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________________ सूत्र ३६-४२ कवलोककृष्णरानियों के परिणमत्व का प्ररूपण गणितानुयोग ६७५ कण्हराईणं परिणामत्त-परूवणं कृष्णराजियों के परिणमत्व का प्ररूपण३६. ५०-कण्हराईओ गं भंते ! किं पुढविपरिणामाओ, आउपरि. ३६. प्र०-भगवन् ! कृष्ण राजियाँ क्या पृथ्वी का परिणाम है ? णामाओ जीवपरिणामाओ, पुग्गलपरिणामाओ? अप् (जल) का परिणाम है ? जीव का परिणाम हैं ? या पुद्गल का परिणाम है? उ०-गोयमा ! पुढविपरिणामाओ, ___उ०—गौतम ! पृथ्वी का परिणाम है, अप् का परिणाम नो आउपरिणामाओ, नहीं है । जीवपरिणामाओ वि पुग्गलपरिणामाओ थि । जीव का परिणाम भी है और पुद्गल का परिणाम भी है। -भग. स. ६, उ. ५, सु ३० कण्हराईसु सर्वसि पाणाईणं उववन्नपुव्वत्त-परूवणं- कृष्णराजियों में सभी प्राणियों की पूर्वोत्पत्ति का प्ररूपण४०.५०-कण्हराईसु णं भंते ! सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता ४०. प्र०-भगवन् ! कृष्णराजियों में सभी प्राणी, भूत, जीव, उववन्नपुवा? __ सत्व पूर्वोत्पन्न हैं ? उ०-हंतो गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो नो चेवणं उ०-हाँ गौतम ! अनेक बार, अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, बादर आउकाइयत्ताए, बादर अगणिकाइयत्ताए बादर किन्तु दृश्य, जल, दृश्य अग्नि या दृश्य वनस्पति रूप में नहीं वणस्सइ काइयत्ताए वा। उत्पन्न हुए हैं। -भग. स. ६, उ.५, सु. ३१ तमुक्कायसरूव-परूवणं तमस्काय के स्वरूप का प्ररूपण४१. ५०-किमियं भंते ! तमुक्काए त्ति पवुच्चइ ? ४१. प्र०-भगवन् ! तमस्काय का स्वरूप कैसा है ? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पवुच्चइ ? प्र०-तमस्काय क्या पृथ्वी रूप है ? आउ तमुक्काए त्ति पवुच्चइ ? तमस्काय क्या जल रूप है ? ७०-गोयमा ! नो पुढवी तमुक्काए त्ति पवुच्चइ । उ०-गौतम ! तमस्काय पृथ्वी रूप नहीं है । आउ तमुक्काए त्ति पवुच्चइ । तमस्काय जल रूप है। ५०-से केण?णं भंते ! एवं पवुच्चइ ? प्र०-भगवन् ! तमस्काय जल रूप कैसे हैं ? उ०-गोयमा ! पुढविकाए णं अत्यंगइए सुभे देसं पकासेइ, उ०-गौतम ! पृथ्वीकाय किसी एक शुभ देश को प्रकाशित अत्थेगइए देसं नो पकासेइ । करती हैं और किसी एक देश को प्रकाशित नहीं करती है । से तेण?णं गोयमा ! एवं पवुच्चइ-नो पुढवी हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि तमस्काय तमुक्काए त्ति पवुच्चइ, आउ तमुक्काए ति पवुच्चइ । पृथ्वीकाय रूप नहीं है । तमस्काय अप्काय (जल) रूप है । -भग. स. ६, उ. ५, सु. १ तमुक्कायस्स समुदाण-सन्निट्टिए य परूवणं- तमस्काय की उत्पत्ति और समाप्ति का प्ररूपण४२. ५०-तमुक्काए णं भंते ! कहिं समुट्ठिए ? ४२. प्र०-भगवन् ! तमस्काय कहां उत्पन्न होती है ? ५०–कहिं सन्निहिए? प्र०-कहां समाप्त होती है। उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे उ०-गौतम ! जम्बूद्वीप द्वीप के बाहर असंख्य द्वीप समुद्र दीव समुद्दे वीइवइत्ता अरुणवरस्स दोवस्स बाहि- के बाद अरुणवर द्वीप की बाहर की वेदिका के अन्तिम भाग से रिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुदं बायालीसं अरुणोदय समुद्र में बियालीस हजार योजन अवगाहन करने पर जोयण सहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एक प्रदेशी श्रेणी में तमस्काय उत्पन्न होती है। एगपएसियाए सेढीए, एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। ३०-सत्तरस एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उप्पइत्ता तओ पच्छा उ-सत्रह सौ इक्कीस हजार योजन ऊपर जाने पर तिरछी तिरियं पवित्परमाणे पवित्थरमाणे मोहम्मीसाण- फैलती-फलती १. सौधर्म, २. ईशान, ३. सनत्कुमार, ४. और
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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