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लोक - प्रज्ञप्ति
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ऊर्ध्वलोक : तमस्काय में दृश्य पृथ्वीकाय और तेजस्काय के अभाव की प्ररूपणा
प० तं भंते! किं देवो पकरेति ? असुरो पकरेति ? नागो पकरेति ?
उ०- गोयमा ! देवो वि पकरेति, असुरो वि पकरेति, नागो वि पकरेति ।
प० – अत्थि णं भंते ! तमुक्काए बादरे थणियसद्द ? बादरे विज्जुए ?
उ०- हंता गोयमा ! अस्थि ।
प० तं भंते! कि देवो पहरेति असुरो पकरेति नागो पकरेति ?
उ०- गोयमा ! तिष्णि वि पकरेंति ।
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उ०- गोयमा ! नो तिणट्टे समट्ठे । नन्नत्य विग्गहगति समावन्नाएणं ।
-भग. स. ६, उ. ५, सु. १०
- भग. स. ६, उ. ५, सु. ६
तमुक्काए बादरपुढविकाय अगणिकायाणं अभाव तमस्काय में दृश्य पृथ्वीकाय और तेजस्काय के अभाव की परवर्ण
उ०- गोयमा ! नो तिण े समट्ठ े ।
पलिपस्सतो पुण अस्थि ।
प्ररूपणा
४६. प० – अस्थि णं भंते ! तमुक्काए बादरे पुढविकाए, बादरे ४६. प्र० - भगवन् ! तमस्काय में दृश्य पृथ्वीकाय है, दृश्य अग्निअगणिकाए ?
काय है ?
प० -अस्थि णं भंते! तमुक्काए चंदाभा इ वा सूराभा इ वा ? उ०--- गोवमा मोतिमट्ठे समाया पुन सा -भग. ६, उ. ५, सु. ११-१२
तमुक्काय वण्ण-परूवणा५१. प० -- तमुक्काए णं भंते ! केरिसए वण्णेणं पण्णत्ते ? उ०- गोयमा ! काले कालोभासे गंभीरलोम हरिस जणणे भीमे उतासणए परमकि वर्ण पण
सूत्र ४८-५२
प्र० - भगवन् ! क्या मेघ तथा वृष्टि देव करता है ? असुर करता है ? या नाग करता है ?
उ०- गौतम ! देव भी करता है, असुर भी करता है, ना भी करता है ।
देवे विणं अस्थिगइए जे णं तप्पढमयाए पासित्ताए णं खंभा एज्जा अहे णं अभिसमागच्छेज्जा । तओ पच्छा सोहं सोहं तुरियं यं मे
- भग. स. ६, उ. ५, सु. १३
प्र० - भगवन् ! तमस्काय में गर्जना का श्रव्य शब्द हैं ? और दृश्य विद्युत है ?
उ०- गौतम ! है ।
तमुक्काए चंद सूरियाईणं अभाव-परूवणं
तमस्काय में चन्द्र सूर्यादि के अभाव का प्ररूपण -
५०. ० -अस्थि णं भंते! तमुक्काए चंदिम सूरिय- गहगण णक्खत्त ५० प्र० - भगवन् ! तमस्काय में चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और
तारारूवा ?
तारा है ?
मुक्कायस्स नामधेयाणि५२. ५० - तमुक्कायस्स णं भंते ! कति नामधेज्जा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! तेरस नामधेज्जा पण्णत्ता । तं जहा
१. तमे इवा, २. तमुक्काए इ वा, ३. अंधकारे इ वा
प्र० - भगवन् ! उस गर्जना और विद्युत को क्या देव करता है ? असुर करता है ? नाग करता है ?
उ०- गौतम ! तीनों ही करते हैं ।
उ०- गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । विग्रह गति प्राप्त जीवों को छोड़कर ।
उ०- गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । हां, पार्श्व भाग में हैं।
प्र० - भगवन् ! तमस्काय में चन्द्र, सूर्य की आभा है ? उ०- गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। किन्तु उसकी दूषित करने वाली प्रभा है ।
तमस्काय के वर्ण की प्ररूपणा
५१. प्र० - भगवन् ! तमस्काय का वर्ण कैसा कहा गया है ?
उ०- गौतम ! कृष्ण, कृष्णाभास, अत्यधिक रोमांचक भयानक त्रासदायक उत्कृष्ट कृष्ण वर्णं कहा गया है ।
कोई-कोई देव तो से देखकर स्तम्भित हो जाता है। फिर भी यदि कोई उसे पार करना चाहता है तो अतिशीघ्र त्वरित गति से पार करता है ।
तमस्काय के नाम
५२. प्र० - भगवन् ! तमस्काय के कितने नाम कहे गये हैं ? उ०- गौतम ! तेरह नाम कहे गये हैं, यथा
१. तम, २. तमस्काय, ३. अंधकार, ४. महांधकार,