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सूत्र ४६-४८
ऊर्ध्व लोक : तमस्काय में घर-ग्राम आदि के अभाव का प्ररूपण
गणितानुयोग
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इवा?
तमुक्काए गिहगामाइ अभाव परूवणा
तमस्काय में घर ग्राम आदि के अभाव का प्ररूपण४६. ५०-अत्थि णं भंते ! तमुक्काए गेहा इ वा, गेहावणा इवा? ४६. प्र०-भगवन् ! तमस्काय में घर या दुकानें हैं ? उ०-गोयमा ! नो इण? समट्ठ।
उ०-गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं । १०-अस्थि णं भंते ! तमुक्काए गामा इ वा-जाव-सन्निवेसा प्र०-भगवन् ! तमस्काय में ग्राम-यावत्-सन्निवेश
आदि हैं ? उ०-गोयमा ! नो इण8 सम8।।
उ०-गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । -भग. स. ६, उ.५, सु. ६-७ चउविहेहि देवेहिं तमुक्काय पकुव्वणं
चार प्रकार के देवों द्वारा तमस्काय की रचना४७. ५०-जाहे णं भंते ! ईशाणे देविदे देवराया तमुक्कायं काउ- ४७. प्र०-भन्ते ! ईशानेन्द्र देवेन्द्र देवराज जब तमस्काय की कामे भवइ, से कहमियाणि पकरेइ ?
रचना करना चाहता है तब वह किस प्रकार करता है ? उ०-गोयमा ! ताहे चेव णं ईशाणे देविदे देवराया अभि- उ०-गौतम ! तब वह ईशानेन्द्र देवेन्द्र देवराज आभ्यन्तर तर परिसए देवे सद्दावेइ ।
परिषद् के देवों को बुलाता है । तए णं ते अभिन्तर परिसया देवा सद्दाविया समाणा तब वे आभ्यन्तर परिषद् के देव बुलाए हुए शक्र के समान एवं जहेव सक्कस्स जाव ।
आभियोगिक देवों को बुलाकर उनके द्वारा तमस्कायिक देवों को तए ण ते आभिओगिया देवा सद्दाविया समाणा बुलाते हैं । तमुक्काइए देवे सद्दावेति । तए णं ते तमुक्काइया देवा सद्दाविया समाणा तमुक्का- तब वे बुलाए हुए तमस्कायिक देव तमस्काय की रचना इयं पकरेंति ।
करते हैं। एवं खलु गोयमा ! ईशाणे देविदे देवराया तमुक्कायं इस प्रकार हे गौतम ! ईशानेन्द्र देवेन्द्र देवराज तमस्काय की पकरेइ ।
रचना करवाता है। ५०–अस्थि णं भंते ! असुरकुमारा वि देवा तमुक्कायं ५०-भन्ते ! क्या असुर कुमार देव भी तमस्काय की रचना पकरेंति ?
करते हैं ? उ०-हंता गोयमा ! अस्थि ।
उ०-हाँ गौतम ! असुर कुमार देव भी तमस्काय की रचना
करते हैं। प०-कि पत्तियं णं भंते ! असुरकुमारा देवा तमुक्कायं प्र०-भन्ते ! असुर कुमार देव किसलिए तमस्काय की पकरेंति?
रचना करते हैं ? उ०-गोयमा ! (१) किड्डा रतिपत्तियं वा ।
उ०-गौतम ! (१) रतिक्रीडा के लिए। (२) पडिणीय विमोहणट्ठयाए वा ।
(२) शत्रु को छलने के लिए। (३) गुत्ति सारक्खण हेउ वा ।
(३) दूसरे देवों की चुराई हुई मूल्यवान वस्तुओं को छिपाने
के लिए। (४) अप्पणो वा सरीर पच्छायणट्ठयाए वा ।
(४) अपने आपको छिपाने के लिए। एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा वि देवा तमुक्कायं इस प्रकार हे गौतम ! असुर कुमार देव भी तमस्काय की पकरेंति । एवं जाव वेमाणिया ।
रचना करते हैं। -भग. स. १४, उ. २, सु. १४-२७ इस प्रकार वैमानिक पर्यन्तक हैं। तमुक्काए बलाहयाईणं अत्थित्तं देवाइकारियत्तं च तमस्काय में देवकृत मेघ आदि का प्ररूपण
परूवणं४८. १०-अस्थि णं भंते ! तमुक्काए ओराला बलाहया संसेयंति ४८.प्र०-भगवन् ! तमस्काय में मेघ संस्वेदित होते हैं, सम्मूच्छित सम्मुच्छंति; वासं वासंति ?
होते हैं और वर्षा बरसती हैं ? उ०-हंता गोयमा ! अत्थि ।
... उ०-हां गौतम ! वर्षा बरसती हैं।