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________________ ६८० लोक-प्रज्ञप्ति प० - बंभलोए णं भंते ! कप्पे विमाण पुढवी कि पट्टिया पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! घणवायपइट्टिया पण्णत्ता । प० - लंतए णं भंते ! कप्पे विमाणपुढवी कि पट्टिया पणता ? उ०- गोयमा ! तदुभयवइट्टिया पण्णत्ता । प० ऊर्ध्वलोक : वैमानिक विमानों के संस्थान महासुक्क सहस्सारेसु वि तदुभय पइट्टिया पण्णत्ता । - आणय- जाव अच्चुए णं भंते ! कप्पेसु विमाण पुढवीं किं पट्टिया पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! ओवासंतर पइट्टिया पण्णत्ता । प० - गेविज्जगेसु णं भंते ! विमाणापुढat fक पट्टिया पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! ओवासंतर पट्टिया पण्णत्ता । प० - अणुत्तरोववाइएसु णं भंते ! विमाणपुढवी कि पट्टिया पण्णत्ता ? उ०- गोयना ! ओवातरपट्टिया पम्मत्ता।" -जीवा. पडि ३, उ. १, सु. २०६ - वैमाणिय विमाणाणं संठाणाई - ५७. ति संठिया विमाणा पण्णत्ता । तं जहा(१) बट्टा, (२) संसा, (३) रंगा (1) से बट्टा विमाणा से गं पुक्खरकणिया संठाणसंठिया सव्वओ समंता पागारपरिक्खित्ता । एग दुवारा पण्णत्ता । (२) तत्थ णं जे ते तंसा विमाणा ते णं सिंघाडगसंठाण संठिया | दुहओ पागार परिक्खित्ता । एगओ वेइआ परिक्खित्ता तिदुवारा पण्णत्ता । (३) तत्थ णं जे ते चउरंसा विमाणा । ते णं अक्खाडग संठाण संठिया । सव्वओ समंता वेइया परिक्खित्ता । चउ दुवारा पण्णत्ता । - ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १८६ ५० सोहम्मीसामु षं मंते! कल्पेविमाया कि संठिया पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! विमाणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- १. आवलियापविट्ठा, २. आवलियाबाहिरा य । सूत्र ५६-५७ प्र०—भगवन् ! ब्रह्मलोक कल्प में विमानों की पृथ्वी किस पर प्रतिष्ठित कही गई है ? उ०- गौतम ! घनवात पर प्रतिष्ठित कही गई है । प्र०—भगवन् ! लान्तक कल्प में विमानों की पृथ्वी किस पर प्रतिष्ठित कही गई है । उ०- गौतम ! घनोदधि और घनवात पर प्रतिष्ठित कही गई है। महाशुक्र और सहस्रारकल्प में भी विमान पृथ्वी घनोवधि और घनवात पर प्रतिष्ठित कही गई है । प्र० - भगवन् ! आनत - यावत्- अच्युत कल्पों में विमान पृथ्वि किस पर आश्रित कही गई है ? 80 - गौतम ! अवकाशान्तर पर प्रतिष्ठित कही गई है । प्र० - भगवन् ! ग्रैवेयकों में विमानों की पृथ्वियां किस पर प्रतिष्ठित कही गई है ? उ०- गौतम ! अवकाशान्तर पर प्रतिष्ठित कही गई है । प्र० - भगवन् ! अनुत्तरोपपातिकों में विमानों की पृथ्वियाँ किस पर प्रतिष्ठित कही गई है ? उ०—गौतम ! अवकाशान्तर पर प्रतिष्ठित कही गई है । वैमानिक विमानों के संस्थान ५७. विमान तीन संस्थान वाले कहे गए हैं यथा (१) वृत्त गोल, (२) त्रिकोण (३) चतुष्कोण । 1 इनमें से जो वृत्त विमान हैं वे पुष्कर कणिका के आकार से स्थित हैं। चारों ओर प्राकार से घिरे हुए हैं, एक द्वार वाले हैं । इनमें से जो त्रिकोण विमान हैं, वे संघाडे के आकार से स्थित हैं। दोनों ओर प्राकार से घिरे हुए हैं एक ओर वेदिका वाले हैं, उनके तीन द्वार कहे गये हैं । इनमें से जो चतुष्कोण विमान है, ये अखाड़े के आकार से स्थित हैं। चारों ओर वेदिका से घिरे हुए हैं उनके चार द्वार कहे गए हैं। प्र० - भगवन् ! सौधर्म और ईशानकल्प में विमान किस संस्थान वाले कहे गये हैं । उ०- गौतम ! विमान दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. आवलिका प्रविष्ट और अवालिका बाह्य | १ तिपहिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा – (१) घणोदहिपट्टिया, (२) घणवायपइट्ठिया, (३) ओवासंतरपट्टिया | - ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १८६
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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