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________________ ६६२ लोक-प्रज्ञप्ति उ० ० तत्थ बहने एत्थ णं सणकुमार देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता, तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइ भागे । १ - जाव - पभासेमाणा विहरंति । गवरं अम्गमहिसीओ पत्ि कुमारा देवा परिवसति महिडीवा ऊ लोक सनत्कुमारेन्द्र वर्णक सणकुमारेन्द वण्णओ १२. सणकुमारे यत्थ देविंदे देवराया परिवसइ । अरयंबर वत्थधरे, सेसं जहा सक्कस्स । - पण्ण. प. २, सु. १६६/१ सेमं तच वारस विमानाबादसहस्ताणं यावत्तरीए सामाणिय साहस्सोणं, सेसं जहा सक्कस्स, अग्गमहिसी वज्जं । परं चउन्हं वावतरीणं आयरक्खदेव साहसी जाय विहरइ । - पण्ण. प. २, सु. १६६ / २ प० -- कहि णं भंते ! माहिंदग देवा परिवसंति ? उ०- गोयमा ! ईसाणस्स कप्पस्स उप्पि सर्पाक्ख सर्पाडिदिस बहूई जोयणाई जाव - बहुगीओ जोयण कोडाकोडीओ उड् दूरं उप्पइत्ता एत्थ णं माहिदे नामे कप्पे पण्णत्ते। पाईप पडीगाए एवं जहेब सपकुमारे णवरं — अट्ठविमाणावास सयसहस्सा ।" वडेंसया जहा ईसा | गवरं मझे वय माहिए। - एवं सेसं जहा सणकुमारग देवाणं- जाव विहरद्द | -पण्ण. प. २, सु. २००/१ माहेद वण्णओ १४. माहिदे यत्थ देविंदे देवराया परिवसइ । अरयंबरवत्थधरे, एवं जहा सणकुमारे-जाव-विहर। गवरं अदृष्टं विमाणावाससयसहस्साणं सत्तरोए सामाजियसाहस्सीणं चउन्हं सत्तरीणं आयरक्खदेव साहस्सोणं जावबिहरह - पण. प. २, सु. २०० / २ सम. १३१ । माहिंदाणं देवाणं ठाणाई माहेन्द्र देवों के स्थान १३. ५० – कहि णं भंते! माहिंदाणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ता णं १३. प्र० - भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त माहेन्द्र देवों के ठाणा पण्णत्ता ? स्थान कहाँ कहे गये हैं? सूत्र ११-१४ यहाँ पर्याप्त और अपर्याप्त सनत्कुमार देवों के स्थान कहे गये हैं । (१) उपपात, (२) समुद्घात और (३) स्वस्थान की अपेक्षा से ये लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । उ०- वहाँ अनेक सनत्कुमार देव रहते हैं वे हैंयावत् - दैदिप्यमान रहते हैं । विशेष-महिषियों नहीं हैं। सनत्कुमारेन्द्र वर्णक १२. यहाँ देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार रहता है । रजतरहित वस्त्रधारी हैं, शेष वर्णन " शक्र" जैसा है । वह बारह लाख विमानों का बहत्तर हजार सामानिक देवों का स्वामी है शेव वर्णन "शक" सा है, महिषियां नहीं हैं। विशेष- बहत्तर हजार के चोगुने अर्थात् दो लाख अट्ठावीस हजार आत्मरक्षक देव — यावत्-रहते हैं । प्र० --- भगवन् ! माहेन्द्र देव कहाँ रहते हैं ? - गौतम ! ईशान कल्प के ऊपर समान दिशा में और समान विदिशा में अनेक योजन- यावत् — अनेक क्रोडाक्रोडी योजन ऊपर दूर जाने पर माहेन्द्र नामक कल्प कहा गया है । उ० पूर्व-पश्चिम में लम्बा है शेष सनत्कुमार जैसा है । विशेष-वहाँ आठ लाख विमान है । अवतंसक ईशानकल्प जैसे हैं । विशेष - यहाँ मध्य में माहेन्द्रावतंसक हैं । शेष सनत्कुमार देवों जैसा है - यावत् - यहाँ रहते हैं । माहेन्द्र वर्णक यहाँ देवेन्द्र देवराज माहेन्द्र रहता है, रजरहित वस्त्रधारी है, शेष सनत्कुमार जैसा है— यावत् रहता है। विशेष - आठ लाख विमानों का सित्तर हजार सामानिक देवों का सित्तर हजार के चौगुने अर्थात् दो लाख अस्सी हजार आत्म रक्षक देवों का आधिपत्य करता हुआ - यावत् — रहते हैं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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