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________________ ६७६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : तमस्काय के संस्थान का प्ररूपण सूत्र ४२-४५ सणंकुमार-माहिदे चत्तारि वि कप्पे आवरित्ताणं' उड्ढं माहेन्द्र इन चार कल्प को आवृत करती हुई ऊपर-यावतपि य णं-जाव-बंभलोगे कप्पे रिढविमाणपत्थर्ड संपत्ते, ब्रह्मलोक कल्प के रिष्ट विमान के प्रस्तट में तमस्काय समाप्त एत्थ णं तमुक्काए सन्निट्ठिए। होती है। -भग. स. ६, उ. ५, सु.२ तमुक्कायस्स संठाण-परूवणं तमस्काय के संस्थान का प्ररूपण४३. १०-तमुक्काए णं भंते ! कि संठिए पण्णते ? ४३. प्र० --भगवन् ! तमस्काय का संस्थान क्या कहा गया है ? ७०-गोयमा ! अहे मल्लगमूलसंठिए । उ०-गौतम ! नीचे सकोरे के मूल जैसे आकार वाली है, उपि कुक्कुडग पंजरगसंठिए पण्णत्ते । और ऊपर कुर्कट (मुर्गा) के पिंजरे जं से आकार वाली है। -भग. स. ६, उ.५, सु. ३ तमुक्कायस्स विक्खंभ-परिक्खेव परूवणं तमस्काय की चौड़ाई और परिधि का प्ररूपण४४. ५०-तमुक्काए णं भंते ! केवइयं विक्खंभेणं ? ४४. प्र०-भगवन् ! तमस्काय की चौड़ाई कितनी कही गई है ? ५०-केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते? प्र०–तमस्काय की परिधि कितनी कही गई है। उ०—गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा उ०-गौतम ! तमस्काय दो प्रकार की कही गई है, यथा१. संखेज्जवित्थडे य, (१) संख्यात योजन के विस्तार वाली, २. असंखेज्जवित्थडे य। (२) असंख्यात योजन के विस्तार वाली। तत्थ णं जे से संखेज्जवित्थडे से णं संखेज्जाइं जोयण- इनमें संख्यात योजन विस्तार वाली की चौड़ाई संख्यात सहस्साई विक्खंभेणं। हजार योजन की कही गई है। असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णते। परिधि असंख्य हजार योजन की कही गई है। तत्थ णं जे से असंखेज्जवित्थडे से असखेज्जाइं जोयणं असंख्यात योजन के विस्तार वाली की चौडाई असंख्यात सहस्साई विक्खंभेणं । हजार योजन कही गई है। असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते । परिधि असंख्य हजार योजन की कही गई है। -भग. स. ६, उ. ५, सु. ४ तमुवकायस्स महालयत्त-परूवणं तमस्काय की महानता का प्ररूपण४५. ५०-तमुक्काए णं भंते ! के महालए पण्णते? ४५. प्र०-भगवन् ! तमस्काय कितनी बड़ी कही गई है ? उ०-गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे-जाव-परिक्खेवेणं उ०-गौतम ! यह जम्बूद्वीप द्वीप-यावत्-परिधि वाला पण्णत्ते। कहा गया है। देवे णं महिड्ढीए-जाव-महाणुभागे "इणामेव इणामेव" कोई महाऋद्धि वाला—यावत्-महाभाग्यशाली देव 'अभी त्ति कटु केवल कप्पं जंबुद्दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहि आया, अभी आया', कहता हुआ तीन चुटकियाँ बजावे जितने तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छिज्जा। समय में पूरे जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा करके शीघ्र आ जावे। से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए-जाव-देवगईए वह देव उस उत्कृष्ट त्वरित-यावत्-देवगति से चलतावीईवयमाणे वीइवयमाणे एकाहं वा, दुयाहं वा, चलता एक मास, दो मास, तीन मास, उत्कृष्ट छह मास तक चलने तियाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे वीइवएज्जा अत्थेगइए पर तमस्काय के कुछ भाग को पार कर लेता है और कुछ भाग तमुक्कायं बीइवएज्जा अत्थेगइए तमुक्कायं नो वीइ- को पार नहीं कर पाता । वऐज्जा। ए महालए गं गोयमा ! तमुक्काए पण्णत्ते । हे गौतम ! तमस्काय इतनी बड़ी कही गई है। -भग. स. ६, उ. ५, सु. ५ १ तमुक्काए णं चत्तारि कप्पे आवरित्ता चिट्ठइ, तं जहा-१-२. सोहम्ममीसाणाणं, ३. सणंकुमार, ४. माहिदं । -ठाणं. अ.४, उ.२, सु. २६१
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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