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लोक- प्रज्ञप्ति
उ०- गोयमा ! सक्कस्स ईसाणस्स य तं चैव सव्वं नेयव्वं ।
प० - से केणट्ठे णं भंते ! एवं वुच्चइ — सक्कस्स जाव विमाणा निण्णयरा चेव ?
ऊर्ध्व लोक प्रथम प्रस्तट में विमान
:
उ०- गोयमा ! से जहा नामए करतले सिया देसे उच्चे, देसे उन्नये, देसे णीए देसे णिण्णे ।
से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ- -सक्कस्स जाव निण्णयरा चेव । -भग. स. ३, उ. १, सु. ५५ विमान निम्नतर हैं।
पढमे पत्थडे विमाणा७०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु पढमे पत्थडे पढमावलियाए एग्गमेगाए दिखाए वास विमाणा पण्णत्ता ।
- सम. ६२, सु. ४ ।
विमाणस्स बाहाए मोमा७१. सोहम डिसयस णं विभागस्स पर्सा भोमा पण्णत्ता । विमाणावास संखा
एयमेगाए बाहाए पणस - सम. ६५, सु. ३ ।
७२. सम्यकुमार माहिदे ति कम्ये बावविमाणावास सय सहस्सा पण्णत्ता । -सम. स. ५२, सु. ७ । सोहम्मी-सादी कप्पे सहि विमाणावास सपसहस्सा पण्णत्ता । - सम. स. ६, सु. ६ । कप्पेसु चउर्साट्ठ विमाणा - सम. स. ६०, सु. ५।
सोहम्मी-साणेसु बंभलोए यतिसु वास सयसहस्सा पण्णत्ता । आरणे कप्पे दिवsढ विमाणावास सयं पण्णत्तं । एवं अच्चुए वि । परियाणिया विमाना
१ ठाणं अ. ८, सु. ६४४ ।
- सम. स. १०१, सु. १ ।
७३. दसकप्पा इंदाहिट्टिया पण्णत्ता । तं जहा
१८ सोहम्मे जाव सहस्सारे, १ पाए, २० अपए। एएस णं दससु कप्पेसु दस इंदा पण्णत्ता । तं जहा(१) सक्के, (२) ईसाणे, (३) सणकुमारे, (४) माहिदे, (५) बधे, (६) संसार, (७) महामुबके, (८) सहरसारे, (e) पाणए (१०) अच्चए ।
"
एएसि णं बसण्हं इंदाणं दस परियाणिया विमाणा पण्णत्ता । तं जहा
(१) वालए, (२) पुष्कए, (२) सोमणसे, (४) सिरियच्छे, (५) मंदिया (1) कामरुमे, (७) पीतमणे, (८) मणो रमे', (१) विमनवरे, (१०) सव्वतो भद्दे ।
- ठाणं अ. १०, सु. ७६६ ।
उ०- गौतम ! शक्र और ईशान के विमान सब उसी प्रकार प्रश्नसूत्रानुसार हैं ।
प्र० - भन्ते ! यह किस प्रकार कहा जाता है कि शक्र के यावत् विमान कुछ निम्नतर है ?
उ०- गौतम ! जिस प्रकार करतल का कुछ भाग ऊँचा और कुछ भाग उन्नत होता है। तथा कुछ भाग नीचा और भाग निम्नतर है ।
कुछ
इसलिए हे गौतम | ऐसा कहा जाता है कि शक्र के यात्
सूत्र ६२-७३
प्रथम प्रस्तट में विमान
७०. सौधर्म और ईशानकल्प के प्रथम प्रस्तट की प्रथम आवलिका एवं प्रत्येक दिशा में बासठ बासठ विमान हैं ।
विमान की बाहा में भौम भवन
७१. सौधक विमान की प्रत्येक दिशा में पैंसठठ भौम नगर हैं।
विमानावास संख्या -
७२. सौधर्म-सनत्कुमार और माहेन्द्र इन तीन कल्पों में (संयुक्त) बावन लाख विमान कहे गए हैं।
सौधर्म और ईशानकल्प में (संयुक्त) साठ लाख विमान कहे गए हैं।
सौधर्म - ईशान और ब्रह्मलोक इन तीन कल्पों में (संयुक्त) चौसठ लाख विमान कहे गए हैं।
आरण कल्प में डेढ़ सौ विमान कहे गए हैं । इसी प्रकार अच्युतकल्प में भी है। पारियानिक विमान
७३. दस कल्प इन्द्राधिष्ठित कहे गए हैं। यथा
१-८ सौधर्म यावत् सहस्रार, ६ प्राणत, २० अच्युत । इन दस कल्पों में दस इन्द्र कहे गए हैं। यथा(१) शक्र, (२) ईशान, (३) सनत्कुमार, (४) माहेन्द्र, (५) ब्रह्म, (६) सात (६) महाशुक्र, (८) सहकार (२) प्राणत (१०) अच्युत ।
इन दस इन्द्रों के दस पारियानिक विमान कहे गए हैं।
यथा
(१) पालक, (२) पुष्पक, (३) सोमनस, (४) श्रीवत्स, (५) मंदिकावर्त (५) कामक्रम, (७) प्रीतिमन (-) मनोरम, (१) मिलवर (१०) सर्वतोभद्र
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