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________________ गणितानुयोग प्रस्तावना (१६) कुलोपकुल का विभाजन पूर्णमासी को होने वाले नक्षत्रों के आधार पर है । यह स्वतंत्र विषय है । (१७) जैनाचार्यों ने गणित ज्योतिष संबंधी विषय का प्रतिपादन करने के लिए पाटी गणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, गोलीय रेखागणित, चानीय एवं वक्रीय त्रिकोणमिति प्रतिभा मतिगोप्रति गणित, पंचांग निर्माण गणित, जन्म पत्र निर्माण गणित ग्रहयुति, उद यास्त सम्बन्धी गणित एवं यंत्रादि साधन सम्बन्धी गणित का प्रतिपादन किया है । ५४ दा धवल टेक्ट्स, आई. जे. एच. एस., कलकत्ता, भाग ११, क्र. २, १९७६, पृ. ८५-१११ (ट) एल. सी जैन, डाइवर्जेण्ट सीक्वेन्सेज लोकेटिंग ट्रॉस्फा इनाइट, सेट्स इन त्रिलोकसार, आई. जे. एच. एस., कलकत्ता, भाग १२, क्र. १, १६७७, पृ. ५७-७५ (ठ) एल. सी. जैन, सिस्टम थ्योरी इन जैन स्कूल आफ मेथामेटिक्स, आई. जे. एच. एस., कलकत्ता, भाग १४, क्र. १, १६७६, पृ. ३१-६५ (ड) एल. सी. जैन, आर्यभट प्रथम एण्ड यतिवृषभ-ए स्टडी इन कल्प एण्ड मेरू, आई. जे. एच. एस. भाग १२, क्र. २, १६७७, पृ. १३५-१४६ उपरोक्त शोधलेखों में जैनाचार्यों द्वारा बिभिन्न आम्नायों में विकसित लोकोत्तर गणित के स्वरूप को दिखलाते हुए उसकी तुलना अन्यत्र विकसित गणित से की गयी है। लोकोत्तर गणित सम्बन्धी अनेक शोध लेख निकल चुके हैं। इनमें जैनाचार्यों द्वारा विकसित विभिन्न प्रकार के गणित सूत्रों आदि का विशेष विवरण है। ये लेख शोध हेतु दृष्टव्य हैं : कुछ मुख्य लेख निम्नलिखित हैं : प्रारम्भ में विभूतिभूषण दत्त ने अनेक श्वेताम्बर ग्रन्थों से लोकोत्तर गणित के विकास का मूल्यांकन करने का प्रयत्न किया था तथा हिन्दू गणित के इतिहास में उनके योगदान को अंकित किया था । यह प्रयास १६२९ के लगभग प्रारम्भ हुआ था । उन्होंने लिखा है, "जैनियों द्वारा गणितीय संस्कृति को बड़ा महत्व दिया जाता है । उनके धार्मिक साहित्य को साधारणतः चार समूहों में विभाजित किया गया है। इसे अनुयोग कहते हैं जिसका अर्थ है ' ( जैन धर्म के ) सिद्धान्त का प्रकाशन' । इनमें से (क) लक्ष्मीचन्द्र जैन आगमों में गणितीय सामग्री तथा उसका मूयांकन, तुलसी प्रज्ञा खण्ड ६, अंक 8, १६८० पृ० ३५-६६. (ख) लक्ष्मीचन्द्र जैन, तिलोय पम्पत्ति का गणित शोलापुर, एक गणितानुयोग है, अथवा गणित के सिद्धान्तका प्रकाशन' 1 । इसकी जैन धर्म में आवश्यकता होती है। जैन पंडित की प्रमुख, उपलब्धियों में से एक यह है कि उसे संख्यान (अर्थात् संख्याओं का विज्ञान अथवा अंकगणित' ) तथा ज्योतिष का ज्ञान हो । "1 इस शोधलेख में मुख्यतः निम्नलिखित ग्रन्थों की ओर संकेत था : (१८) चंद्र स्पष्टीकरण एवं मुख्यतः विशोत्तरी का कथन । जैन ज्योतिष- साहित्य के अब तक प्रायः पांच सौ ग्रन्थों का पता लग चुका है जिनका विवरण वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ में दिया गया है । (देखिये शोध लेख वही ) । इनमें प्राय: ५६ ग्रन्थ गणितः ज्योतिष सम्बन्धी हैं । इनके अतिरिक्त जैनेतर ग्रन्थों पर प्रायः २४ टीकाएं जैनाचार्यों ने की हैं। १६५८, पृ० १ १०५. (ग) लक्ष्मीचन्द्र जैन, लोकोत्तर गणित विज्ञान के शोध पथ भिक्षुस्मृति ग्रन्थ, कलकत्ता, १९६१, पृ० २२२-२३१. (प) लक्ष्मीचन्द्र जैन, आन या जैन स्कूल ऑफ मेथमेटिक्स, छोटेलाल स्मृति ग्रन्थ, कलकत्ता, १९६७, पृ० २६६-२९२. (च) एल. सी. जैन, सेट थ्योरी इन जैन स्कूल आफ मेथामेटिक्स, आई. जे. एच. एस. कलकत्ता, भाग 5 क्र. १, १६७३, पृ० १-२७ (छ) एल. सी जैन, काइनेमेटिक्स ऑफ दी सन एण्ड दी मून इन तिलोय पणसि, तुलसीप्रज्ञा, लाइन, फ० १९७५, पृ० ६०-६७ (ज) एल. सी. जैन, दी काइनेमेटिक मोशन आफ एस्ट्रल रीयल एण्ड काउण्टर वाडीज इन त्रिलोकसार, आई० जे. एच. एस., कलकत्ता, भाग ११, क्र. १,१६७५, पृ० ५८-७४ (झ) एल. सी. जैन, आन सरटेन मेथामेटिकल टाक्सि ऑफ १ बुले. केल. मेथ० सो०, २७.२, १६२६, पृ० ११५-१४५ (१) भगवती सूत्र अभयदेव सूरि टीका (१० १०५०), उत्तराध्ययन सूत्र, अनु० हरमाँ जैकोबी, आक्सफर्ड, १८६५; (२) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति शान्तिचन्द्र राणि टीका (६० १५९५) भूमिका (३) कल्पसूत्र, भद्रबाहु ( ल० ३५० ई० पू० ) अनु० ह० जैकोबी (४) अंतगडदसाओ एवं अनुत्तरोववाइयदसाओ, अनु० बर्नेट, १६०७. इस समय तक, कर्म सिद्धान्त वाले ग्रन्थ : कसाय पाहुड एवं षट्खण्डागम, जयधवला. तथा धबला टीकाओं सहित प्रकाशित नहीं
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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