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सूत्र ७
ऊर्ध्व लोक : सौधर्मकल्प देवों के स्थान
गणितानुयोग
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सोहम्मगदेवाणं ठाणाई
सौधर्मकल्प के देवों के स्थान७.५०-कहि णं भंते ! सोहम्मगदेवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ७. प्र०-भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त सौधर्मकल्प के देवों ठाणा पण्णता?
के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? प०-कहि णं भंते ! सोहम्मगदेवा परिवसंति ?
प्र० -भगवन् ! सौधर्मकल्प के देव कहाँ रहते हैं ? उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे गं उ०-गौतम ! जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में
इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसम-रमणिज्जाओ भूमि- इस रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूभाग से ऊपर चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र भागाओ उड्ढं । चंदिम-सूरिय-गह-णक्खत्ता-तारारूवाणं ताराओं से अनेक सौ योजन, अनेक हजार योजन. अनेक लाख बहई जोयणसयाई जोयणसहस्साई बहई जोयणसय- योजन और अनेक क्रोडाक्रोड योजन ऊपर इतने दूर जाने पर सहस्साई बहुगीओ जोयण कोडीओ बहुगीओ जोयण सौधर्म नाम का कल्प कहा गया है। कोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता। एत्थ णं सोहम्मे णामं कप्पे पण्णत्ते। पाईण-पडीणायए उदीण-दाहिणवित्थित्थपणे अद्ध चंद वह पूर्व-पश्चिम में लम्बा, उत्तर-दक्षिण में चौड़ा अर्धचन्द्र संठाण संठिए अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे असंखेज्जाओ के आकार से स्थित, सूर्य के किरण समूह सदृश प्रभाव वाला, जोयण कोडीओ असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ असंख्य कोटाकोटी योजन लम्बा चौड़ा, और असंख्य कोटाकोटी आयाम-विक्खंभेणं असंखेज्जाओ जोयण कोडाकोडीओ योजन की परिधि वाला है। परिक्खेवेणं । सव्वरयणामए अच्छे-जाव-पडिरूवे ।
सर्व रत्नमय है, स्वच्छ है-यावत्-प्रतिरूप हैं । तत्थ णं सोहम्मगदेवाणं बत्तीसं विमाणावास सयसहस्सा उसमें सौधर्म कल्पवासी देवों के बत्तीस लाख विमान कहे हवंतीतिमक्खायं।
गये हैं। ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा। वे विमान सर्व रत्नमय हैं स्वच्छ हैं-यावत्-प्रतिरूप हैं । ते ण विमाणा गं बहुमज्झ देसभाए पंच बडेसया उन विमानों के मध्य में पाँच अवतंसक विमान कहे गये पण्णत्ता, तं जहा
हैं, यथा१. असोगव.सए, २. सत्तिवण्णव.सए, ३. चंपग- (१) अशोकावतंसक, (२) सप्तपर्णावतंसक, (३) चंपकावडेंसए, ५. मज्झेय त्थ सोहम्मवडेंसए ।
वतंसक, (४) चूतावतंसक, (५) और मध्य में सौधर्मावतंसक । ते गं वडेंसया सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा। वे सभी अवतंसक स्वर्णमय हैं स्वच्छ हैं-यावत्-प्रति
रूप हैं। एत्थ णं सोहम्मगदेवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा यहाँ पर्याप्त और अपर्याप्त सौधर्मकल्प के देवों के स्थान पण्णत्ता।
कहे गये हैं। तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइ भागे।
(१) उपपात, (२) समुद्घात और (३) स्वस्थान की अपेक्षा
से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । उ.-तत्थ णं सोहम्मगदेवा परिवसंति ।
उ.-वहाँ अनेक सौधर्म कल्पवासी देव रहते हैं । महिड्ढीया-जाव-दिव्वाए लेस्साए दस दिसाओ उज्जो- वे महा ऋद्धि वाले हैं-यावत् -दिव्य तेज से दस दिशाओं वेमाणा पभासेमाणा।
को प्रकाशित करते हुए रहते हैं। ते णं तत्थ साणं साणं विमाणावास सयसहस्साणं साणं वे अपने अपने लाखों विमानों का अपने अपने हजारों साणं सामाणिय साहस्सीणं-जाव-साणं साणं आयरक्ख- सामानिक देवों का-यावत -अपने अपने आत्मरक्षक देवों का देव साहस्सीणं अण्णेसि च बहूणं सोहम्मग कप्पवासीणं आधिपत्य करते हुए-यावत्-दिव्य भागोपभोग भोगते हुए वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं-जाव- रहते हैं । दिव्वाइं भोगभोगाई भुजमाणा विहरति ।
-पण्ण. प. २, सु. १६७