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________________ सूत्र २५-२६ ऊर्ध्व लोक : अच्युत देवेन्द्र वर्णक गणितानुयोग ६६७ ४. अट्ट, एत्थ णं आरणऽच्चुयाणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं यहाँ पर्याप्त और अपर्याप्त आरण और अच्युत देवों के ठाणा पण्णत्ता। स्थान कहे गये हैं, यथातिसु वि लोगस्स असंखेज्जइ भागे। (१) उपपात, (२) समुद्घात और (३) स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में है। तत्थ णं बहवे आरणऽच्चुया देवा परिवति । वहाँ अनेक आरण और अच्युत देव रहते हैं। -पण्ण० प०२, सु० २०६/१ अच्चुयदेवेंद वण्णओ अच्युत देवेन्द्र वर्णक२६. अच्चए यऽत्थं देविदे देवराया परिवसइ । जहा पाणए-जाव- २६. यहाँ देवेन्द्र देवराज "अच्युत" रहता है, शेष वर्णन प्राणत विहरइ । देवेन्द्र के समान रहता है। णवरं-तिण्ह विमाणावासयाणं', विशेष-तीन सौ विमानावासों का, दसण्ह सामाणियसाहस्सीणं, दस हजार सामानिक देवों का, चत्तालीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं-जाव-विहरइ । चालीस हजार आत्म-रक्षक देवों का आधिपत्य करता हुआ -यावत् - रहता है। दुवालस देवलोगाणं देवविमाणाणं संगहणी गाहाओ बारह देव लोकों के देव विमानों की संग्रहणी गाथायें१. बत्तीस, (१) सौधर्मकल्प में बत्तीस लाख विमान, २. अट्ठवीसा, (२) ईशानकल्प में अठाईस लाख विमान, ३. बारस, (३) सनत्कुमारकल्प में बारह लाख विमान, (४) माहेन्द्रकल्प में आठ लाख विमान, ५. चउरो, सतसहस्सा, (५) ब्रह्मलोक कल्प में चार लाख विमान, ६. पण्णा , (६) लान्तककल्प में पचास हजार बिमान, ७. चत्तालीसा, (७) महाशुक्रकल्प में चालीस हजार विमान, ८. छच्चसहस्सा सहस्सारे ॥॥ (८) सहस्रारकल्प में छह हजार विमान, ६. आणय, १०. पाणयकप्पे चत्तारिसया, (६) आनत, (१०) प्राणत कल्पों में चार सौ विमान, ११. ऽरण, १२. ऽच्चुए सत्तविमाणसयाई (११) आरण, (१२) अच्युत कल्पों में तीन सौ विमान, चउसु वि एएसु कप्पेसु ॥॥ आनत आदि चार कल्पों में सात सौ विमान । सामाणिय संगहणी गाहा सामानिक देवों की संग्रहणी गाथा१. चउरासीइ, (१) सौधर्मेन्द्र के चौरासी हजार सामानिक देव, २. असीई, (२) ईशानेन्द्र के अस्सी हजार सामानिक देव, ३. बावत्तरि, (३) सनत्कुमारेन्द्र के बहत्तर हजार सामानिक देव, ४. सत्तरी य, (४) माहेन्द्र के सित्तर हजार सामानिक देव, ५. सट्ठी य, (५) ब्रह्मदेवेन्द्र के साठ हजार सामानिक देव, ६. पण्णा , (६) लान्तक देवेन्द्र के पचास हजार सामानिक देव, ७. चत्तालीसा, (७) महाशुक्र देवेन्द्र के चालीस हजार सामानिक देव, ८. तीसा, (८) सहस्रारेन्द्र के तीस हजार सामानिक देव, ६-१०. वीसा, (६-१०) आनत-प्राणतेन्द्र के बीस हजार सामानिक देव, ११-१२. दससहस्सा ॥ (११-१२) आरण-अच्युतेन्द्र के दस हजार सामानिक देव । एए चेव आयरक्खा चउगुणा । प्रत्येक देवेन्द्र के सामानिक देवों से चौगुने आत्म-रक्षक -पण्ण. प. २, सु. २०६/२ देव हैं। १ सम. १०१, सु. १-२॥
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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