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लोक- प्रज्ञप्ति
ऊर्ध्व लोक : वैमानिक विमानों के उपादान
मज्झे, सो चेव गमो जाव - छम्मासे अत्थेगइया वीइ वएज्जा, अत्थेगइया विमाणा नो वीइवएज्जा ।
एवं जान अगुत्तरोववाहया विमाणा
अत्येवं विमानं वीएन्जा, अत्येगइयं विमानं नो वीइवएज्जा । —जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. २१३ मणिय विमाणार्ण उप्पादार्थ
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६०. ५० - सोहम्मोसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा किं मया पण्णत्ता ?
उ०- गोयमा ! सव्वरयणामया पण्णत्ता ।
तत्थ णं बहवे जीवा य, पोग्गला य, वक्कमंति विउक्कमति, चयंति, उवचयंति । सासया णं ते विमाणा दव्वट्टयाए । जाव फासपज्जवेहि असासया । एवं जाव - अणुत्तरोववाइया विमाणा ।
- जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. २१३
वैमाणिय विमाणाणं वण्णाइ - ६१. ५० - सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा कतिवण्णा पण्णत्ता ?
उ०- गोयमा ! पंचवण्णा पण्णत्ता, तं जहा
१. किण्हा, २. नीला, ३. लोहिया, ४. हालिद्दा, ५. किल्ला
सकुमार माहिदे कप्पेसु विमाणा चडवण्णा पण्णत्ता, तं जहा - मलाक्कल्ला |
भलो संतए कप्पे विमाणा तिवरणा पण्णत्ता, तं जहा -
लोहिया जाता।
महासुक्क सहस्सारेसु कप्पेसु विमाणा दुबणा पणत्ता, तं जहा
१. हाला य २. सुकिल्ला य
आणय- जाव-अच्चुएसु कप्पेसु विमाणा सुक्किल्ला पण्णत्ता ।
गेवेज्ज विमाणा सुविकल्ला पण्णत्ता । अणुत्तरोबचाइयविमाणा परममुकिल्ला पण्यता । - जीवा, पडि, ३, उ. १, सु. २१३
सूत्र ६०-६१
बीच में है। वही गम समझना, यावत् ( देव शीघ्र गति से ) छ मास तक चलता जाए तो — यावत्-कितनेक विमानों को पार कर पाए और कितनेक विमानों को पार न कर पाए।
इस प्रकार अनुसरोपपातिक विमान पर्यन्त कहना चाहिए ।
( शीघ्र गति देव छह मास तक चलने पर भी) किसी विमान को पार जा सके और किसी विमान के पार न जा सके । वैमानिक विमानों के उपादान
६०. प्र० - भगवन् ! सौधर्म और ईशानकल्प में विमान किससे बने हुए कहे गये हैं ?
उ०- गौतम ! सर्वरत्नमय कहे गये हैं ।
उनमें अनेक जीव और पुद्गल जाते हैं, उत्पन्न होते हैं, चय एवं उपचय को प्राप्त होते हैं ।
वे विमान द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है ।
- यावत् - स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वत है ।
इसी प्रकार - यावत् - अनुत्तरौपपातिक विमान पर्यन्त कहना चाहिए ।
वैमानिक विमानों के वर्ण
६१. प्र० - भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमान कितने वर्ग वाले कहे गये है?
उ०- गौतम ! पांच वर्ण वाले कहे गये हैं, यथा
१. कृष्ण, २. नील, ३. लोहित = रक्त, ४. हारिद्र = पीला, और ५. शुक्ल = सफेद ।
सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में विमान चार वर्ण वाले कहे गये हैं, यथा
नील- बाबद शुक्ल
ब्रह्मलोक और लांतक कल्प में विमान तीन वर्ण वाले कहे गये हैं, यथा
लोहित - पावत् शुक्ल ।
महाशुक्र और सहस्रारकल्प में विमान दो वर्ण वाले कहे गये हैं, यथा
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(१) हारिद्र और ( २ ) शुक्ल ।
आनत यावत्-अच्युतकल्प में विमान शुक्ल वर्ण वाले कड़े गए हैं
वेयक विमान शुक्ल वर्ण वाले कहे गये हैं । अनुत्तरोपपातिक विमान परम शुक्ल वर्ण वाले कहे गये हैं ।