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________________ सूत्र ७४-७५ ऊध्र्व लोक पारियानिक विमानों का आयाम - निष्कम्भ : परियाणिय विमाणाणं आयाम- विश्वंभं ७४. पालए पापविमाणे एवं जोयणस्यसहस्सं आयाम-विषमेणं पणते । एवं उमावि - सम. स. १, सु. 1 सक्क्स्स लोगपालाणं विमाणा ७५. ५० - सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो । कति लोगपाला पण्णत्ता ? उ० – गोयमा ! चत्तारि विमाणा पण्णत्ता, तं जहा(1) सोमे. (२) जमे, (३) महणे, (४) बेसमणे । १० एएस में भते । चन्हं लोगपाला कति विमाणा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! चत्तारि विमाणा पण्णत्ता । तं जहा(१) संक्षप्पचे, (२) बरसि, (३) सतंजले, वरसिट्ठे, (४) वग्गू । ( १ ) प० – कहि णं मंते ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स लोगपालस्स संझप्पभे नाम महाविमाणे पण ? उ०- गोयमा युहीये दीवे मंदररस पव्ययरस दाहि इमीसे रणयप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उदिमरियमगण-नख-तारा वाणं बहूई जोयणाई जाव पंच वडेंसया पण्णत्ता तं महा (1) असो " (२) सवण वसए (३) चंप (४) सए (५) मोहम्म बसए तस्स णं सोहम्म वडेंसयस्स महाविमाणस्स पुरत्थिमेणं सोहम्मे कप्पे अजाई जोयणाई बोइसा एरव णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स लोगपालस्स संशय्यमे नाम महाविमापन्यसे। अद्ध तेरस जोयण सहस्साइं आयाम - विक्खंभे णं । अडपाली जोपण सय सहस्साई व च सहस्सा अदुवाले जोए किचि विसेसाहिए परिवछे बेणं पयसे । (२) प० – कहि णं भंते! सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स लोगपालस्स वरसिट्ठे नामं महाविमाणे पण्णत्ते ? उ०- गोयमा ! सोहम्मवडेंसयस्स महाविमाणस्स दाहिणेणं सोहम्मे कप्पे असंमाई जोयणसहस्साइं बीइवइसा असंखेज्जाई एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स लोक पासस्स बरसिदट्ठे नाम महाविमाणे पम्पते। अतेरस गणितानुयोग पारिवानिक विमानों का आयाम विष्कम्भ७४. पालक मानविमान एक लाख योजन का लम्बा-चौड़ा कहा गया है । इसी प्रकार उडु विमान भी लम्बा चौड़ा है। ६८७ शक्र के लोकपालों के विमान - ७५. प्र० – भगवन् ! शक्र देवेन्द्र देवराज के कितने लोकपाल कहे गये हैं? उ०- गौतम ! चार लोकपाल कहे गये हैं। यथा (१) सोम, (२) यम, (३) वरुण, (४) वैश्रमण । प्र० - भगवन् ! इन चार लोकपालों के कितने विमान कहे 1 गये हैं? उ०- गौतम ! चार विमान कहे गये हैं । यथा-(१) प्रभ ( २ बरसिद्ध, (३) तंजल, (४) वल्गु । प्र० - भगवन् ! शक्र देवेन्द्र देवराज के सोम लोकपाल का सन्ध्यप्रभ नामक महा विमान कहां कहा गया है ? उ०- गौतम ! जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूमि भाग से ऊपर चन्द्र-सूर्य ग्रहगणनक्षत्र-तारामों से अनेक योजन यावत् पाँच अवतंसक कहे गये हैं। यथा (१) अशोक अवतंसक, (२) सप्तपर्ण अवतंसक, (३) चंपक अवतंसक, (४) त अशंसक, (५) मध्यम सौधर्म अव उस सौधर्मावर्तक महाविमान के पूर्व से सौधर्मकल्प में असंख्य योजन जाने पर शक्र देवेन्द्र देवराज के सोम लोकपाल के सान्ध्यप्रभ नामक महाविमान कहा गया है । वह साढ़े बारह हजार योजन का लम्बा चौड़ा हैं । धड़तालीस लाख बावन हजार वा सो मालीस योजन से कुछ अधिक कही गई है। प्र० - भगवन् ! शक्र देवेन्द्र देवराज के यमलोकपाल का वर श्रेष्ठ नामक महाविमान कहाँ कहा गया है ? उ०- गौतम ! सौधर्मावतंसक विमान के दक्षिण से सौधर्म कल्प में असंख्य योजन जाने पर शक देवेन्द्र देवराज के यमलोक पाल का वर श्रेष्ठ नामक महाविमान कहा गया है । साढ़े तेरह हजार योजन का लम्बा-चौड़ा है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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