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लोक- प्रज्ञप्ति
ऊर्ध्वलोक कल्पों के संस्थान
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कप्पाणं संठाणं
हेट्ठिल्ला चत्तारि कप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं 'जहासोहम्मे ईसाणे, सणकुमारे, माहिंदे ।
चित्तारि कप्पा परिपुष्णचंदठागडिया पण्णत्ता तं जहा - बंभलोगे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे । उवरिल्ला चत्तारि कप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा – आणए, पाणए, आरणे, अच्चुए ।
- ठाणं ० ४, उ० ४, सु०३८३ कण्हराईणं संखा - ठाणाइ य परूपणं३०. ५० - कति णं भंते ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ ? उ०- गोयमा ! अट्ठ कम्हराईओ पाओ तं जहा पुरस्मे दो पदो दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो ।
प० - कहि णं भंते ! एयाओ अट्ट कण्हराईओ पण्णत्ताओ ? ३० गोयमा उपि सकुमार माहिदा का हेमिलोगे कप्पे रिविमापत्थडे ।
एत्थ णं अक्खाडग-समचउरंस संठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ । तं जहा -
१. पुरम कन्हराई दाहिणबाहिरं कण्हराई पुट्ठा ।
२. दाहिणमंत कव्हराई पन्चत्थिवाहिर क राई पुट्ठा ।
३. पञ्चस्थिमभंतरा कण्हराई उत्तरबाहिरं कण्हराई पुट्ठा।
४. उतरमंतरा राई पुरस्थमाहिर पुट्ठा
यो पुरस्थमयन्त्यमा बाहिराजी कव्हराईओ छलंसाओ ।
दो उत्तर दाहिणाओ बाहिराओ कन्हईओ तंसाओ । दो पुरत्थिम- पच्चत्थिमाओ अभिंतराओ कण्हराईओ चउरंसाओ ।
यो उत्तरदाहिणाओ अभिमंतराओ कहराईओ प रंसाओ ।
संग्रहणी गाहा
पुव्वावरा छलंसा, तंसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा | अनंतर उसा सव्वा वियईओ ॥
-भग. स. ६, उ. ५, सु. १७-१८
सूत्र ३०
कल्पो के संस्थान -
नीचे के चार कल्प अर्ध चन्द्राकार है यथा- (१) सौधर्म, (२) ईशान, (३) सनत्कुमार और (४) माहेन्द्र
,
बिचले चार कल्प पूर्ण च द्राकार हैं। यथा- (१) ब्रह्मलोक, (२) जातक, (३) महालु और (४) सहसार।
ऊपर के चार कल्प अर्ध चन्द्राकार हैं । यथा - ( १ ) आनत, (२) प्राणत, (३) आरण और (४) अच्युत ।
कृष्णराजियों की संख्या और स्थानों का प्ररूपण३०. प्र०—भगवन् ! कृष्णराजियाँ कितनी कही गई हैं ? उ०- गौतम ! कृष्णराजियाँ आठ कही गई हैं, यथापूर्व में दो, पश्चिम में दो,
दक्षिण में दो, उत्तर में दो ।
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प० - भगवन् ! ये आठ कृष्णराजियाँ कहाँ कही गई हैं ? उ०- गौतम ! सनत्कुमार और माहेन्द्रकुमार कल्प के ऊपर, ब्रह्मलोक कल्प के रिष्ट विमान प्रस्तट में नीचे,
अखाडे के समान सम चौरस आकार वाली ये आठ कृष्णराजियाँ कही गई हैं, यथा
१. पूर्व की भीतरी कृष्णराज दक्षिण की बाह्य कृष्णराज
२. दक्षिण की भीतरी कृष्णराज पश्चिम की बाह्य कृष्णराजि पृष्ट है।
३. पश्चिम की भीतरी कृष्णराज उत्तर की बाह्य कृष्णराजि स्पृष्ट है ।
से
उत्तर की भीतरी कृष्णराजि पूर्व की बाह्य कृष्ण राजि से पृष्ट है।
पूर्व-पश्चिम की दो बाह्य कृष्णराजियाँ षट्कोण हैं ।
उत्तर-दक्षिण की दो बाह्य कृष्णराजियाँ त्रिकोण हैं । पूर्व-पश्चिम की दो आभ्यन्तर कृष्णराजियां चतुष्कोण है।
उत्तर-दक्षिण की दो आभ्यन्तर कृष्णराजियां चतुष्कोण हूँ।
संग्रहणीयायार्थ
पूर्व-पश्चिम की सभी बाह्य कृष्णराजियाँ षट्कोण हैं, उत्तर-दक्षिण की सभी बाह्य कृष्णराजियाँ त्रिकोण हैं, पूर्व-पश्चिम की सभी आभ्यन्तर कृष्णराजय चतुष्कोण है, उत्तर-दक्षिण की सभी आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ चतुष्कोण है।