य हजार योजन । सहस्साई। जहा सोमस्स तहा विमाण-रायहाणीओ सोम लोकपाल के विमान और राजधानी का जैसा कथन है
भाणियव्वा जाव पासाय वडेंसया । नवरं नाम नाणत्तं। वैसा ही प्रासादावतंसक पर्यन्त जानना चाहिए किन्तु नाम भिन्न है । १०-कहि णं भते ! सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो वेसमणस्स प्र०-भगवन् ! शक्र देवेन्द्र देवराज के वैश्रमण लोकपाल
लोगपालस्स वग्गूणामं महाविमाणे पण्णते? (चतुर्थ) का वल्गुनामक महाविमान कहाँ है। " उ०-गोयमा ! तस्स णं सोहम्म वडेंसयस्स महाविमाणस्स उ०-गौतम ! सौधर्मावतंसक महाविमान के उत्तर में जिस
उत्तरेणं । जहा सोमस्स विमाण-रायहाणिवत्तव्वया प्रकार सोम के महाविमान का कथन है उसी प्रकार-यावत्तहा नेयव्वा जाव पासायवडेंसया ।
राजधानी, प्रासाद पंक्तियों का वर्णन जान लेना चाहिए । -भग. स. ३, उ. ७, सु. २-७ । १०-साणस्स णं मंते ! देविंदस्स देवरणो कति लोगपाला प्र०-भगवन् ! ईशानेन्द्र देवराज देवेन्द्र के कितने लोकपाल
पण्णता? उ.-गोयमा ! चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता । तं जहा- उ०- गौतम ! चार लोकपाल कहे गये है । वे इस प्रकार हैं
(१) सोमे, (२) जमे, (३) वेसमणे, (४) वरुणे। (१) सोम, (२) यम, (३) वेश्रमण और (४) वरुण । प०-एएसि गं भंते ! लोगपालाणं कति विमाणा पण्णता? प्र०-भगवन् ! इन लोकपालों के कितने विमान कहे हैं ? उ०--गोयमा ! चत्तारि विमाणा पण्णता । तं जहा
उ०-गौतम ! चार विमान कहे हैं । वे इस प्रकार हैं(१) सुमणे, (२) सव्वओभद्दे, (३) वगू, (४) सुवग्गू। (१) सुमन, (२) सर्वतोभद्र, (३) वल्गु और (४) सुवल्गु ५०-कहिणं भंते ! ईसाणस्स देविवस्स देवरण्णो सोमस्स प्र०-भगवन् ! ईशान देवेन्द देवराज के सोम लोकपाल का
लोगपालस्स सुमणे नामं महाविमाणे पण्णते? सुमन नामक महाविमान कहाँ है ? । उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं उ०-गौतम ! जंबूद्वीप द्वीप में मंदर पर्वत के उत्तर में इस
इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव ईसाणे णामं कप्पे रत्नप्रभा पृथ्वी के समतल से यावत् ईशान नामक कल्प (देवलोक) पण्णत्ते ।
कहा है। तत्य णं जाब पंच वडेंसया पण्णता । तं जहा
उस कल्प में पांव अवतंसक कहे हैं । वे इस प्रकार हैं(१) अंकवडेंसए, (२) फलिहवडेंसए, (३) रयण- (१) अंकावतंसक, (२) स्फटिकावतंसक, (३) रत्नावतंसक, वडेंसए, (४) जायरूववडेंसए, (५) मज्झयऽत्थ (४) जातरूपावतंसक और इन चारों के मध्य में ईशनावतंसक । ईसाणवडेंसए। तस्स णं ईसाणवडेंसयस्स महाविमाणस्स पुरथिमेणं उस ईशानावतंसक महाविमान से पूर्व में तिरछे असंख्य हजार तिरियमसंखेज्जाई जोयण सहस्साई वीइवइत्ता तत्थ णं योजन आगे जाने पर देवेन्द्र देवराज ईशान के सोम नामक लोकईसाणस्स देविदस्स देवरणो सोमस्स लोगपालस्स पाल का सुमन नामक महाविमान है। सुमणे णाम महाविमाणे पण्णत्ते । सेसं जहा सक्कस्स वत्तव्वया ।
शेष सारी वक्तव्यता शक्र के समान कहना चाहिए। चउस विमाणेसु चत्तारि उद्देसा अपरिसेसा ।
चारों विमानों के चार उद्देशक पूर्ण समझना चाहिए। -भग. स. ४, उ. १-४ ।