SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 841
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७४ लोक-प्रज्ञप्ति ऊर्व लोक : कृष्णराजियों में अप्कायिकों के अभाव का प्ररूपण सूत्र ३४-३८ उ०-गोयमा ! देवो पकरेइ, मो असुरो नो नागो य । उ०-गौतम ! देव करता है, असुर नहीं करता है, नाग नहीं करता है। प०-अस्थि णं कण्हराईसु बादरे थणियसः बादरे विज्जुए? प्र०-भगवन् ! कृष्णराजियों में श्रव्य गर्जना है ? दृश्य विद्युत है ? उ०-हंता गोयमा ! अत्थि । उ०-गौतम ! है। ५०-तं भंते ! कि देवो पकरेइ, असुरो पकरेइ, नागो प्र०-भगवन् ! क्या उन्हें देव करता है ? असुर करता पकरे? है ? या नाग करता है ? ७०-गोयमा ! वेवो पकरेइ, नो असुरो, नागो य। उ०—गौतम! देव करता है, असुर और नाग नहीं -भग. स. ६, उ. ५, सु. २३-२४ करता है । कण्ह ईसु बादर आउकाइयाईणं अभाव-परूवण- कृष्णराजियों में अप्कायिकों के अभाव का प्ररूपण३५. ५०- भंते ! कण्हराईसु बादरे आउकाए, बादरे ३५. प्र०-भगवन् ! कृष्णराजियों में दृश्य अप्काय (जल) है? __अगणिकाए, बादरे वणप्फइकाए? अग्निकाय है ? वनस्पतिकाय है ? उ०--गोयमा ! नो इण? सम8, नन्नत्थ विग्गहगइ समा- उ०-गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, विग्रह गति प्राप्त बन्नएणं । -भग. स. ६, उ. ५, सु. २५ जीवों को छोड़ कर । कण्हराईसु चंदाईणं अभाव-परूवणं कृष्णराजियों में चन्द्र आदि के अभाव का प्ररूपण३६. ५०–अस्थि णं भंते ! कण्हराईसु चंदिम-सूरिय-गहगण- ३६. प्र०-भगवन् ! कृष्णराजियों में चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, णक्खत्त तारारूवा? या तारा है ? उ०-गोयमा ! नो इण? समट्ठ। उ०-गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । ५०–अस्थि णं भंते ! कण्हराईसु चंदाभा इ वा, सरियामा प्र०- भगवन् ! कृष्णराजियों में चन्द्र सूर्य की आभा है। इवा? उ०-गोयमा ! नो इण? सम8। उ०-गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । -भग. स. ६, उ. ५, सु. २६-२७ कण्हराईणं वण्णपरूवणं कृष्णराजियों के वर्ण का प्ररूपण३७. कण्हराईओ णं भंते ! केरिसियाओ वण्णेणं पण्णते? ३७. प्र०-भगवन् ! कृष्णराजियाँ कैसे वर्ण की कही गई है ? उ० - गोयमा ! कालाओ जाव-परमकिण्हाओ वण्णेणं पण्ण- उ० --- गौतम ! श्याम-यावत्-उत्कृष्ट कृष्ण वर्ण की ताओ ? देवे वि णं अत्थेगइए जे णं तप्पढमयाए पासि- कही गयी है। कोई देव तो उसे देखकर पहले तो स्तम्भित हो त्ता णं खंभाएज्जा, अहे णं अभिसमागच्छेज्जा तओ पच्छा जाता है फिर उसमें जाना चाहता है तो जल्दी-जल्दी बड़े वेग से सीहं सीहं तुरियं तुरियं खिप्पामेव वीइवएज्जा। उसे पार करता है। -भग. स. ६, उ. ५, सु. २८ कण्हराईणं णामधेज्जाणि कृष्णराजियों के नाम३८. ५०-कण्हराईणं कति नामधेज्जा पण्णता? ३८. प्र०-कृष्णराजियों के कितने नाम कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! अट्ठनामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा उ०-आठ नाम कहे गये हैं१. कण्हराई इ वा, २. मेहरा इ वा, (१) कृष्णराजि, (२) मेघराजि, ३. मघा इवा, ४. माधवई इवा, (३) मघा, (४) माघवती, ५. वातफलिहे इवा, ६. वातपलिक्खोभे इवा, (५) वातपरिघा, (६) वात परिक्षोभा, ७. देवफलिहे हवा, ८. देवपलिक्खोभे इ वा। (७) देवपरिघा, (८) देव परिक्षोभा। -भग. स. ६, उ. ५, सु. २६
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy