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________________ गणितानुयोग : प्रस्तावना ५३ यल्लाचार्य द्वारा गणित संग्रह ग्रन्थ रचने का उल्लेख है। देशान्तर, कालान्तर, भुजान्तर, चरान्तर एवं उदयान्तर नेमिचंद्र द्वारा क्षेत्र गणित ग्रन्थ रचने का उल्लेख जिनरत्न सम्बन्धी सिद्धान्त है। कोश (पृ० ६८) में मिलता है। (४) पर्वो में विषुवानयन जो बाद में संक्रांति और क्रान्ति में लोकांगच्छीय मुनि तेजसिंह द्वारा "इष्टांक पंचविंशतिका" विकसित हुआ। २६ पद्य वाला रचित हुआ है। संवत्सर संबंधी प्रक्रिया जिसका विकास बाद में सौरमास, ___ गणित सूत्र ग्रन्थ रचना किन्हीं दिगम्बर आचार्य द्वारा हुई चंद्रमास, सावनमास एवं नक्षत्रमास रूपों में हुआ। गणित द्वारा नक्षत्र लग्न आनयन प्रक्रिया का विकसित रूप उपकेश गच्छीय सिद्ध सूरि ने श्रीधर कृत "गणित सार" त्रिंशांश, नवमांश, द्वादशांश एवं होरादि हैं। ग्रन्थ पर टीका रची है। (७) काल गणना प्रक्रिया का विकसित रूप अंश, कला, विकला विक्रम संवत् १३३० में श्रीपति कृत 'गणित तिलक' पर आदि क्षेत्रांश संबन्धी गणना एवं घटी पलादि संबंधी काल सिंह तिलक सूरि श्वेताम्बर आचार्य की गणित तिलक-वृत्ति उप- गणना है। लब्ध है। (८) ऋतु शेष प्रक्रिया जिसका विकसित रूप क्षयशेष, अधि___ लौकिक गणित ज्योतिष पर जैनाचार्यों के अनेक ग्रन्थों का मास, अधिशेष आदि हैं। उल्लेख है जो अभी तक हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित नहीं हो (९) सूर्य, चंद्र मण्डलों के व्यास, परिधि आदि का विकसित सके हैं । इस प्रकार उनके द्वारा हुआ विकसित गणित ज्योतिष गणित ग्रह गणित है। का इतिहास अंधकार में है । लोकोत्तर गणित-ज्योतिष का विकास (१०) छाया द्वारा समय निरूपण का विकसित रूप इष्ट काल, सूर्य प्रज्ञप्ति, चंद्र प्रज्ञप्ति, ज्योतिष करण्डक प्रभृति ग्रन्थों की भयात, भभोग, एवं सर्वभोग आदि हैं। टीकाओं आदि से ज्ञात होता है । उनमें ध्रुव राशि तथा पंच- (११) राहु और केतु की व्यवस्था का विकसित रूप सूर्य एवं वर्षीय युग पद्धति का उपयोग उत्तरकालीन युग पद्धति को विक- चंद्र ग्रहण सम्बन्धी सिद्धान्त । सित करने में कहाँ तक हुआ यह गहन शोध का विषय है। (१२) चन्द्र प्रज्ञप्ति में प्रतिपादित छाया पर से धुज्या, कुज्या तिलोय पण्णत्ति एवं त्रिलोकसार आदि ग्रन्थों में भी गणित- के रूप का सिद्धान्त ज्योतिष में विकसित रूप आया है। ज्योतिष का लोकोत्तर गणित रूप में विकास इसी प्रकार हुआ ग्रह गणित के जिन बीज सूत्रों का उल्लेख इस ग्रन्थ में है दृष्टिगत होता है । गणना विकास के सम्बन्ध में नेमिचंद्र शास्त्री वे ग्रीक ज्योतिष से पूर्व के हैं। ने विभिन्न ग्रन्थों एवं लेखों में निम्नलिखित सार रूप तथ्य प्रस्तुत (१३) ग्रह बीथियों का विकसित रूप प्रचलित भचक्र माना जा किये हैं जिन पर शोध लेख आवश्यक हैं : सकता है। (१) प्रति दिन सूर्य के भ्रमण मार्ग निरूपण-सम्बन्धी सिद्धान्त। (१४) पंचवर्षात्मक युग में व्यतिपात आनयन प्रक्रिया जो ज्योतिष इसका विकसित रूप दैनिक अहोरात्र वृत्त की कल्पना है। करण्डक; पृ० २००-२०५ में उपलब्ध है । यहाँ भी (२) दिनमान के विकास की प्रणाली जो वेदांग ज्योतिष में नहीं ध्र व राशि का उपयोग है। मिलती है। (१५) षट्खंडागम की धवला टीका में १५ मुहूतों की नामावलि (३) अयन-सम्बन्धी प्रक्रिया का विकास, जिसका विकसित रूप पूर्वाचार्यों द्वारा कृत है। १. श्रीधराचार्य के संबन्ध में नेमिचंद्र शास्त्री (भारतीय ज्योतिष, दिल्ली, १९७०, पृ० १३२) ने उल्लेख किया है कि ये प्रारम्भ में शैव थे किन्तु बाद में जैनधर्मानुयायी हो गये थे। इनके ग्रन्थों में पाटी गणित, बीजगणित, गणित ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। ये लगभग ईसा की आठवीं सदी में हुए। इनके विशद कार्य के मूल्यांकन के लिए दत्त एवं सिंह का ग्रन्थ-हिंडू गणित का इतिहास पठनीय है। २. (१) भारतीय ज्योतिष, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, १९७० (२) केवलज्ञान प्रश्न चूडामणि, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, १९६६ (३) शोध लेख : भारतीय ज्योतिष का पोषक जैन ज्योतिष, वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ, सागर, वीर नि० सं० २४७६, पृ० ४६९-४८४ (४) शोध लेख : जैन ज्योतिष साहित्य, आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रंथ, कलकत्ता, १९६१ पृ. २१०-२२१ (५) शोध लेख : ग्रीक पूर्व जैन ज्योतिष विचारधारा, ब्र० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, आरा, १९५४, पृ० ४६२-४६६.
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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