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________________ ६८२ लोक- प्रज्ञप्ति ऊर्ध्व लोक : वैमानिक विमानों के उपादान मज्झे, सो चेव गमो जाव - छम्मासे अत्थेगइया वीइ वएज्जा, अत्थेगइया विमाणा नो वीइवएज्जा । एवं जान अगुत्तरोववाहया विमाणा अत्येवं विमानं वीएन्जा, अत्येगइयं विमानं नो वीइवएज्जा । —जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. २१३ मणिय विमाणार्ण उप्पादार्थ --- ६०. ५० - सोहम्मोसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा किं मया पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! सव्वरयणामया पण्णत्ता । तत्थ णं बहवे जीवा य, पोग्गला य, वक्कमंति विउक्कमति, चयंति, उवचयंति । सासया णं ते विमाणा दव्वट्टयाए । जाव फासपज्जवेहि असासया । एवं जाव - अणुत्तरोववाइया विमाणा । - जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. २१३ वैमाणिय विमाणाणं वण्णाइ - ६१. ५० - सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा कतिवण्णा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! पंचवण्णा पण्णत्ता, तं जहा १. किण्हा, २. नीला, ३. लोहिया, ४. हालिद्दा, ५. किल्ला सकुमार माहिदे कप्पेसु विमाणा चडवण्णा पण्णत्ता, तं जहा - मलाक्कल्ला | भलो संतए कप्पे विमाणा तिवरणा पण्णत्ता, तं जहा - लोहिया जाता। महासुक्क सहस्सारेसु कप्पेसु विमाणा दुबणा पणत्ता, तं जहा १. हाला य २. सुकिल्ला य आणय- जाव-अच्चुएसु कप्पेसु विमाणा सुक्किल्ला पण्णत्ता । गेवेज्ज विमाणा सुविकल्ला पण्णत्ता । अणुत्तरोबचाइयविमाणा परममुकिल्ला पण्यता । - जीवा, पडि, ३, उ. १, सु. २१३ सूत्र ६०-६१ बीच में है। वही गम समझना, यावत् ( देव शीघ्र गति से ) छ मास तक चलता जाए तो — यावत्-कितनेक विमानों को पार कर पाए और कितनेक विमानों को पार न कर पाए। इस प्रकार अनुसरोपपातिक विमान पर्यन्त कहना चाहिए । ( शीघ्र गति देव छह मास तक चलने पर भी) किसी विमान को पार जा सके और किसी विमान के पार न जा सके । वैमानिक विमानों के उपादान ६०. प्र० - भगवन् ! सौधर्म और ईशानकल्प में विमान किससे बने हुए कहे गये हैं ? उ०- गौतम ! सर्वरत्नमय कहे गये हैं । उनमें अनेक जीव और पुद्गल जाते हैं, उत्पन्न होते हैं, चय एवं उपचय को प्राप्त होते हैं । वे विमान द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है । - यावत् - स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वत है । इसी प्रकार - यावत् - अनुत्तरौपपातिक विमान पर्यन्त कहना चाहिए । वैमानिक विमानों के वर्ण ६१. प्र० - भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमान कितने वर्ग वाले कहे गये है? उ०- गौतम ! पांच वर्ण वाले कहे गये हैं, यथा १. कृष्ण, २. नील, ३. लोहित = रक्त, ४. हारिद्र = पीला, और ५. शुक्ल = सफेद । सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में विमान चार वर्ण वाले कहे गये हैं, यथा नील- बाबद शुक्ल ब्रह्मलोक और लांतक कल्प में विमान तीन वर्ण वाले कहे गये हैं, यथा लोहित - पावत् शुक्ल । महाशुक्र और सहस्रारकल्प में विमान दो वर्ण वाले कहे गये हैं, यथा - (१) हारिद्र और ( २ ) शुक्ल । आनत यावत्-अच्युतकल्प में विमान शुक्ल वर्ण वाले कड़े गए हैं वेयक विमान शुक्ल वर्ण वाले कहे गये हैं । अनुत्तरोपपातिक विमान परम शुक्ल वर्ण वाले कहे गये हैं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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