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सूत्र १५-१७
ऊर्ध्वलोक : ब्रह्मलोक देवों के स्थान
बंभलोग देवाणं ठाणा
ब्रह्मलोक देवों के स्थान
१५. ५० – कहि णं भंते ! बंभलोग देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ता णं १५. प्र० - भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त ब्रह्मलोक देवों के ठाणा पण्णत्ता ?
स्वान कहाँ हैं ?
प० - कहि णं भंते । बंभलोग देवा परिवसंति ?
उ०- गोयमा ! सणकुमार माहिंदाणं कप्पाणं उप्पि सर्पाक्ख सडिसि बहू जोवणा जागी जो कोडाकोडीओ उड्ढ दूरं उप्पइत्ता । एत्थ णं बंभलोए णामं कप्पे पण्णत्ते ।
पाण पडणायए उदीण दाहिण वित्यो । पडिपुण चंदसंठाण संठिए अच्चिमाली भासरासिप्पभे ।
अवसेसं जहा सणकुमाराणं । णवरं - चत्तारि विमाणावास सय सहस्सा ।" सगा जहा सोहम्म
वरं लोए । एत्थ णं बंभलोगाणं देवाणं ठाणा पण्णत्ता । सेसं तहेव जाव विहरति ।
-पण्ण. प. २, सु. २०१ / १
बंभदेवेदवण्णओ
१६. बंभे यत्थ देविंदे देवराया परिवसइ ।
अम्बर बत्रे एवं जहा सणकुमारे-जाय-बिहरह
णवरं - चउन्हं विमाणावाससय सहस्ताणं । सट्ठीए समाणियसाहसी चन्हं सट्टीगं आयरखदेवसाहस्सोणं जान-विहर। - पण्ण. प. २, सु. २०१/२
संतगदेवाण ठाणाई१७. ५० - कहि णं भंते! लंतग देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?
प० - कहि णं भंते ! लंतग देवा परिवसंति ?
उ०- गोयमा ! बंभलोगस्स कप्पस्स उपि सर्पाक्ख सपडदिसि बहूई जोयणाई - जाव- बहुगीओ जोयण कोडा कोडीओ उड़ढं दूरं उप्पइत्ता एत्थ णं लंतग णामे कप्पे पण्णत्ते ।
पाईण पडीणायए जहा बंभलोए ।
नवरं पण्णासं विमाणावास सहस्सा भवतीति मक्खायं वडेंसगा जहा ईसाणवडेंसगा ।
गणितानुयोग ६६३
२०- भगवन्! ब्रह्मलोक के देव कहाँ रहते हैं ?
उ० – गौतम ! सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के ऊपर समान दिशा में और समान विदिशा में अनेक योजन यावत् अनेक क्रोडाक्रोडी योजन ऊपर दूर जाने पर ब्रह्मलोक नामक कल्प कहा गया है ।
पूर्व-पश्चिम में लम्बा उत्तर-दक्षिण में चीड़ा प्रतिपूर्ण चन्द्र जैसे आकार से स्थित सूर्य सदृश कान्ति समूह से सम्पन्न ।
शेष सनत्कुमार सदृश है ।
विशेष – उनमें चार लाख विमान हैं।
अवतंसक - सौधर्म कल्प के अवतंसकों के समान हैं ।
विशेष – उनके मध्य में ब्रह्मलोकावतंसक हैं ।
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इसमें ब्रह्मलोक देवों के स्थान कहे गये हैं ।
शेष पूर्ववत् - यावत् रहते हैं ।
ब्रह्म देवेन्द्र वर्णन
१६. वहाँ देवेन्द्र देवराज ब्रह्म रहता है ।
वह रजरहित वस्त्रधारी हैं, शेष सनत्कुमारेन्द्र सहरा हैयावत् रहता है।
विशेष-चार लाख विमान, साठ हजार सामानिक देव इनसे चौगुने अर्थात् दो लाख चालीस हजार आत्मरक्षक देव हैं - यावत् रहता है।
लान्तक देवों के स्थान
१७. प्र० - भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त लान्तक देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ?
प्र० - भगवन् ! लान्तक देव कहाँ रहते हैं ?
उ०- गौतम ! ब्रह्मलोक कल्प के ऊपर समान दिशा में समान विदिशा में अनेक योजन - यावत् — अनेक क्रोडा योजन ऊपर दूर जाने पर लान्तक नाम का कल्प कहा गया है ।
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पूर्व-पश्चिम में लम्बा ब्रह्मलोक है। विशेष पचास हजार विमान कहे गये हैं ।
अवतंसक ईशान कल्प के अवतंसकों के समान हैं ।
१ सोहम्मीसाणेसु बंभलोए य तीस कप्पेसु चउर्साट्ठि विमाणावास सयसहस्सा पण्णत्ता |
२
सम. ५०, सु. ५ ।
- सम. ६४, सु. ५