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________________ सूत्र ३१-३४ कव्हराईण आयाम-विवम-परुवर्ण ३१. ० कन्हईओ णं भंते । केवड आयामेण ? ared लोक : कृष्णराजियों के आयाम-विष्कम्भ का प्ररूपण केवइयं विवखमेणं ? केव उ०- गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणं सहस्साई आयामेणं । परिवेत्ताओ ? असंलाई जोयणसहस्साइं विषमेणं सेन्नाई जीर्णसहस्सा परिषदेयेषां पण्यताओ। - भग. स. ६, उ. ५, सु. १६ कव्हराईणं पमाण-पवणं३२. ० ईओ नं ते उ०- दोषमा | अयं णं पण्णत्ते । - के महाविद्याओ पष्णताओ ? महीने बोये जाव-परिषदेवे देवे महिडडीए-जाव-महाभागे "इणामेव नामेव" कि केवल जंबुद्दीवं दीवं तिहि अच्छरा निवाहिं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छिज्जा । से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए - जाव देवगईए वो वयमाणे वीईवयमाणे एकाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं अद्धमासं वीईवएज्जा । सत्येगइयं कराई थी। अत्येगइयं हराईनो बोईवा । एमहालियाओ णं गोयमा ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ । - भग. स. ६, उ. ५. सु. २० गणितानुयोग कृष्णराजियों के आयाम - विष्कम्भ का प्ररूपण - ३१. प्र० - भगवन् ! कृष्णराजियों की -- लम्बाई कितनी कही गई है ? चौड़ाई कितनी कही गई है ? परिधि कितनी कही गई है ? उ०- गौतम ! लम्बाई असंख्य हजार योजनों की कही गई है। ६०१ चौड़ाई असंख्य हजार योजनों की कही गई है। परिधि असंख्य हजार बोजनों की कही गई है। कृष्णराजियों के प्रमाण का प्ररूपण - ३२. प्र० - भगवन् ! कृष्णराजियाँ कितनी बड़ी कही गई हैं ? उ०- गौतम ! यह जम्बूद्वीप - यावत् - परिधि वाला कहा गया है । कोई महाऋद्धि वाला बायतु महा भाग्यवान् देव "यह आया, यह आया" कहता हुआ तीन चुटकियां बजाये जितनी देर में इस जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा करके शीघ्र आ जावे । वह देव उस उत्कृष्ट शीघ्र - यावत् — देव गति से जाता हुआ एक दिन, दो दिन, तीन दिन, उत्कृष्ट पन्द्रह दिन निरन्तर चले तो किसी एक कृष्णराजि को पार कर सके और किसी एक कृष्णराजि को पार न कर सके । हे गौतम! इतनी बड़ी कृष्णराजियाँ कही गई हैं । कण्हराईसु गेहाईणं अभाव - परूवणाकृष्णराजियों में "गृह" आदि के अभाव का प्ररूपण - ३२.५० अभंते! व्हराई नेहा वाहावमा ३३. प्र० भगवद् कृष्णराजियों में घर अथवा दुकानें हैं? ! इ वा ? उ०-- गोयमा ! नो इणट्ठे सम । ५० अस्थि मते ! कन्हराई गाथाई बा-जाय-प्रियेसा इ वा ? उ०- गोयमा ! नो इण सम | - - भग. स. ६, उ.५, सु. २१-२२ कण्हराई ओराल देवकारियतं बलामाईणं अत्यित्तं ३४. अस्थि भंते! कन्हराईनु ओराला बसाया, १. संसेति णं २. २. बासंबाति ? उ०- हंता गोयमा ! अस्थि । कि देवो पकरेड, असुरो पफरे, नामो १०- मंते पकरेड ? उ०- गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र० - भगवन् ! कृष्णराजियों में गाँव आदि - यावत्सवेषादि है? उ०- गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं । कृष्णराजियों में देवकृत मेघ आदि का अस्तित्व - ३४. प्र० भगवन् ! कृष्णराजियों में विशाल मेष मालायें है ? वे संस्थेदित होती हूँ? उत्पन्न होती है ? बरसती है ? उ०- गौतम ! होती हैं । प्र० - भगवन् ! क्या उन्हें देव करता है ? असुर करता है ? या नाग करता है ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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