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________________ सूत्र २६ ऊध्वंलोक : ज्योतिष्कों से कल्पों का अन्तर गणितानुयोग ६७१ संगहणी गाहा संग्रहणी गाथापढमजुगलम्मि सत्तउसयाणि, बीयम्मि चोद्दस सहस्सा। प्रथम देव युगल में सात सौ, द्वितीय देव युगल में चौदह ततिए सत्त सहस्सा, नव चेव सयागि सेसेसु ॥ हजार, तृतीय देव युगल में सात हजार तथा शेष देव युगलों में नौ सौ देव परिवार हैं। १०-लोगंतिय विमाणा णं भंते ! किंपइट्ठिया पण्णत्ता? प्र०-भगवन् ! लोकान्तिक विमान किस पर प्रतिष्ठित कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! वाउपइट्ठिया पण्णत्ता। उ०-गौतम ! वायु पर प्रतिष्ठित कहे गये हैं। "विमाणाणं पइट्टाणं बाहल्लुच्चत्तमेव" बंभलोय वत्त- विमानों का आधार-मोटाई और ऊँचाई ब्रह्मलोक के समान व्वया नेयम्बा-जाव। कहनी चाहिए-यावत्प०-लोयंतिय विमाणेसु णं भंते ! सव्वे पाणा भूया जीवा प्र०-भगवन् ! लोकान्तिक विमानों में सभी प्राणी, भूत, सत्ता पुढविकाइयत्ताए-जाव-वणस्सइकाइयत्ताए देव- जीव और सत्व क्या पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पति काय अथवा ताए उववण्णपुव्वा ? देवकाय रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं। उ०-गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो, नो चेव णं उ०-गौतम! अनेक बार; अनन्त बार उत्पन्न हुए है। किन्तु देवेत्ताए। लोकान्तिक विमानों में देव रूप में उत्पन्न नहीं हुए हैं। ५०-लोगंतिय विमाणेहिं णं भंते ! केवइय अबाहाए लोगते प्र०-भगवन् ! लोकान्तिक विमानों से लोकान्त कितने पण्णत्त ? अन्तर पर कहा गया है ? उ०-गोयमा ! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई अबाहाए उ०-गौतम । असंख्य हजार योजन के अन्तर पर कहा लोगंते पण्णत्ते। गया है। -भग. स. ६, उ. ५, सु. ३२-४१/४३ जोइसाओ कप्पाणं अन्तरं ज्योतिष्क से कल्पों का अन्तरप०-जोइसस्स णं भन्ते ! सोहम्मीसाणाण य कप्पाणं केवइयं प्र०-भगवन् ! ज्योतिष्क और सौधर्मेशान कल्पों के मध्य अबाहाए अंतरे पण्णते? में अव्यवहित अन्तर कितना कहा गया है ? उ०-गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणाई-जाव-अंतरे पण्णते। उ०-गौतम ! असंख्य योजन का- यावत्-अन्तर कहा गया है। एवं सोहम्मीसाणाणं सणंकुमार-माहिंदाण य । इसी प्रकार सौवर्मेशान और सनत्कुमार-माहेन्द्र का अन्तर है। एवं सणकुमार-माहिंदाणं बंभलोगस्स य । इसी प्रकार सनत्कुमार-माहेन्द्र और ब्रह्मलोक का अन्तर है एवं बभलोगस्स लंतगस्स य । इसी प्रकार ब्रह्मलोक और लान्तक का अन्तर है। एवं लंतपस्स महासुक्कस्स य । इसी प्रकार लान्तक और महाशुक्र का अन्तर है । एवं महासुक्कस्स सहस्सारस्स य । इसी प्रकार महाशुक्र और सहस्रार का अन्तर है। एवं सहस्सारस्स आणय-पाणयाण य कप्पाणं । इसी प्रकार सहस्रार और आणत-प्राणत का अन्तर है। एवं आणय-पाणयाणं आरणऽच्च्याण य कप्पागं । इसी प्रकार आणत-प्राणत और आरण-अच्युत का अन्तर है। एव आरणऽच्चुयाणं गेवेज्ज विमाणाण य । इसी प्रकार आरण-अच्युत और ग्रेवेयकों का अन्तर है। एवं गेवेज्ज विमाणाणं अणुत्तरविमाणाण य । इसी प्रकार अवेयक और अनुत्तर विमानों का अन्तर है। ५०-अणुत्तर विमाणाणं भन्ते ! ईसिपम्भाराए य पुढवीए प्र-भगवन् ! अनुत्तर विमानों और ईषत् प्रागभारा पृथ्वी केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? के मध्य में अव्यवहित अन्तर कितना कहा गया है ? उ०-गोयमा ! दुवालस जोयण अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। उ०-गौतम ! बारह योजन का अव्यवहित अन्तर कहा -भग० स०१४, उ०८, सु०६-१६ गया है । १ भग. स. ६, उ. ५, सु. ४२ वव्वाणुओगे दट्टव्वं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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