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________________ ६८६ लोक- प्रज्ञप्ति उ०- गोयमा ! सक्कस्स ईसाणस्स य तं चैव सव्वं नेयव्वं । प० - से केणट्ठे णं भंते ! एवं वुच्चइ — सक्कस्स जाव विमाणा निण्णयरा चेव ? ऊर्ध्व लोक प्रथम प्रस्तट में विमान : उ०- गोयमा ! से जहा नामए करतले सिया देसे उच्चे, देसे उन्नये, देसे णीए देसे णिण्णे । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ- -सक्कस्स जाव निण्णयरा चेव । -भग. स. ३, उ. १, सु. ५५ विमान निम्नतर हैं। पढमे पत्थडे विमाणा७०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु पढमे पत्थडे पढमावलियाए एग्गमेगाए दिखाए वास विमाणा पण्णत्ता । - सम. ६२, सु. ४ । विमाणस्स बाहाए मोमा७१. सोहम डिसयस णं विभागस्स पर्सा भोमा पण्णत्ता । विमाणावास संखा एयमेगाए बाहाए पणस - सम. ६५, सु. ३ । ७२. सम्यकुमार माहिदे ति कम्ये बावविमाणावास सय सहस्सा पण्णत्ता । -सम. स. ५२, सु. ७ । सोहम्मी-सादी कप्पे सहि विमाणावास सपसहस्सा पण्णत्ता । - सम. स. ६, सु. ६ । कप्पेसु चउर्साट्ठ विमाणा - सम. स. ६०, सु. ५। सोहम्मी-साणेसु बंभलोए यतिसु वास सयसहस्सा पण्णत्ता । आरणे कप्पे दिवsढ विमाणावास सयं पण्णत्तं । एवं अच्चुए वि । परियाणिया विमाना १ ठाणं अ. ८, सु. ६४४ । - सम. स. १०१, सु. १ । ७३. दसकप्पा इंदाहिट्टिया पण्णत्ता । तं जहा १८ सोहम्मे जाव सहस्सारे, १ पाए, २० अपए। एएस णं दससु कप्पेसु दस इंदा पण्णत्ता । तं जहा(१) सक्के, (२) ईसाणे, (३) सणकुमारे, (४) माहिदे, (५) बधे, (६) संसार, (७) महामुबके, (८) सहरसारे, (e) पाणए (१०) अच्चए । " एएसि णं बसण्हं इंदाणं दस परियाणिया विमाणा पण्णत्ता । तं जहा (१) वालए, (२) पुष्कए, (२) सोमणसे, (४) सिरियच्छे, (५) मंदिया (1) कामरुमे, (७) पीतमणे, (८) मणो रमे', (१) विमनवरे, (१०) सव्वतो भद्दे । - ठाणं अ. १०, सु. ७६६ । उ०- गौतम ! शक्र और ईशान के विमान सब उसी प्रकार प्रश्नसूत्रानुसार हैं । प्र० - भन्ते ! यह किस प्रकार कहा जाता है कि शक्र के यावत् विमान कुछ निम्नतर है ? उ०- गौतम ! जिस प्रकार करतल का कुछ भाग ऊँचा और कुछ भाग उन्नत होता है। तथा कुछ भाग नीचा और भाग निम्नतर है । कुछ इसलिए हे गौतम | ऐसा कहा जाता है कि शक्र के यात् सूत्र ६२-७३ प्रथम प्रस्तट में विमान ७०. सौधर्म और ईशानकल्प के प्रथम प्रस्तट की प्रथम आवलिका एवं प्रत्येक दिशा में बासठ बासठ विमान हैं । विमान की बाहा में भौम भवन ७१. सौधक विमान की प्रत्येक दिशा में पैंसठठ भौम नगर हैं। विमानावास संख्या - ७२. सौधर्म-सनत्कुमार और माहेन्द्र इन तीन कल्पों में (संयुक्त) बावन लाख विमान कहे गए हैं। सौधर्म और ईशानकल्प में (संयुक्त) साठ लाख विमान कहे गए हैं। सौधर्म - ईशान और ब्रह्मलोक इन तीन कल्पों में (संयुक्त) चौसठ लाख विमान कहे गए हैं। आरण कल्प में डेढ़ सौ विमान कहे गए हैं । इसी प्रकार अच्युतकल्प में भी है। पारियानिक विमान ७३. दस कल्प इन्द्राधिष्ठित कहे गए हैं। यथा १-८ सौधर्म यावत् सहस्रार, ६ प्राणत, २० अच्युत । इन दस कल्पों में दस इन्द्र कहे गए हैं। यथा(१) शक्र, (२) ईशान, (३) सनत्कुमार, (४) माहेन्द्र, (५) ब्रह्म, (६) सात (६) महाशुक्र, (८) सहकार (२) प्राणत (१०) अच्युत । इन दस इन्द्रों के दस पारियानिक विमान कहे गए हैं। यथा (१) पालक, (२) पुष्पक, (३) सोमनस, (४) श्रीवत्स, (५) मंदिकावर्त (५) कामक्रम, (७) प्रीतिमन (-) मनोरम, (१) मिलवर (१०) सर्वतोभद्र 1
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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