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________________ सूत्र ६२-६५ कर्व लोक : वैमानिक विमानों के गंध गणितानुयोग ६८३ वेमाणियविमाणाणं गंधा वैमानिक विमानों के गंध६२. ५०-सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केरिसया ६२. प्र०-भगवन् ! सौधर्म और ईशानकल्प में विमान किस गंधे णं पण्णता? प्रकार की गंध वाले कहे गये हैं ? उ०—गोयमा ! से जहा नामए कोट्ठपुडाण वा-जाव-एतो उ० -- गौतम ! जिस प्रकार कोष्ठपुट--यावत्-इससे भी इट्ठतराए गंधेणं पणत्ता। अधिक इष्ट गंध वाले कहे गये हैं। एवं-जाव-एत्तो इट्टतरागा चेव-जाव-अणुत्तरविमाणा। इस प्रकार-यावत्- इससे भी अधिक इष्ट गंध वाले -जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. २१३ -यावत्-अनुत्तर विमान पर्यन्त कहे गये हैं। वेमाणिय विमाणाणं फासाई वैमानिक विमानों के स्पर्श६३. ५०-सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केरिसया ६३. प्र०-भगवन् ! सौधर्म और ईशानकल्प में विमान कैसे फासेणं पण्णत्ता? स्पर्श वाले कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! से जहा नामए आइणे इ वा, रूए इ वा, उ०-गौतम ! जैसे आजनिक = मृगचर्म हो, रूई हो, ऐसे सव्वे फासा भाणियव्वा । सभी स्पर्श कहने चाहिए। एवं-जाव-अणुत्तरोववाइय विमाणा । इस प्रकार-यावत्- अनुत्तर विमानों के स्पर्श हैं । -जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. २१३ बेमाणिय विमाणणं आयाम-विक्खंभ परिक्खेवो य- वैमानिक विमानों का आयाम-विष्कम्भ और परिधि६४. १०-सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केवइयं ६४. प्र०-भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमान आयाम आयाम-विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णते? विष्कम्भ और परिधि से कितने कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! विमाणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा उ०-गौतम ! विमान दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. संखेज्जवित्थडा य, २. असंखेज्जवित्थडा य । (१) संख्येय योजन विस्तृत, (२) असंख्येय योजन विस्तृत । जह णरगा तहा-जाव-अणुत्तरोववाइया, संखेज्जवित्थ- अनुत्तरोपपातिक पर्यन्त नरकों के समान संख्यात य डा य असंखेज्जवित्थडा य । विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं। तत्य णं जे से संखेज्जवित्थडे से जंबुदीवप्पमाणे असंखेज्ज- उनमें जो संख्यात योजन विस्तार वाले हैं वे जम्बूद्वीप जितने वित्थडा असंखेज्जाइं जोयणसवाई आयाम विक्खंभेणं प्रमाण वाले हैं । असंख्यात योजन विस्तार वाले आयाम-विष्कम्भ परिक्खेवेणं पण्णत्ता। और परिधिसे असंख्यात सौ योजन के कहे गये हैं। -जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. २१३ सोहम्मडिसगे गं विमाणे णं अद्धतेरस जोयण-सय सहस्साइं सौधर्मावतंसक विमान का आयाम-विष्कंभ साढे तेरह लाख आयाम-विक्खंभेणं पण्णते। -सम. १३, सु. ३ योजन का है । सन्वट्ठसिद्धे महाविमाणे एगं जोयणसयसहस्सं आयाम- सर्वार्थसिद्ध महाविमान एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा कहा विक्खंभेणं पण्णत्ते। -सम. स. १, सु. ४ गया है। वेमाणिय विमाणाणं पभा वैमानिक विमानों की प्रभा६५. ५०-सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केरिस ६५. प्र०-सौधर्म और ईशान कल्प में विमान प्रभा से कैसे कहे पभाए पण्णता? गये हैं ? उ०-गोयमा ! णिच्चालोया, णिच्चुज्जोआ सयं पभाए उ०-- गौतम ! वे विमान अपनी प्रभा से नित्य आलोक पण्णत्ता। ___ वाले नित्य उद्योत वाले कहे गये हैं । एवं-जाव-अणुत्तरोववाइया विमाणा णिच्चालोआ इस प्रकार-यावत्-अनुत्तरौपपातिक विमान भी अपनी णिच्चुज्जोया सयं पभाए पण्णत्ता । प्रभा से नित्य आलोक वाले नित्य उद्योत वाले कहे गये हैं । -जीवा. पडि, ३, उ. १, सु. २१३
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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